देवेंद्र फडणवीस ने मराठा कोटा के लिए आंदोलन कर रहे जरांगे पाटिल को एक दिन पहले ही मनाकर एक संकट को टाला और बुधवार को एक नया संकट सामने आ गया। फडणवीस सरकार के ही मंत्री छगन भुजबल ने खुला मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा है कि वह कुनबी प्रमाणपत्रों पर सरकारी आदेश के खिलाफ कोर्ट जाएंगे। इस मुद्दे को देखते हुए उन्होंने कैबिनेट बैठक में भी हिस्सा नहीं लिया। मराठा लोगों को कुनबी प्रमाणपत्र देने के सरकारी आदेश के आश्वासन पर ही जरांगे पाटिल ने अपनी भूख हड़ताल और आंदोलन को वापस लिया है। इससे मराठा लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी का दर्जा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति सरकार के भीतर ही कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने के फैसले को लेकर मतभेद उभर आए। महायुति के इस कदम से न केवल मौजूदा सरकार में दरारें आ गई हैं, बल्कि ओबीसी समुदाय और उसके नेताओं में भी भारी असंतोष पैदा कर दिया है।
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ओबीसी समुदाय के नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने मराठा प्रदर्शनकारियों के दबाव में आकर मराठा को पिछले दरवाजे से ओबीसी श्रेणी में प्रवेश की अनुमति दे दी। इस पर एनसीपी मंत्री और ओबीसी नेता छगन भुजबल ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए अपनी ही सरकार द्वारा जारी सरकारी प्रस्ताव यानी जीआर के खिलाफ जाने का फैसला किया है। भुजबल ने राज्य सरकार के जीआर के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने की तैयारी की है।

भुजबल ने कहा कि वह और अन्य ओबीसी नेता इस बात पर कानूनी राय ले रहे हैं कि क्या राज्य सरकार और उसके स्थानीय निकायों को किसी की जाति बदलने और उसे किसी विशेष आरक्षण श्रेणी में शामिल करने का अधिकार है। ओबीसी के प्रावधान पर मुखर रहने वाले एनसीपी मंत्री ने कहा, 
हमें मराठा आरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए सरकारी आदेश पर संदेह है कि मराठा आरक्षण नेता मनोज जरांगे पाटिल के आंदोलन के बाद कौन जीता। हम इस बारे में कानूनी राय ले रहे हैं कि क्या सरकार लोगों की जाति बदलने के लिए अधिकृत है।
छगन भुजबल
महाराष्ट्र के मंत्री

जरांगे पाटिल का आंदोलन

मराठा आरक्षण एक्टिविस्ट मनोज जरांगे पाटिल ने 29 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की थी, जिसमें उनकी मुख्य मांग थी कि मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र के मराठों को कुणबी जाति के रूप में मान्यता दी जाए और उन्हें ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण दिया जाए। जरांगे ने दावा किया कि हैदराबाद और सतारा गजट में मराठों को कुनबी के रूप में दर्ज किया गया है और इसे तत्काल लागू किया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र सरकार ने जरांगे की मांगों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मंगलवार को एक जीआर जारी किया, जिसमें मराठवाड़ा के मराठों को ऐतिहासिक दस्तावेजों (हैदराबाद गजट) के आधार पर कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की गई। इसके अलावा, सरकार ने मराठा आंदोलन के दौरान मारे गए प्रदर्शनकारियों के परिवारों को नौकरी और 15 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने का वादा किया। साथ ही, मराठा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज पुलिस मामलों को वापस लेने की घोषणा भी की गई। जरांगे ने जीआर प्राप्त होने के बाद अपना अनशन समाप्त कर दिया और इसे मराठा समुदाय की अपनी जीत करार दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि जीआर को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
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27% आरक्षण के कमजोर होने का डर?

छगन भुजबल ने जीआर पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह ओबीसी समुदाय के मौजूदा 27% आरक्षण को कमजोर कर सकता है। भुजबल ने सोमवार को ओबीसी नेताओं की एक बैठक बुलाई थी, जिसमें उन्होंने जरांगे की मांग को 'मूर्खतापूर्ण' करार दिया और कहा कि मराठा और कुनबी एक समान नहीं हैं। उन्होंने दावा किया कि 27% ओबीसी कोटे में से 6% खानाबदोश जनजातियों, 2% गोवारी समुदाय और अन्य छोटे हिस्सों के लिए निर्धारित हैं, जिसके बाद केवल 17% कोटा 374 समुदायों के लिए बाकी रहता है। भुजबल ने चेतावनी दी कि अगर ओबीसी कोटे में मराठों को शामिल किया गया तो लाखों ओबीसी सड़कों पर उतर आएंगे। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने उपमुख्यमंत्री अजित पवार से भी इस मुद्दे पर सवाल किया कि मराठा आरक्षण के फैसले से पहले उनसे सलाह क्यों नहीं ली गई।

महायुति गठबंधन में क्या चल रहा?

