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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे

महाराष्ट्रः शिंदे के इलाके ठाणे में सिर्फ विपक्ष पर FIR की भरमार 

राजनीतिक बदले की भावना में एफआईआर दर्ज करना कोई महाराष्ट्र की मौजूदा शिंदे सरकार से सीखे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ठाणे से हैं और राजनीतिक बदले की भावना में एफआईआर दर्ज करना-कराना वहां एक हथियार बन गया है। इंडियन एक्सप्रेस ने आज 24 अप्रैल को इस पर एक दिलचस्प रिपोर्ट प्रकाशित की है। उसने सिर्फ शिंदे के गृह क्षेत्र ठाणे की एफआईआर का अध्ययन किया है। 

इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि एकनाथ शिंदे के महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ठाणे में एक ट्रेंड उभर आया है। 30 जून, 2022 को उनकी सरकार के सत्ता में आने के बाद से मीडिया रिपोर्टों के आधार पर ठाणे पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के विश्लेषण से पता चलता है कि शिवसेना (यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सदस्यों के खिलाफ 25 एफआईआर दर्ज की गई थीं। कांग्रेस नेता और एक रैपर के खिलाफ भी 10 महीनों में एफआईआर दर्ज की गई। 26 एफआईआर में से 21 का संबंध सोशल मीडिया पोस्ट, टिप्पणियों या बैनर के जरिए विपक्ष द्वारा शिंदे को "निशाना" बनाने के संबंध में हैं।

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ठाणे में पूर्व सांसद आनंद परांजपे के खिलाफ शुरू में 11 एफआईआर दर्ज की गई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने जब ठाणे पुलिस को फटकार लगाई तो कुछ एफआईर कम हो गईं। अधिकांश एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (ए) (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत दर्ज की गई हैं, जिसमें अधिकतम पांच साल कारावास की सजा है।

इसके मुकाबले इसी समय में, शिंदे सेना के खिलाफ चंद एफआईआर दर्ज हुईं। कुछ एफआईआर में से एक शिंदे सेना के कार्यकर्ताओं द्वारा भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता पर हमला करने के संबंध में थी। इसके अलावा, शिंदे सेना के सदस्यों के खिलाफ दो कथित एनसी दर्ज की गई थीं।

शिवसेना यूबीटी की कार्यकर्ता रोशनी शिंदे के मामले में असंतुलित पुलिस कार्रवाई का आरोप लगाते हुए, शिवसेना (यूबीटी) के विधायक आदित्य ठाकरे और महा विकास अघडी (एमवीए) के सहयोगियों - एनसीपी और कांग्रेस - ने 5 अप्रैल को ठाणे पुलिस आयुक्त के कार्यालय के पास विरोध प्रदर्शन किया था। आरोप लगाया कि ठाणे पुलिस सिर्फ सीएम एकनाथ शिंदे के आदेश पर विपक्षी नेताओं पर एफआईआर दर्ज कर रही है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण और पूर्व मंत्री बालासाहेब थोराट ने सोशल मीडिया पर शिंदे के खिलाफ कथित टिप्पणी को लेकर 31 मार्च को कांग्रेस के पदाधिकारी गिरीश कोली पर कथित रूप से हमला करने के लिए शिंदे सेना के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर 12 अप्रैल को ठाणे के पुलिस कमिश्नर से मुलाकात की थी।

'शिंदे के वफादार अधिकारी': विपक्ष के नेता अजीत पवार ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा था कि शिंदे का ठाणे में जबरदस्त दबदबा है, जहां वह रहते हैं और जहां से उन्हें विधायक और उनके बेटे श्रीकांत को सांसद चुना गया था। पवार ने संकेत दिया कि उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले ही शिंदे का ठाणे पुलिस कमिश्नर दफ्तर में पुलिस पोस्टिंग में दखल था। पवार ने कहा, 'हम जानते थे कि शिंदे बगावत करेंगे। हमने एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उद्धव ठाकरे को इसके बारे में सतर्क किया था। हालांकि बागडोर हमारे हाथ में थी, लेकिन उन्होंने (शिंदे गुट ने) इसे इतनी अच्छी तरह से प्रबंधित किया कि हम कुछ नहीं कर सके … सीएम के रूप में उद्धव ठाकरे ने शिंदे को यह तय करने का पूरा अधिकार दिया था कि ठाणे में कौन अधिकारी नियुक्त होगा। सभी सिविल और पुलिस अधिकारियों को शिंदे (तब ठाकरे के मंत्रिमंडल में) द्वारा नियुक्त किया गया था। जब शिंदे ने कुछ विधायकों के साथ सूरत भागने का फैसला किया तो सभी अधिकारी उनके प्रति वफादार रहे। हालांकि ठाकरे ने अधिकारियों से यह तय करने के लिए कहा कि सूरत जाने वाले वाहनों को मातोश्री (ठाकरे निवास) वापस कर दिया जाए, लेकिन अधिकारी शिंदे के प्रति वफादार रहे।
जनवरी में, परांजपे ने आरोप लगाया था कि ठाणे के कुछ पुलिस अधिकारी शिंदे की "निजी सेना" के रूप में काम कर रहे थे। द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए परांजपे ने कहा, “ठाणे पुलिस, खासकर कुछ अधिकारी, शिंदे सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं। ठाणे पुलिस द्वारा दर्ज मामले अदालत में औंधे मुंह गिर रहे हैं क्योंकि पुलिस ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। ज्यादातर मामलों में आरोपी को तुरंत जमानत मिल जाती है।”

परांजपे के खिलाफ एक ही अपराध के लिए 11 एफआईआर दर्ज करने के लिए ठाणे पुलिस की खिंचाई करते हुए, बॉम्बे हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा था, "पुलिस अधिकारी तब तक सबक नहीं सीखेंगे जब तक कि उन पर जुर्माना नहीं लगाया जाता और उनके वेतन से वसूल नहीं किया जाता। इसे रोकना होगा। अंतत: भुगतना तो आम आदमी है।”
ठाणे के एक पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि कुछ संवेदनशील मामलों में राजनेता सीधे थाना प्रभारी को फोन करते हैं और इनपुट देते हैं।

'न गिरफ्तारी, न चार्जशीट'

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "ऐसे मामलों में भी जहां राजनीतिक लगने वाली एफआईआर दर्ज की गई हैं, कोई कार्रवाई नहीं की गई है - न तो आरोपी गिरफ्तार हुए हैं, न ही चार्जशीट दायर की गई है। कुछ मामलों में, जैसे आव्हाड के खिलाफ छेड़खानी का मामला, एक महिला के सामने आने और शिकायत देने के बाद, पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। अगर शिंदे खेमे के नेताओं के खिलाफ शिकायत दी जाती है तो उन मामलों में भी कार्रवाई की जाएगी।

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कमिश्नर सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “शुरुआती जांच के बाद सभी एफआईआर दर्ज की जाती हैं। गिरफ्तारियां केवल वहीं की जाती हैं जहां कानून की मांग हो और जांच के लिए आवश्यक हो। हम निष्पक्ष जांच करते हैं और यह तय करने के बाद ही चार्जशीट दायर की जाती है कि रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं जो अदालत में जांच के दायरे में आएंगे।
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क़मर वहीद नक़वी
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