loader

महाराष्ट्र: बीजेपी में मचेगी भगदड़?, पार्टी छोड़ेंगे कांग्रेस-एनसीपी से आए नेता!

क्या महाराष्ट्र की राजनीति में विधानसभा चुनाव से पहले चला दल-बदल का ‘खेल’ एक बार फिर खेला जाएगा? प्रदेश में जिस तरह से राजनीतिक हलचल बढ़ रही है, उससे तो यही लगता है कि आने वाले दिनों में बीजेपी ही नहीं कांग्रेस और एनसीपी के जो नेता पार्टी छोड़कर गए थे, वे पुरानी पार्टियों में वापसी करेंगे। इसका बड़ा कारण है राजनीति में शुगर लॉबी, शिक्षा लॉबी और दुग्ध उत्पादक संघ या डेयरी मालिकों का बढ़ता प्रभाव। ये तीनों ही लॉबी हमेशा सत्ता के साथ क़दमताल करती रहीं हैं। 

देवेंद्र फडणवीस से पहले 15 साल तक सत्ता कांग्रेस-एनसीपी के हाथों में थी लिहाजा ये नेता उनके साथ थे। बीच में सत्ता बीजेपी-शिवसेना के सत्ता में आने पर वे इनके साथ चले गए। अब फिर सत्ता बदली है तो बदलाव के दाँव-पेच खेले जाने लगे हैं। इससे अलग एक ‘खेल’ बीजपी में देवेंद्र फडणवीस के विरोधियों का चल रहा है। ये विरोधी पार्टी में अपनी अहमियत सिद्ध करना चाहते हैं या वाक़ई पार्टी छोड़ने वाले हैं, यह आने वाले दो-तीन दिनों में जाहिर हो जाएगा। ऐसा ही कुछ संकेत बीजेपी नेता एकनाथ खडसे की दिल्ली में शरद पवार से मुलाक़ात और उसके बाद उद्धव ठाकरे से होने वाली भेंट दे रही है। 

एकनाथ खडसे ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेताओं से भी मुलाक़ात की है जिससे स्पष्ट हो गया है कि वह अब नई पारी खेलने वाले हैं। खडसे ही नहीं, पूर्व मंत्री पंकजा मुंडे भी दो दिन पहले हुई बीजेपी की बैठक से ग़ैर-हाजिर रहीं।

खडसे ने कुछ दिन पहले यह सवाल भी उठाया था कि वह बीजेपी में क्यों बनें रहें जबकि पार्टी के कुछ नेता उन्हें हाशिये पर धकेल चुके हैं। खडसे अपनी बेटी रोहिणी खडसे व पंकजा मुंडे की विधानसभा चुनावों में हार के लिए पार्टी नेताओं की तरफ़ लगातार उंगली उठा रहे हैं। यही नहीं, खडसे पार्टी के उन नेताओं के साथ भी बैठकें कर रहे हैं जिनके टिकट देवेंद्र फडणवीस ने इस बार काट दिए थे और मंत्री होने के बावजूद भी वे चुनाव नहीं लड़ सके थे। 

ताज़ा ख़बरें
महाराष्ट्र में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर नये नेता का चुनाव होना है, लिहाजा इस पद के लिए भी लॉबिंग चल रही है, लिहाजा यह भी कहा जा रहा है कि पंकजा मुंडे सहित कुछ नेता दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे, वर्तमान में अध्यक्ष पद संभाल रहे चंद्रकांत पाटिल को ही अध्यक्ष बनाया जाएगा, इस बात के भी ठोस संकेत मिल रहे हैं। इसके पीछे कारण यह है कि पाटिल वर्षों तक गुजरात में बीजेपी के प्रभारी थे और उनके पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से नजदीकी संबंध हैं। साथ ही वह अमित शाह की ससुराल, कोल्हापुर के रहने वाले भी हैं। 
सवाल यह उठता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में नरेंद्र मोदी-अमित शाह के युग में देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री रहते हुए जो किया है क्या उससे महाराष्ट्र में राजनीति की नई परंपरा की शुरुआत हो गयी है?

