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कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए पुरानी बोतल में युवा शराब

युवा की गर्मी और उम्र की अक्लमंदी, ये इतिहास के एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बुजुर्गों के द्वारा घोषित की गई राजनीतिक लड़ाइयाँ युवा ही लड़ते और जीतते हैं। भारतीय गणतंत्र की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस साधारण किस्म के लोगों से भरी पड़ी होने के कारण कई तरह की दिक्क़तों से जूझ रही है और ऐसे में उसे एक ही जगह से ऑक्सीजन  मिल सकती है और वह है इंडियन यूथ कांग्रेस।

पार्टी के थके हुए लेकिन ऐसे लोग जो रिटायर नहीं हुए हैं, वे अपने महत्व के पुराने और गिरे हुए आधार को पकड़े हुए हैं, ऐसे में कांग्रेस किसी तरह टिकी हुई है तो इसका एक मात्र कारण है युवा कांग्रेस का जुझारूपन। सत्तर की उम्र पार कर चुके लोग आपस में एक दूसरे पर घात प्रतिघात कर रहे हैं और वह भी ऐसे मामूली विषयों पर जैसे किसी नाराज़ पुराने नेता को बीजेपी सरकार से पद्म पुरस्कार मिलना और पार्टी को लोकतांत्रिक बनाने के लिए गांधी परिवार से नियंत्रित संगठन पर मिसाइल से हमला करना। ये पुरातन हो चुके लोग अपनी महात्वाकांक्षा के ढलते दिनों में इस तरह खोए हुए हैं कि केंद्र सरकार से भिड़ने की बात उनके विचार में ही नहीं है।

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कुछ चुनिंदा लोग ही संसद में प्रधानमंत्री के अधिकार और उनकी सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस फड़फड़ा रही है। कुछ नेता पार्टी छोड़ कर दूसरे दलों में जा रहे हैं जहां उन्हें कुछ भी लाभ दिख रहा है। कांग्रेस में अब जो पुराना है, सोना है, वाली बात नहीं रही। यह बात लगभग ख़त्म हो चुकी है। ऐसे में उम्मीद मुट्ठी भर युवा नेताओं पर है जो साधारण पृष्ठभूमि के हैं और कांग्रेस के झंडे को उठाए हुए हैं क्योंकि ऐतिहासिक रूप से युवा कांग्रेस ही कांग्रेस पार्टी का सबसे कारगर गुरिल्ला दस्ता है।

यह पहली बार नहीं है कि इंडियन यूथ कांग्रेस मोदी आग जैसे तत्वों की आग बुझाने में लगी हुई है। यह हमेश ही पार्टी की राजनीतिक ऊर्जा का सुरक्षा दस्ता रहा है, इसमें जान फूंकता रहा है और गांधी परिवार को अंदरूनी और बाहरी हमलों से बचाता रहा है। इसका नेतृत्व अलग- अलग राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के ख़िलाफ़ हिंसक और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में उत्कृष्ट काम करता रहा है।

पिछले दो साल के दौरान इंडियन यूथ कांग्रेस ने कर्नाटक के 41 वर्षीय श्रीनिवास भद्रावती वेंकट के नेतृत्व में बीजेपी और मोदी पर हमले करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। मूल संगठन का ड्राइवर सोया हुआ है जबकि श्रीनिवास की टीम पूरे देश में दौड़ दौड़ कर महंगाई, बेरोज़गारी, पेट्रोलियम की कीमतों, किसानों को शिकार बनाने के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाती रही है। यह ग़ैरक़ानूनी जासूसी, सरकारी उपक्रमों की बिक्री और पटना में छात्रों पर हुए लाठीचार्ज जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरती रही है।

सोच समझ कर योजनाबद्ध तरीके से आन्दोलन चलाने के पीछे इसका एक चालाकीभरा तरीका है। इसकी जिज्ञासा सिर्फ प्रधानमंत्री और उनकी योजनाओं व विकास स्कीमों में है। इसके नारों में प्रमुख हैं- भारत बचाओ आन्दोलन, सोच की सोच से लड़ाई, आधी आबादी पूरा हक़, संविधान बचाओ, नफ़रत छोड़ो वगैरह।