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एक ब्राह्मण नेता हैं। वह जरांगे पाटिल के निशाने पर रहे हैं। जरांगे ने बार-बार फडणवीस पर मराठा आरक्षण को बाधित करने का आरोप लगाया है, जबकि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों मराठा समुदाय से हैं। दोनों इस मुद्दे पर अपेक्षाकृत नरम रुख अपनाते दिखे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी के एक खेमे में चर्चा है कि शिंदे और पवार ने इस आंदोलन को संभालने में सक्रियता नहीं दिखाई, जिससे फडणवीस पर दबाव बढ़ा। 

एनसीपी नेता अजित पवार को इस मामले में सुरक्षित रुख अपनाते हुए देखा गया, क्योंकि उनकी पार्टी का आधार पश्चिमी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में है और वह किसी भी तरह से जरांगे पाटिल को नाराज नहीं करना चाहते।

महायुति के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बीजेपी ओबीसी का बखान करती है और चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी नेताओं ने भी ओबीसी को बीजेपी का डीएनए बताया था। नेता ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'अगर ओबीसी बीजेपी की रीढ़ हैं तो भाजपा मराठों को ओबीसी श्रेणी में आरक्षण देकर उनकी रीढ़ क्यों तोड़ना चाहती है? यह ओबीसी समुदाय को मूर्ख बनाने और उनकी पीठ में छुरा घोंपने के अलावा और कुछ नहीं है। बीजेपी ओबीसी के वोटों से सत्ता में आई है और बदले में ओबीसी के साथ अन्याय हो रहा है। हमें समझ नहीं आ रहा कि ओबीसी की छोटी जातियों की कीमत पर बहुसंख्यक मराठा जाति को फायदा पहुँचाने वाले भाजपा के फैसले पर क्या प्रतिक्रिया दें और क्या कहें।'

रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य ओबीसी नेता लक्ष्मण हाके ने कहा कि ओबीसी समुदाय में यह डर है कि राज्य सरकार द्वारा मराठा कोटा नेता मनोज जारांगे पाटिल के साथ किए गए समझौते के कारण उनका मौजूदा कोटा प्रभावित होगा।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, 'महायुति के भीतर कुछ लोग मराठा मुद्दे का इस्तेमाल फडणवीस को कमजोर करने और मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए कर रहे हैं।' उन्होंने फडणवीस बनाम शिंदे का उदाहरण देते हुए पूछा कि मुख्यमंत्री की बैठक से लगातार अनुपस्थित रहने के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व सेना नेता के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है।
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मराठा आरक्षण का इतिहास 

मराठा समुदाय महाराष्ट्र की आबादी का लगभग 30% है। वह लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा है। 2018 में फडणवीस सरकार ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग के तहत मराठों को 12-13% आरक्षण दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में इसे 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन बताकर रद्द कर दिया। फरवरी 2024 में महायुति सरकार ने मराठों को 10% एसईबीसी कोटा दिया जो अभी भी बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती का सामना कर रहा है।

जरांगे पाटिल ने इस अलग कोटे को खारिज करते हुए जोर दिया कि मराठों को कुनबी के रूप में ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि सरकार के पास 58 लाख मराठों के कुनबी होने के रिकॉर्ड हैं। हालांकि, भुजबल और अन्य ओबीसी नेताओं का कहना है कि सामूहिक रूप से पूरे मराठा समुदाय को कुनबी का दर्जा देना कानूनी रूप से संभव नहीं है।

फडणवीस ने मनोज जरांगे पाटिल की अगुवाई वाले आंदोलन की ताजा लहर को फ़िलहाल शांत कर दिया है, लेकिन सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में गहरी दरारें सामने आ गई हैं। छगन भुजबल का कोर्ट जाने का फैसला और महायुति गठबंधन के भीतर मतभेद इस मुद्दे को और मुश्किल बना रहे हैं। मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच बढ़ता तनाव महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित कर सकता है। तो अब लगता है कि फडणवीस के लिए गठबंधन को एकजुट रखने की भी परीक्षा है!