प्रीमियर शिक्षण संस्थानों में जातीय उत्पीड़न की कहानी लगातार जारी है। यह उत्पीड़न दलितों के एडमिशन लेने के समय रैगिंग से शुरू होता है जिसमें जातीय टिप्पणियाँ, पिटाई शामिल होती है। रैगिंग को लेकर तमाम क़ानून बनने के बावजूद दलित अभी भी उससे बच नहीं पाते।
आरक्षण के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाले बार-बार इस बात की दुहाई देते हैं कि अब जातीय भेदभाव नहीं रहा। जबकि जातीय भेदभाव अब भी भारत के शिक्षण संस्थानों सहित विभिन्न संस्थानों में इस कदर फैला हुआ है कि दलितों-पिछड़ों की मेरिट की हत्या कर दी जाती है।