बुधवार 25 दिसंबर को महामना मदन मोहन मालवीय ,अटल विहारी वाजपेयी के साथ ही जीसस (ईसा मसीह) और जिन्ना का भी जन्मदिन है। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने सबकी स्मृतियों को प्रणाम करते हुए अटल के जीवन से जुड़ी बातों पर रोशनी डाली है। पढ़ियेः
नब्बे के दशक में धर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय में फंसी राजनीति में भी अटल प्यार की पगडंडी बनाने की कोशिश करते हैं । काजल की कोठरी से साफ-सुथरे निकले हैं । जो विचारधारा से जुड़े हैं अटल उनके लिए भरोसा हैं । और जो विचारधारा से दूर हैं उनके लिए उम्मीद ।भारतीय राजनीति में अटल से दूर होता रास्ता आपको कटुता की तरफ ले जाएगा ।अटल आदर्श भारतीय राजनेता का मानक कहे गए । वे सर्वसमावेशी राजनीति के शिखर पुरूष कहे जा सकते हैं। उनका मानना था कि बोलने के लिए वाणी चाहिए और चुप रहने के लिए वाणी और विवेक दोनो।अटल जी सोलह साल लखनऊ के सांसद रहे और उस दौरान मैं जनसत्ता का राज्य संवाददाता ।तब जनसत्ता खूब पढ़ा जाने वाला अखबार था।देश में उसका असर और रसूख था।
अटल जी लखनऊ में होते थे तो मुझसे जरूर बात होती थी।मैं उनका मुंहलगा था।कहीं बैठकी हुई तो किसी ने मजाहिया अंदाज में वही कहा जो अक्सर कहा जाता था।’अटल जी आदमी अच्छे हैं लेकिन गलत पार्टी में हैं ‘।कहने वाले नेताजी विरोधी पार्टी के थे । वाजपेयी जी कहते है- “अगर मैं अच्छा आदमी हूं तो गलत पार्टी में कैसे रह सकता हूं और अगर गलत पार्टी में हूं तो अच्छा आदमी कैसे हो सकता हूं।अगर फल अच्छा है तो पेड़ खराब नहीं हो सकता”।
मैने अटल जी के मिजाज के कई रंग देखे और उन्हें हर रंग में बेजोड़ पाया।ये बात 1999 की है।तब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे औरअटल जी देश के प्रधानमंत्री। कल्याण सिंह ने किन्हीं विशेष कारणों से पार्टी नेतृत्व के खिलाफ झंडा उठा लिया था।वे अटल जी के भी खिलाफ हो गए।बाद में उन्हें मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ा और रामप्रकाश गुप्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
मैंने उनसे पूछा कल्याण सिंह आए थे। उन्होंने सिर हिलाकर ‘हां’ कहा। क्या बात हुई? मेरे सवाल को उन्होंने अनसुना कर दिया। मैंने दुबारा पूछा अटल जी ने फिर अनसुना किया। दाहिने कान से उन्हें सुनने में कुछ परेशानी थी। वे ‘हियरिंग एड’ लगाते थे। मैंने दूसरी तरफ जाकर जोर देकर पूछा क्या बात हुई, कल्याण सिंह से? आपसे क्या शिकायत है उन्हें? अटल जी ने अपनी सदरी की जेब में हाथ डाला और ‘हियरिंग एड’ निकाल कर मुझे दिखाते हुए बोले- “मैंने तो कुछ सुना ही नहीं। मेरी मशीन जेब में थी।“ अप्रिय बात न सुनने की यह भी एक अटल शैली थी।
तभी लखनऊ के प्रमुख शहरियों ने अमृत लाल नागर के नेतृत्व में नारा दिया ‘दिल दीजिए दिलरूबा को वोट शमशुद्दीन को’। मामला पलटा, हकीम साहब चुनाव जीत गए। मेरे जमीनी सोर्स लगातार मुझे रिपोर्ट दे रहे थे कि कुछ ऐसी ही स्थितियां अटल जी के सामने भी थीं। खबर पढ़कर अटल जी ने मुझे फोन किया। कहने लगे- “गजब, आपने यह कहानी ढूंढकर हमारे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा दिया है। जो भीड़ से परेशान हो रहे थे। बहुत धन्यवाद।“ मैंने कहा- अटल जी इसमें धन्यवाद कैसा? जो पाया, वही लिखा।
इसके बाद मैंने एक और रिपोर्ट लिखी जिसमें तमाम समीकरणों और जमीनी स्थितियों के मद्देनजर अटल जी की जीत को पक्की बताया गया था। एक रोज अटल जी ने मुझे बुलाया और कहा- “दिल्ली में आपकी विश्वनीयता बहुत है। कहीं ऐसा ना हो मेरे पक्ष में छपने वाली इन रिपोर्ट से आपकी निष्पक्षता खतरे में पड़े। आप उसका ध्यान रखें। चुनाव आते जाते रहेंगे। मैं आपमें बहुत संभावना देखता हूं। आपकी खबरों में मेरी बहुत तरफदारी नहीं होनी चाहिए”। मैं सन्न और आवाक था। पहली बार कोई राजनेता ऐसा मिला जो कह रहा है आप मेरे हक में ज्यादा न लिखें। आजतो किसी के खिलाफ लिखें तो सामने वाला दुश्मनी मान लेता है।