प्रदेश में इससे पहले राजनीतिक दल-बदल के वे फ़ॉर्मूले नहीं अपनाये गए जिन्हें इस बार प्रयोग में लाया गया। विधानसभा चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर बीजेपी ने कांग्रेस और एनसीपी के करीब 35 विधायकों को दल-बदल करवाकर अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था और इसका सीधी मक़सद था प्रदेश में अपने बूते पर बहुमत का (145) आंकड़ा छूना और उसके बाद शिवसेना को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाना। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और प्रदेश की तीन पार्टियां शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस साथ आ गईं और सरकार भी बना ली। 

आने वाले एक साल में प्रदेश में बड़े पैमाने पर जिला परिषदों व नगरपालिका, महानगरपालिका के चुनाव हैं। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के इस नए गठबंधन से स्थानीय स्तर पर सत्ता के समीकरण बड़े पैमाने पर बदलेंगे, लिहाजा कांग्रेस, एनसीपी के ऐसे नेता जो बीजेपी से विधायक चुनकर आ गए हैं, वे भी घर वापसी के जुगाड़ में लग गए हैं। 

एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोरात ने तो इस संदर्भ में बयान भी दिए हैं कि कई नेता वापसी की योजना बना चुके हैं, बस समय का इंतजार कर रहे हैं। हमारे देश में अब राजनीति के लिए विचारधारा की सीमा सिर्फ सत्ता रह गयी है तो ऐसे में सबकुछ संभव है।

विधानसभा चुनावों के पूर्व जो दल-बदल का जलसा हुआ था उसमें एक बात स्पष्ट रूप से सामने आई थी कि ऐसे नेताओं को सरकारी जाँच से भी बचना है और अपने आर्थिक साम्राज्य को भी बचाना है। 

प्रदेश की राजनीति शुगर लॉबी, शिक्षा लॉबी, दूध लॉबी के हाथों में केंद्रित है। पहले ये लॉबी नेताओं को चंदा देती थी लेकिन बाद में यह स्वयं नेता बन गयी और प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो गयी। सत्ता बनाने और बिगाड़ने में इनकी अहम भूमिका है। चुनावों के दौरान पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने आरोप लगाया था कि बीजेपी चीनी मिलों पर चढ़े कर्जों व गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का दबाव बनाकर इन मिलों के मालिकों को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है।

शिंदे के बयान के बाद एनसीपी के बाग़ी नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री अजीत पवार की तरफ़ से भी ऐसा ही बयान आया था। महाराष्ट्र की राजनीति में यह बात आम है कि एक शुगर मिल या दुग्ध उत्पादक संघ या डेयरी का मालिक एक विधायक है। ये लोग अपने क्षेत्र के हजारों किसानों से जुड़े होते हैं लिहाजा उसी के दम पर चुनाव भी जीत जाते हैं। 

प्रदेश के गन्ना और दुग्ध उत्पादकों तथा किसानों के मुद्दों पर जमकर संघर्ष करने वाले पूर्व सांसद तथा स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के अध्यक्ष राजू शेट्टी ने तो कई बार शुगर लॉबी और सरकार के बीच चल रहे ‘खेल’ को लेकर हाई कोर्ट में मामला भी दायर किया है। राजू शेट्टी के अनुसार, महाराष्ट्र की जिन 180 के लगभग चीनी मिलों पर किसानों के पैसे बकाया हैं, उनमें से लोकसभा चुनाव के पहले तक 77 बीजेपी नेताओं, 53 एनसीपी नेताओं, 43 कांग्रेस नेताओं और शेष शिवसेना नेताओं के स्वामित्व की थीं।

राजू शेट्टी कहते हैं, ‘महाराष्ट्र की इन मिलों का बकाया 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है, सत्तारूढ़ पार्टियां अक्सर सहकारी बैंकों से ऋण मंजूर करा लेती हैं या अपनी मिलों के लिए तोहफों की घोषणा कर देती हैं। यही कारण है कि महाराष्ट्र के चीनी उद्योगपति यानी मिल मालिक सत्ता में बने रहने के लिए हर चुनाव में पार्टी बदल लेते हैं।’

