अहमद पटेल नहीं रहे, इस खबर ने चौंकाया तो नहीं लेकिन दिल जरूर दुखाया। चौंकाया इसलिए नहीं क्योंकि वह पिछले कई दिनों से बीमार थे और आईसीयू में भर्ती थे। मैं लगातार उनके दामाद से उनकी सेहत का हालचाल ले रहा था। दो-तीन पहले खबर मिली थी कि उनकी हालत स्थिर हो गई है। इसलिए एक उम्मीद थी कि शायद स्वस्थ हो जाएं, लेकिन वह बच नहीं सके। अहमद पटेल कांग्रेस और सोनिया गांधी की ताकत भी थे और कमजोरी भी। वह पार्टी के लिए दर्द भी थे और उसकी दवा भी।
अहमद पटेल: जो दर्द भी थे और दवा भी
- श्रद्धांजलि
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- 25 Nov, 2020

तमाम विवादों और आरोपों के बावजूद अहमद पटेल पर सोनिया गांधी का भरोसा आखिर तक बना रहा और अब जब पटेल इस दुनिया से चले गए हैं तो उनकी जगह सोनिया गांधी और कांग्रेस का संकट मोचक व रणनीतिक प्रबंधक कौन बनेगा, यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब फिलहाल अभी किसी के पास नहीं है।
कांग्रेस में ऐसे लोगों की बड़ी जमात है जो पार्टी की दुर्दशा के लिए अहमद पटेल के वर्चस्व को दोष देते रहे हैं, लेकिन उससे भी बड़ी जमात उनकी है जो यह मानते हैं कि पार्टी ने जो 2004 से लेकर 2014 तक सत्ता का स्वर्णकाल देखा वह अहमद पटेल की ही रणनीति और मेहनत का नतीजा था और जब-जब अहमद पटेल की अनसुनी की गई पार्टी का नुकसान हुआ।