अटल जी के भीतर भवितव्यता का अनुमान कर लेने वाली सहज बुद्धि मौजूद थी। इसका भी मुझे परिचय मिला। यह बात जुलाई 1995 की है। भाजपा में इस बात को लेकर पशोपेश था कि अटल जी के नेतृत्व में चुनाव हो या आडवाणी को आगे कर। पुणे में हुई कार्यसमिति की बैठक में अटल जी पार्टी के अध्यक्ष तो चुने गए। पर पार्टी किसके चेहरे पर चुनाव लड़े इस बात पर भीतर भीतर बहस चल रही थी। अटल जी को इस बहस का अहसास था कि कुछ लोग आडवाणी को नेता बनाना चाहते हैं।
एक और किस्सा याद आ रहा है । बात 1993 की है। उस रोज़ लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सनसनी फैल गई थी। लखनऊ से दिल्ली के लिए उड़ान भर रहे इंडियन एयरलाइन्स के प्लेन को हाईजैक कर लिया गया था। तारीख थी 22 जनवरी 1993 की। लखनऊ से हवाई जहाज अभी उड़ा ही था कि 15 मिनट के बाद ही अफरातफरी की स्थिति हो गई। एक आदमी हाथ में कपड़ा लपेटे हुए चेतावनी भरे लहजे में कह रहा था, 'मेरे हाथ में केमिकल बम है। इस प्लेन को फौरन लखनऊ वापस ले चलो, वरना अंजाम बेहद भयानक होगा।' यात्रियों की जान सूख चुकी थी। आनन-फानन में लखनऊ स्थित एयर ट्रैफिक कंट्रोल को प्लेन के हाइजैक होने की खबर दी गई। विमान में 48 यात्री थे। अब तक जहाज़ लखनऊ के हवाई अड्डे पर वापस लैंडिंग कर रहा था।
जब हाइजैक की वजह मालूम चली तो अधिकारी सन्न रह गए। हाइजैकर अटल बिहारी वाजपेयी को बुलाने की मांग कर रहा था, वरना जहाज उड़ा देने की धमकी दे रहा था। लखनऊ के उस वक्त के डीएम अशोक प्रियदर्शी थे। वे भागे भागे अटल बिहारी वाजपेयी के पास राज्य अतिथि गृह पहुंचे। अटल जी खाना खाने की तैयारी में थे। वे खाना छोड़कर मौके पर पहुंचे। एटीसी की लाइन पर हाइजैकर से बात कराई गई। मगर वह फिर भी नही माना।
वह उन्हें बुलाने पर अड़ा हुआ था। अटल जी ने कहा मुझे जाने दो। अब डीएम, लालजी टंडन और अटल बिहारी वाजपेयी एक जीप में बैठकर प्लेन तक पहुंचे। हाइजैकर बाहर से बात करने पर नही माना, सो उन्हें भीतर जाना पडा। पहले डीएम अशोक प्रियदर्शी भीतर घुसे, फिर लालजी टंडन प्लेन में घुसे।तब तक वो समझ चुके थे कि अपहर्ता चाहता क्या है। टण्डन जी ने अटल जी को जहाज़ में बुलाया। अब अटल जी उसके सामने थे। उनके सिक्योरिटी गार्ड भी अंदर घुस चुके थे। लालजी टंडन ने हाइजैकर को समझाया कि अटल जी तुम्हारे सामने हैं। तुम पहले उनका पैर छुओ। फिर अपनी बात कहो। हाइजैकर मान गया।
इसी साल की एक और कहानी सुना देता हूं । 1993 में हिमाचल प्रदेश में चुनाव थे। कानपुर के जेके सिंघानिया कंपनी के एक छोटे जहाज से वाजपेयी जी का दौरा था। साथ में बलबीर पुंज और एकाध लोग और थे। जहाज को धर्मशाला पहुंचना था। वाजपेयी जी जहाज में बैठते ही सो जाते थे। तभी विमान के को-पायलट कॉकपिट से बाहर निकले और पुंज जी से पूछा- “क्या आप पहले धर्मशाला आए हैं”। बलबीर पुंज ने पूछा लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं। पायलट ने थोड़ी लाचारी बताते हुए कहाकि हमारे पास दूसरे विश्वयुद्ध का नक्शा है। ए.टी.सी से संपर्क नहीं हो पा रहा है और धर्मशाला ऊपर से दिख नहीं रहा है। पुंज जी घबरा गए, कहा- ध्यान रखिए कहीं गलती से हम चीन की सीमा में ना पहुंच जाएं। तभी वाजपेयी जी की नींद खुली, पूछा- “सभा का समय हो रहा है। हम कब उतरेंगे? सहयोगी ने तात्कालिक समस्या बताई। वाजपेयी जी ने चुटकी ली। यह तो बहुत बढ़िया रहेगा। खबर छपेगी। ‘वाजपेयी डेड’। गन कैरेज में जाएंगे। हालांकि उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अंतिम यात्रा ‘गनकैरेज’ में ही हुई। घबराए पुंज जी बोले, “आपके लिए तो ठीक है मेरा क्या होगा”। वाजपेयी जी ने मजे लेते हुए कहा “यहां तक आए हैं तो वहां भी साथ चलेंगे”। माहौल को हल्का करने के लिए वे फिर बोले जागते हुए अगर ‘क्रैश’ हुआ तो बहुत तकलीफ होगी। इतना कह कर वे दुबारा सो गए। सभी साथी सदमे में थे। बाद में एक दूसरे जहाज से संपर्क हुआ। और अटल जी का जहाज सकुशल कुल्लू में उतरा।
(हेमंत शर्मा के फेसबुक पेज से साभार)