पटना की दोपहर में गर्मी चुभती है। गंगा बहती है जैसे कोई भूली हुई कसम हो। बिहार अपने टूटे शीशे में खुद को देखता है। यह वही धरती है जिसने कभी सम्राटों और ज्ञान की रोशनी को जन्म दिया था। आज यह भारत का सबसे बड़ा विरोधाभास बन गया है। यह वही जगह है जहां प्राचीन गणराज्यों ने लोकतंत्र की नींव रखी थी। आज यहां गरीबी इतनी गहरी है कि नालंदा की संगमरमर की यादें भी फीकी लगती हैं।