महाराष्ट्र में क्या प्रेस की आज़ादी पर कुठाराघात हो रहा है? क्या मीडिया कर्मियों पर उद्धव ठाकरे सरकार नाजायज दबाव डाल रही है? या क्या लोगों की सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति पर भी पहरा लगा दिया गया है?
दरअसल, इस कोरोना लॉकडाउन के दौरान राज्य सरकार इस प्रयास में लगी है कि कोरोना को लेकर किसी तरह की अफवाहें इस माध्यम से नहीं फैलें और लोगों में भ्रम की स्थिति नहीं बने।
निखिल वागले का मनाना है कि अर्णब को वह पत्रकार के रूप में नहीं देखते, वह पार्टी विशेष का एजेंडा लेकर और उसका प्रचार करते हैं।
तोरसेकर कहते हैं कि उस समय तमाम विचारक, विद्वान और लुटियंस के पत्रकार कैसी पत्रकारिता और बयान दे रहे थे वे ज़रा देख लें। तोरसेकर के अनुसार पालघर की घटना भी वैसी ही है, हम सत्ता में हैं तो दूसरे को राजनीति नहीं करने की सलाह दें या पत्रकारिता सिखाएँ, यह कहाँ तक जायज़ है।