पूर्व मुख्यमंत्री विजय सिंह मोहित पाटिल, जो पहले एनसीपी में थे, 2019 में बीजेपी में चले गए। सोलापुर जिले में उनकी चीनी मिलें हैं और वह सबसे बड़े बकायेदारों में से एक हैं। उन्होंने चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच भी साझा किया था। सोलापुर जिले में उनकी कंपनी महर्षि शंकर राव मोहिते पाटिल को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री है, जिस पर 400 करोड़ रुपये का ऋण बकाया है। 

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले राधाकृष्ण विखे पाटिल अपने बेटे के टिकट का बहाना बनाकर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए। पाटिल ने 2017 में अपने शक्कर के कारखाने के लिए मुंबई जिला केंद्रीय सहकारी बैंक से 35 करोड़ रुपये का सस्ता ऋण प्राप्त किया था। इस सहकारी बैंक के चेयरपर्सन प्रवीण दरेकर बीजेपी के विधायक हैं, जिन्होंने अन्य निदेशकों के विरोध के बावजूद इस ऋण को मंजूरी दे दी थी। 

फडणवीस सरकार में सहकारिता मंत्री रहे सुभाष देशमुख की चीनी फ़ैक्ट्री में 104 करोड़ रुपये बकाया हैं, जबकि ग्रामीण विकास मंत्री रहीं पंकजा मुंडे की फ़ैक्ट्री में 64 करोड़ रुपये बकाया हैं। 

महाराष्ट्र से और ख़बरें

यानी सुशील कुमार शिंदे के आरोपों में एक बड़ी सच्चाई छुपी है? फडणवीस सरकार ने शुगर फ़ैक्ट्रियों के मालिकों को अपने पक्ष में करने का जो दबाव तंत्र बनाया था उसकी प्रतिक्रिया अब उद्धव ठाकरे की सरकार में भी देखने को मिलेगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता। 

शिवसेना की शुगर लॉबी में पकड़ अब तक मजबूत नहीं है या यूं कह लें कि ना के बराबर है तो वह भी यहां सेंध लगाने की कोशिश करेगी। जबकि कांग्रेस और एनसीपी अपने उन पुराने साथियों को वापस सरकार का दम दिखाकर अपने ख़ेमे में खींचने का प्रयास करेगी।

फडणवीस सरकार के फ़ैसले पर रोक

वैसे, शुगर लॉबी को फायदा पहुंचाने के लिए फडणवीस सरकार के एक अहम फ़ैसले पर नई सरकार ने रोक भी लगा दी है। फडणवीस सरकार ने चुनाव पूर्व पंकजा मुंडे के वैजनाथ सहकारी शक्कर कारखाने को 50 करोड़, धनंजय महाडिक के भीमा शक्कर कारखाने को 85 करोड़, विनय कोरे के तात्यासाहेब कोरे वारणा शक्कर कारखाने को 100 करोड़ व कांग्रेस से बीजेपी में गए  कल्याणराव काले के सहकार शिरोमणि वसंतराव काले कारखाने को 75 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देने का निर्णय किया था। यह निर्णय चुनाव से ठीक पूर्व किया गया था इसलिए नई सरकार के रडार में आ गया। 

उद्धव ठाकरे की सरकार चुनावी साल में किये गए हर निर्णय की समीक्षा कर रही है। ऐसे में एक बात स्पष्ट है कि जो ‘खेल’ दल-बदल के लिए खेला गया था, उसका जवाब देने का कार्यक्रम तय हो चुका है। इस सरकार को स्थापित कराने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले शरद पवार यह कभी नहीं चाहेंगे कि महाराष्ट्र में भी कर्नाटक की पुनरावृत्ति हो। लिहाजा, पवार अब उन 35 विधायकों की वापसी के साथ-साथ अन्य विधायकों को भी अपने खेमे में लाना चाहेंगे ताकि बीजेपी की जो ताक़त दल-बदल के दम पर बढ़ी है उसे कमजोर किया जाए। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

महाराष्ट्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें