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गणतंत्र को बचाने के लिये अर्णब जैसे टीवी एंकरों से बचें!

हम सभी को इस उम्मीद से मताधिकार दिया गया है कि हम इस शक्ति का इस्तेमाल ज़िम्मेदारी के साथ देश के हित में करेंगे। लेकिन, ऐसा तभी होगा जब हम उन ख़बरनवीसों से ख़बरदार रहें जो प्राइम टाइम का इस्तेमाल एक मनोरंजक रंगमंच की तरह करते हैं और ग़ैरज़रूरी और झूठी ख़बरों को सनसनीखेज बनाकर सत्ता पक्ष को जनहित से जुड़े बुनियादी सवालों से बचाने और देश की जनता को गुमराह करने के लिए करते हैं।
डॉ. अजय कुमार

19वीं शताब्दी में जब पूरे यूरोप में लोकतंत्र तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा था, तब कुछ लोग ऐसे भी थे जो जनता को बराबरी का मताधिकार देने के पक्ष में नहीं थे। वास्तव में वे आबादी को एक भीड़ के रूप में देखते थे तथा वे भीड़ के विवेक, आचरण और सही निर्णय लेने की क्षमता को लेकर असमंजस में थे। ब्रिटेन के कुछ विचारकों का मानना था कि लोकतंत्र को धीरे-धीरे विभिन्न चरणों में लागू किया जाना चाहिए तथा मतदान का अधिकार धनी, शिक्षित तथा संभ्रात वर्ग के लोगों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। मशहूर विचारक जे.एस. मिल ने तर्क दिया कि सभी को मताधिकार देने के बजाय इसे सिर्फ़ शिक्षित लोगों तक ही सीमित रखा जाए।

सौभाग्य से, जे.एस. मिल जैसे महानुभावों के विचारों को हमारे संविधान निर्माताओं का समर्थन नहीं मिला। भारत के विद्वान संविधान निर्माताओं के नेतृत्व में भारत की जनता ने साहसिक और अग्रगामी सोच के तहत एक ऐसे संविधान का निर्माण किया जो देश के समस्त वयस्क नागरिकों को बराबरी के मताधिकार की गारंटी देता था। हमारे संविधान निर्माताओं ने वोट देने के अधिकार को जागरूक लोकशक्ति के रूप में देखा तथा जनता के ‘विवेक’ और ‘निर्णय लेने की क्षमता’ के प्रति विश्वास जताया। भारत का संविधान देश की समस्त जनता को न सिर्फ़ अपनी पसंद की सरकार चुनने की आज़ादी देता है, बल्कि उसे सरकारों को नियंत्रित करने की अमोघ शक्ति भी देता है।

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ज़ाहिर तौर पर मताधिकार की सार्वभौमिकता हमारे लोकतंत्र को निरंकुश और भ्रष्ट सरकारों से बचाने का एक अद्भुत माध्यम है। लेकिन, दुर्भाग्य से भारत में टेलीविज़न समाचार माध्यम का एक वर्ग देश के मतदाताओं को गुमराह कर उसके निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है। भारत में टीवी पत्रकारिता ने लम्बे समय तक समाचारों की सटीकता और निष्पक्षता को काफ़ी हद तक बरकरार रखा था। किन्तु, पिछले कुछ वर्षों में इसके आचरण में विध्वंसकारी बदलाव आये हैं। अर्णब गोस्वामी ऐसे ही एक टीवी मीडिया समाचार वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका मक़सद अभद्र टिप्पणियों के माध्यम से राजनेताओं का चरित्र हनन करना तथा ग़ैरज़िम्मेदार तरीक़े से देश की जनता को ग़ैरज़रूरी बहस में उलझाकर जनहित से जुड़ी ज़रूरी ख़बरों को हाशिये पर डालना शामिल है।

गोस्वामी जब टीवी पर आते हैं तो वह चिल्ला-चिल्ला कर लोगों से देशभक्त बनने, राष्ट्रवादी बनने, तथा वैसे लोग जिन्हें वह देश का दुश्मन मानते हैं, उनके ख़िलाफ़ जनता को भारतीय मूल्यों के ध्वजवाहक के रूप में खड़े होने का आह्वान करते हैं। हालाँकि, उनका आचरण काफ़ी हद तक, हिंदी फ़िल्मों के उन खलनायकों जैसा प्रतीत होता है। अर्णब के वाट्सऐप वार्तालापों से भारत के टीवी न्यूज़ जगत के इस सबसे प्रसिद्ध प्राइम टाइम ‘देशभक्त’ के देशद्रोह के स्तर का पता चलता है तथा वह हिंदी फ़िल्मों के खलनायकों जैसे दोहरे चरित्र की तरफ़ इशारा करता है।

इन वाट्सऐप वार्तालापों से पता चलता है कि गोस्वामी ने भारतीय सेना के बालाकोट स्ट्राइक की योजना को इसके क्रियान्वयन के तीन दिन पहले ही एक वाट्सऐप चैट के माध्यम से दूसरों के साथ साझा कर लिया था।

एक औसत बुद्धि वाले व्यक्ति को भी यह मालूम है कि इतने ख़तरनाक सैन्य अभियान की जानकारी सिर्फ़ प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री तथा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी आदि को ही होती है। अब सवाल यह है कि इतने गोपनीय सैन्य अभियान की जानकारी किसके द्वारा गोस्वामी को लीक की गई? इसका दोषी कौन है? वह गोपनीय सैन्य सूचना जो अर्णब ने एक सामान्य बातचीत के क्रम में वाट्सऐप जैसे एक असुरक्षित संचार माध्यम पर साझा की थी, अगर वह पाकिस्तान तक पहुँच जाती तो इस सैन्य अभियान का क्या होता? इस सैन्य अभियान में शामिल सैनिकों के नुक़सान का ज़िम्मेदार कौन होता?

वीडियो में देखिए, अर्णब पर सरकार कार्रवाई क्यों नहीं करती?

एक और सवाल लाजिम है कि कहीं पुलवामा में, जहाँ एक आतंकी हमले में 40 भारतीय जवान शहीद हुए थे, उसके पीछे भी कहीं इसी प्रकार की अति गोपनीय सैन्य सूचना के लीक होने की घटना तो नहीं है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद, जिसके परिणामस्वरूप 40 सीआरपीएफ़ जवानों की शहादत हुई थी, इस देशभक्त पत्रकार का यह कहना कि हमारे 40 सैनिक मारे गए हैं, अब मोदी चुनाव जीत जायेंगे, वास्तविक जीवन में गोस्वामी के घृणित और शर्मनाक आचरण की तरफ़ इशारा करते हैं। ज़ाहिर तौर पर जब देश 40 सैनिकों की शहादत का गम मना रहा था, गोस्वामी अपने टीवी चैनल के TRP बढ़ने का जश्न मना रहा था। इन दोनों घटनाओं की जाँच आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत होनी चाहिए तथा देश द्रोहियों को सज़ा मिलनी चाहिए।

लेकिन सवाल यह है कि सत्ता के इस खेल के असली बाजीगर कौन हैं। अर्णब की चैट से यह पता चलता है कि वह सत्ता के सर्वोच्च शिखरों पर बैठे लोगों का कितने क़रीबी हैं। इस चैट से उन भ्रष्टाचारों का पता चलता है, जिन्हें यह सरकार लगातार प्रोत्साहित करती है ताकि गोस्वामी जैसे लोग सरकार के पक्ष में टीवी पर ख़बरें चलाते रहें और अपनी टीआरपी बढ़ाते रहें, भले ही देश का कितना भी नुक़सान हो जाए।

चैट में एक स्थान पर गोस्वामी BARC के तत्कालीन प्रमुख दासगुप्ता के सामने अपनी प्रधानमंत्री से निकटता की शेखी बघारते हुए नहीं थकते और कहते हैं कि वह प्रधानमंत्री के कार्यालय और सूचना और प्रसारण मंत्रालय में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर न्यूज़ इंडस्ट्री से सम्बंधित सरकारी नीतियों को प्रभावित करने वाले हैं। सवाल है कि एक समाचार एंकर के पास प्राइम मिनिस्टर तक ऐसी अप्रतिबंधित पहुँच क्यों है? तथा इस भाई-चारे के पीछे किस प्रकार का लेन-देन शामिल है? ये सभी प्रासंगिक प्रश्न हैं जिनकी जाँच आवश्यक है। इसी प्रकार के एक अन्य चैट में भूतपूर्व सूचना और प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की चर्चा है, जिसमें राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कथित रूप से अर्णब को एक शिकायत के बारे में बताया था जो उनके विभाग को गोस्वामी के न्यूज़ चैनल के ख़िलाफ़ प्राप्त हुई थी, जिसे उपरोक्त सूचना और प्रसारण मंत्री महोदय ने कूड़े के ढेर में डाल दिया था।

arnab goswami tv journalism criticised - Satya Hindi

इन सभी वार्तालापों की प्रकृति दुनिया की नज़रों से छिपा कर रखे गए पीएम मोदी के नेतृत्व वाली इस बीजेपी सरकार के स्याह पक्ष की पोल खोलती हैं। 

गोस्वामी जैसे समाचार एंकरों के द्वारा देश के मतदाता और अन्य लोग लगातार गुमराह किये जा रहे हैं। तथ्य ये हैं कि इस सरकार के कार्यकाल में बड़े पैमाने पर आतंकी हमले हुए हैं। देश की आर्थिक स्थिति पहले से कमज़ोर हुई है तथा सामाजिक स्तर पर देश में तनाव और वैमनस्य बढ़ा है। इसके अलावा चीन और अन्य पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध पहले से अधिक ख़राब हुए हैं। 

ये सभी मुद्दे सरकार की कार्यप्रणाली और नीयत को सवालों के कटघरे में खड़ा करने के लिए पर्याप्त हैं, किन्तु यह तभी हो सकता है जब हम गोस्वामी जैसे लोगों से गुमराह होना बंद कर दें और सरकार से उन मुद्दों पर सवाल करें जो वास्तव में हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
हम सभी को इस उम्मीद से मताधिकार दिया गया है कि हम इस शक्ति का इस्तेमाल ज़िम्मेदारी के साथ देश के हित में करेंगे। लेकिन, ऐसा तभी होगा जब हम उन ख़बरनवीसों से ख़बरदार रहें जो प्राइम टाइम का इस्तेमाल एक मनोरंजक रंगमंच की तरह करते हैं और ग़ैरज़रूरी और झूठी ख़बरों को सनसनीखेज बनाकर सत्ता पक्ष को जनहित से जुड़े बुनियादी सवालों से बचाने और देश की जनता को गुमराह करने के लिए करते हैं।
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