लाखों की संख्या में जो मज़दूर इस समय गर्मी की चिलचिलाती धूप में भूख-प्यास झेलते हुए अपने घरों को लौटने के लिए हज़ारों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं उन्हें शायद बहुत पहले ही ईश्वरीय संदेश प्राप्त हो चुका होगा कि आगे चलकर समूचे देश को ही आत्म-निर्भर होने के लिए कह दिया जाएगा। शायद इसीलिए उन्होंने केवल अपने अंतःकरण की आवाज़ पर भरोसा किया और निकल पड़े। वे मज़दूर जान गए थे कि सरकारें तो उनकी कोई मदद नहीं ही करने वाली हैं, जो जनता उनकी सहायता के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाना चाहती है उसे भी घरों में तब तक बंद रखा जाएगा जब तक कि वे अपने ठिकानों पर नहीं पहुँच जाते। वरना तो और ज़्यादा दुख भरी कहानियाँ उजागर हो जाएँगी।
‘आत्मनिर्भर’ मानवीय त्रासदी: शोक गीत के बजाए उपलब्धियों का गौरव गान!
- विचार
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- 14 May, 2020

इस बात का विश्लेषण होना अभी बाक़ी है कि केवल पंद्रह दिनों के बीच ही ऐसा क्या हो गया कि देश के चश्मे की फ़्रेम भी बदल गयी और फ़ोकस भी बदल गया। हम वैसे तो पहले से ही स्वदेशी थे पर इस बार ‘विदेशी’ से ‘स्वदेशी’ हो गए। ‘आडी’ से ‘खादी’ पर उतर आए।