महाराष्ट्र भाषा सलाहकार समिति ने एनईपी 2020 के तहत कक्षा 1 से 5 तक के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के राज्य सरकार के फैसले का विरोध किया है। समिति के क्या तर्क हैं, जानिएः
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
महाराष्ट्र सरकार के राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के फैसले का राज्य की भाषा सलाहकार समिति ने कड़ा विरोध किया है। समिति ने इस निर्णय को भाषाई और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए हानिकारक बताते हुए सरकार से इसे रद्द करने की मांग की है।
17 अप्रैल 2025 को घोषित इस सरकारी निर्णय के अनुसार, मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना था। यह कदम एनईपी 2020 के तहत तीन-भाषा नीति का हिस्सा है। हालांकि, भाषा सलाहकार समिति ने अपने पत्र में कहा कि प्राथमिक स्कूल के छात्रों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाना चाहिए और तीन-भाषा नीति को केवल उच्चतर माध्यमिक स्तर पर लागू करना उचित होगा।
समिति ने चेतावनी दी कि यदि यह निर्णय लागू हुआ तो महाराष्ट्र को भाषाई और सांस्कृतिक क्षेत्र में और नुकसान उठाना पड़ सकता है। समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर इस फैसले को वापस लेने का अनुरोध किया है।
विरोधी दलों, जैसे कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), और एनसीपी (एसपी) ने भी इस निर्णय की कड़ी आलोचना की है। शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनकी पार्टी हिंदी को अनिवार्य करने की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी हिंदी भाषा से कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन इसे जबरदस्ती थोपने का विरोध करेंगे।
कांग्रेस नेता हर्षवर्धन सपकाल ने इसे मराठी संस्कृति और पहचान पर हमला करार देते हुए तत्काल वापसी की मांग की। वहीं, एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुळे ने इस फैसले को राज्य बोर्ड को खत्म करने की साजिश बताया।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बचाव में कहा कि मराठी पहले से ही अनिवार्य है और हिंदी को राष्ट्रीय संचार के लिए जोड़ा गया है। उन्होंने दावा किया कि यह नीति पहले से ही लागू थी और यह कदम केवल पाठ्यक्रम को और मजबूत करेगा।
हालांकि, समिति ने तर्क दिया कि मराठी और अंग्रेजी की शिक्षा की गुणवत्ता पहले से ही खराब है, क्योंकि ज्यादातर स्कूलों में केवल एक या दो शिक्षक हैं। ऐसे में तीसरी भाषा को अनिवार्य करना अनावश्यक बोझ है।
यह विवाद महाराष्ट्र में भाषा और पहचान की राजनीति को और गर्म कर सकता है। विपक्ष और भाषा समिति सरकार पर दबाव बढ़ा रहे हैं, ताकि मराठी की प्राथमिकता और सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखा जा सके।