इस सिलसिले में बतौर प्रधानमंत्री उनके पिछले करीब आठ साल के और उससे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में दिए गए उनके ज्यादातर भाषणों को देखा जा सकता है। उनके किसी भी भाषण में न तो न्यूनतम संसदीय मर्यादा का समावेश होता है और न ही शालीनता का। अपने राजनीतिक विरोधियों पर आरोप लगाने या कटाक्ष करने में तो वे प्रधानमंत्री पद की गरिमा और मर्यादा को लांघने से भी परहेज नहीं करते।