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महाराष्ट्र में रोजाना 1 किसान कर रहा खुदकुशी, खतरे की घंटी

महाराष्ट्र में किसानों की खुदकुशी रुकने का नाम नहीं ले रही है। सरकारी अधिकारी जानकारी दे रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र सरकार पर कोई असर नहीं। किसानों की आमदनी दोगुनी करने वाली पार्टी के नेताओं पर इसका कोई असर नहीं। यवतमाल जिले में हाहाकार मचा हुआ है। यवतमाल के जिला कलेक्टर अमोल येगे ने कहा है कि अगस्त में 48 किसानों ने आत्महत्या की। 12 सितंबर तक 12 किसानों की मौत हो चुकी है। यानी यवतमाल में रोजाना एक किसान की मौत हो रही है। कलेक्टर के मुताबिक 1 जनवरी से 12 सितंबर तक 205 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। 

ऐसा नहीं है कि जिला कलेक्टर अमोल येगे ने यह रिपोर्ट मुंबई में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को नहीं भेजी होगी। लेकिन मुंबई की दुनिया महाराष्ट्र के ग्रामीण जनता से मेल नहीं खाती। वहां सरकार बचाने और बिगाड़ने का खेल चल रहा है। विधायक थानों में गोलियां चला रहे हैं। फडणवीस बीएमसी चुनाव की तैयारी में व्यस्त हैं। यानी किसानों की खुदकुशी पर कोई सरकार चौंकती नहीं है, प्रतिक्रिया नहीं देती है। इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक महाराष्ट्र की कोई चिन्ता या सरोकार किसानों के लिए नहीं आया है। 

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यवतमाल के जिला कलेक्टर अमोल येगे ने न्यूज एजेंसी एएनआई को किसानों की खुदकुशी की पुष्टि करते हुए बताया है कि हमने अधिकारियों की टीम गांवों में भेजी है। हमारे अधिकारी 13 और 14 सितंबर को रात गांव में बिताएंगे, किसानों से उनकी समस्या पूछेंगे और उन्हें सरकारी स्कीमों की जानकारी देंगे। यवतमाल के जिला कलेक्टर ने किसी भयावह स्थिति का जिक्र नहीं किया है लेकिन जिन 48 और 12 मौतों का जिक्र उन्होंने किया है, वो आंकड़ा ही अपने आप में भयावह है। 

एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने 30 जून 2022 को महाराष्ट्र की सत्ता संभाली थी। महाराष्ट्र सरकार के पास 1 जनवरी 2022 से 15 अगस्त 2022 तक 600 किसानों की खुदकुशी का आंकड़ा मौजूद है। किसानों की यूनियन शेतकारी संगठन ने अपने ज्ञापनों के जरिए एक-एक जिले में किसानों की मौत की सूचना महाराष्ट्र सरकार के पास भेजी है। यवतमाल के जिला कलेक्टर ने अगस्त में 48 और सितंबर में 12 मौतों की सूचना अपने जिले के बारे में भेजी है। 

महाराष्ट्र में शपथ लेने के बाद जब जुलाई महीने में शिंदे और फडणवीस तमाम बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे थे, उस समय मराठवाड़ा बेल्ट में किसानों की बर्बादी की कहानियां लिखी जा रही थीं। डाउन टु अर्थ मैगजीन की एक रिपोर्ट में बताया गया कि जुलाई में मराठवाड़ा के 24 जिलों में तूर दाल की फसल, सोयाबीन, मकई, धान, केला और कॉटन की फसल तबाह हो गई। क्योंकि इन जिलों में ज्यादा बारिश हुई थी। मराठवाड़ा में हर बार या तो सूखे से फसल तबाह होती है या फिर ज्यादा बारिश से फसल तबाह होती है। सरकार इसे प्राकृतिक आपदा मानकर किसानों पर छोड़ देती है। लेकिन सरकार अपनी नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराती है। 

शेतकारी संगठन मराठवाड़ा के अध्यक्ष कैलाश का कहना है कि सरकार हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ कभी सपोर्ट नहीं करती। उन्होंने बताया कि इस बार मूंग की दाल का एमएसपी 6500 रुपये सरकार ने तय किया। यानी किसान की मूंग की दाल को 6500 रुपये प्रति क्विंटल बिकना चाहिए था लेकिन असलियत में बाजार की शक्तियों ने इसे किसानों को 4000 रुपये प्रति क्विंटल बेचने पर मजबूर किया। इस भाव से किसानों की लागत भी नहीं आई। जिन किसानों ने साहूकारों से कर्ज लिया होगा, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है। कैलाश का कहना है कि बैंकों से पैसा समय पर नहीं मिलता। ज्यादातर बैंक किसानों को कर्ज देने से ही मना कर देते हैं, ऐसे में किसान साहूकार के पास मोटे ब्याज पर कर्ज लेने जाता है। साहूकार से लिया गया कर्ज किसानों को मुसीबत में डाल देता है। वो ब्याज चुकाते-चुकाते जिन्दगी गवां देता है, जबकि उस कर्ज का मूल धन उसकी मौत के बाद भी बना रहता है।
यवतमाल के एक किसान के हवाले से न्यूज एजेंसी एएनआई ने बताया कि हमारे पिता ने 12 लाख का कर्ज लिया था। बारिश से हमारी पूरी फसल बर्बाद हो गई। मेरे पिता जी चुपचाप खेत पर गए और वहां जाकर आत्महत्या कर ली। हमने कभी इस बारे में सोचा तक नहीं था। पिता जी क्या करते। हमे प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली। बीडीओ या कोई सरकारी अधिकारी हम तक नहीं पहुंचा। 

यह हकीकत है कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में किसानों की खुदकुशी कोई नई बात नहीं है। वो महज आंकड़ों का पेट भरने के लिए है। मुंबई में कोई भी सरकार हो, किसानों से किसी का सरोकार नहीं है।  

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क़मर वहीद नक़वी
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