इंडियन यूथ कांग्रेस नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को ध्वस्त करने का आरोप लगाती है। यूथ कांग्रेस के लोगों ने मोदी के 70वें जन्मदिन को राष्ट्रीय बेरोज़गारी दिवस के रूप में मनाया। यह बीजेपी के इस मौके पर हफ़्ते भर चलने वाले कार्यक्रम सेवा सप्ताह का जवाब था। सोशल मीडिया ने मोदी को ज़बरदस्त ढंग से जवाब दिया तो उसके बाद इंडियन यूथ कांग्रेस ने इसके बराबर ही आक्रामक अभियान चलाया जो दिन भर ट्रेंड करता रहा।

इसके पहले जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन का एलान किया तो श्रीनिवास के सिपाहियों ने इसका जवाब नेशनल मिटिगेशन स्कीम से किया। सरकारी संपत्तियों को अपने निजी दोस्तों के हवाले करने और युवाओं को उत्पादक रोज़गार के मौकों से वंचित करने को लेकर सरकार का मजाक उड़ाया गया।

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इंडियन यूथ कांग्रेस सिर्फ आन्दोलन की राजनीति नहीं करती है। कोविड की दोनों लहरों के दौरान इसके स्वयंसेवकों ने दिन रात एक कर कोरोना रोगियों की सेवा की। श्रीनिवास निजी रूप से लोगों को दवाएं, ऑक्सीजन सिलिंडर, और ग़रीबों को मुफ़्त एंबुलेंस तक मुहैया कराते रहे।

इंडियन यूथ कांग्रेस भ्रष्टाचार और चापलूसों को रोकने के लिए वह सुरक्षा कवच है जो गांधी परिवार की परमसत्ता की रक्षा करता है। अपने राजनीतिक जीवन के 70 साल में इसके नेताओं को गांधी परिवार ने खुद शिक्षा दी है, प्रशिक्षण दिया है और बड़ा किया है। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के इस योद्धा दस्ते को आगे बढ़ाया। उन्नीस सौ सत्तर और अस्सी के दशक में पुराने नेताओं का कोपभाजन बनने के बाद इंदिरा गांधी ने युवा कांग्रेस को हथियारों से लैस किया ताकि वे उनके विरोधियों पर हमले कर उन्हें पस्त कर सकें। इसके पहले निर्वाचित अध्यक्ष प्रियरंजन दास मुंशी ने पश्चिम बंगाल में नक्सलियों को मजा चखाया था।

संजय गांधी ने सत्तर के दशक में यूथ कांग्रेस को अपने हाथों में लिया, उन्होंने आपातकाल के दौरान अंबिका सोनी को इसका अध्यक्ष बनवाया और इसके पैदल के सिपाही पांच सूत्री कार्यक्रम को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में लग गए, इसमें पेड़ लगाना और परिवार योजना को लागू करना भी शामिल है।

कांग्रेस  पार्टी जब 1977 में लोकसभा चुनाव हार गई तो संजय गांधी ने कमल नाथ, जगदीश टाइटलर जैसे अपने विश्वस्त युवा नेताओं को आगे किया ताकि वे जनता सरकार के ख़िलाफ़ बड़ी-बड़ी रैलियां कर सकें। संजय के समय इंडियन यूथ कांग्रेस ने मोरारजी देसाई की सरकार के ख़िलाफ़ एक लोकप्रिय आन्दोलन खड़ा कर दिया। उसने जनता पार्टी की अंदरूनी फूट का फ़ायदा उठा कर उसे तोड़ दिया। इसके बाद 1980 के लोकसभा चुनाव में युवा कांग्रेस के 30 प्रतिशत से ज़्यादा नेता संसद में दाखिल होने में कामयाब रहे।

