राष्ट्रपति ने अगस्त 2019 में एक आदेश जारी किया था और उसमें कह दिया कि इस खंड 3 में जिस ‘संविधान सभा’ का उल्लेख है, उसकी जगह राज्य की ‘विधानसभा’ समझा जाए। यह आदेश पाँच अगस्त 2019 से लागू भी हो गया था।
इसी खंड 1 में राष्ट्रपति को दिए गए अधिकार का प्रयोग करते हुए ही केंद्र ने ढेरों क़ानून राज्य पर लागू किए हैं। और आज का जो आदेश आया है जिसके तहत देश के सारे क़ानून राज्य पर लागू होंगे, वह भी इसी खंड 1 द्वारा दिए गए अधिकार के तहत आया है।
अब चूँकि संविधान सभा 1952 में बन गई और उसका कार्यकाल 1957 में समाप्त भी हो गया इसलिए ऐसी स्थिति बनती ही नहीं कि संविधान सभा को बुलाए जाने से पहले कोई क़ानून बनाने की नौबत आए। जनवरी 1957 के बाद तो कोई भी क़ानून बनना था तो उसके बाद ही, न कि पहले। इसलिए यह खंड वैसे ही अर्थहीन था।
अनुच्छेद 370 को समाप्त करने या उसमें सुधार करने का जो अधिकार जम्मू कश्मीर की विधानसभा को था, उस अधिकार का उपयोग राज्यसभा और फिर लोकसभा ने किया। यह क़ानूनन तौर पर कितना सही है, यह विशेषज्ञ ही बता सकते हैं।
1. इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी -(क) अनुच्छेद 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू नहीं होंगे;(ख) उक्त राज्य के लिए विधि बनाने की संसद की शक्ति -(i) संघ सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों तक सीमित होगी जिनको राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके, उन विषयों के तत्सस्थानी विषय घोषित कर दे जो भारत डोमिनियन में उस राज्य के अधिमिलन को शासित करने वाले अधिमिलन पत्र में ऐसे विषयों के रूप में विनिर्दिष्ट है जिनके संबंध में डोमिनियन विधानमंडल उस राज्य के लिए विधि बना सकता है; और(ii) उक्त सूचियों के उन अन्य विषयों तक सीमित होगी जो राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार की सहमति से, आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे।स्पष्टीकरण - इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, उस राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राष्ट्रपति से, जम्मू-कश्मीर के महाराजा की 5 मार्च 1948 की उद्घोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप में मान्यता प्राप्त थी;(ग) अनुच्छेद 1 और इस अनुच्छेद के उपबंध उस राज्य के संबंध में लागू होंगे;(घ) इस संविधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, उस राज्य के संबंध में लागू होंगे।परंतु ऐसा कोई आदेश जो उपखंड (ख) के पैरा (i) में निर्दिष्ट राज्य के अधिमिलन पत्र में विनिर्दिष्ट विषयों से संबंधित है, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।परंतु यह और कि ऐसा कोई आदेश जो अंतिम पूर्ववर्ती परंतुक में निर्दिष्ट विषयों से भिन्न विषयों से संबंधित है, उस सरकार की सहमति से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।2. यदि खंड (1) के उपखंड (ख) के पैरा (ii) में या उस खंड के उपखंड (घ) के दूसरे परंतुक में निर्दिष्ट उस राज्य की सरकार की सहमति, उस राज्य का संविधान बनाने के प्रयोजन के लिए संविधान सभा बुलाए जाने से पहले दी जाए तो उसे ऐसी संविधान सभा के समक्ष ऐसे विनिश्चय के लिए रखा जाएगा जो वह उसपर करे।3. उस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही ऐसी तारीख़ से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे:परंतु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खंड (2) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफ़ारिश आवश्यक होगी।