पिछले महीने जब मेरे संपादक रह चुके आशुतोष जी ने कांग्रेस में जाने की वजह पर लिखने का आग्रह किया तो मैं उलझन में पड़ गया। मेरे जैसे आम आदमी के कहीं जाने या न जाने से क्या फ़र्क पड़ता है कि लेख लिखा जाए! हाँ, एक सक्रिय पत्रकार के रूप में किसी पार्टी के साथ जाने की कोई सफ़ाई ज़रूर हो सकती थी, लेकिन इसमें आत्मप्रशंसा का ख़तरा था, लिहाज़ा लिखना न हो सका। लेकिन कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी के कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद जिस तरह से सोशल मीडिया पर यूँ बौद्धिक कही जाने वाली जमात ट्रोल में बदलते दिख रही है, उसके बाद इस विषय पर लिखना ज़रूरी लग रहा है।