संजय गांधी की त्रासद मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी राजीव को पार्टी में ले आईं और उन्हें युवा कांग्रेस का प्रभारी बना दिया। ग़ुलाम नबी आज़ाद, तारिक अनवर, आनंद शर्मा वगैरह यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने। राजीव गांधी की हत्या के बाद युवा कांग्रेस एक तरह से अनाथ हो गई और यह तब तक वैसी रही जब सोनिया गांधी ने 1998 में बागडोर अपने हाथ में ली।

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चूँकि सोनिया गांधी पुराने और मंझे हुए योद्धाओं से घिरी रहती थी, इंडियन यूथ कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकता में नहीं रही। यह हाल 2004 तक रहा जब राहुल गांधी ने चुनाव में भाग लिया।

जब कांग्रेस सत्ता में थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो गांधी परिवार ने यूथ कांग्रेस को समानान्तर सत्ता केंद्र के रूप में चलाया। राहुल गांधी युवा कांग्रेस के महासचिव और प्रभारी थे। इसके बाद उन्होंने रणदीप सिंह सुरजेवाला, राजीव साटव, अशोक तंवर और श्रीनिवास जैसे अपने वफ़ादारों को इंडियन यूथ कांग्रेस का प्रमुख बनाया। वे पेशेवर लोगों और टेक्नोक्रेट्स को भी अपने साथ ले आए ताकि संगठन को वैचारिक और तकनीकी बढ़त मिल सके।

इंडियन यूथ कांग्रेस सभी सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म पर सक्रिय है। राहुल गांधी ने दिल्ली विश्वविद्यालय और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के ग्रैजुएट कृष्ण अल्लावारु को इंडियन यूथ कांग्रेस का संयुक्त सचिव बनाया।

उनका महत्व युवा कांग्रेस की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित उनके बारे में जानकारी से समझा जा सकता है। वेबसाइट पर लिखा हुआ है, "वे संगठन का नेतृत्व हर मोर्चे पर करते हैं, यह सरकार से किसी मुद्दे पर भिड़ना हो या किसी विषय पर आम जनता के बीच पहुँचना हो। अल्लावरु युवा कांग्रेस के लिए तार्किक बुद्धि का प्रयोग करते हैं और मोदी सरकार की नीतियों की खामियों को उजागर करते हैं। वे संगठन की दशा तय करने की ज़िम्मेदारी साझी करते हैं।"

युवा कांग्रेस को निर्देश दिया गया है कि वह सरकार से किसी रूप में न डरे। राहुल ने चुनौती दे दी है कि मोदी सरकार से किसी भी रूप में डरने वाले के लिए कांग्रेस में कोई ज़िम्मेदारी या हिस्सेदारी नहीं है। उनके प्रशंसकों के अनुसार, यूथ कांग्रेस एक बार फिर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से वंचित तबक़ों के लोगों के लिए राजनीतिक शिक्षण की जगह है। ऐसे समय जब बुजुर्ग कांग्रेसी गांधी परिवार का साथ छोड़ रहे हैं, पार्टी के युवा उनसे आकर्षित हैं।

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अपने पिता, चाचा और दादी की तरह ही राहुल गांधी को उम्मीद है कि वे युवाओं के बल पर कांग्रेस की सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लेंगे।

गांधी परिवार ने अतीत से नाता तोड़ लिया है और भविष्य को लेकर उन्हें उम्मीद है कि युवा कांग्रेस के बिना कांग्रेस शून्य है। राहुल को उम्मीद है कि युवा कांग्रेस की रगों में दौड़ रहा परिवारवाद का एंडीबॉडी पार्टी छोड़ कर जाने की महामारी को रोक सकता है, जिस वजह से वे इंद्रप्रस्थ की सत्ता से दूर रहे हैं।

सार्वजनिक जीवन में महत्व सत्ता से ही मिलता है और गांधी परिवार के पास युवा के मधुर रस के आस्वादन से बेहतर कोई विकल्प नहीं है।

('द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' से साभार)

अनुवाद - प्रमोद कुमार

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प्रभु चावला
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