जमाते-तब्लीग़ी का दोष बिल्कुल साफ़-साफ़ है लेकिन इसे हिंदू-मुसलमान का मामला बनाना बिल्कुल अनुचित है। जिन दिनों दिल्ली में तब्लीग़ का जमावड़ा हो रहा था, उन्हीं दिनों पटना, हरिद्वार, मथुरा तथा कई अन्य स्थानों पर हिंदुओं ने भी धार्मिक त्योहारों के नाम पर हज़ारों लोगों की भीड़ जमा कर रखी थी। इन सभी के ख़िलाफ़ सरकार को मुस्तैदी दिखानी चाहिए थी लेकिन हमारी केंद्र और राज्य सरकारों ने उन दिनों ख़ुद ही कोरोना के ख़तरे को इतना गंभीर नहीं समझा था।
मौलाना साद को करतूतों के लिए पश्चाताप नहीं, माफ़ी क्यों नहीं माँग रहे?
- विचार
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- 5 Apr, 2020

जमाते-तब्लीग़ी के प्रमुख मौलाना साद के भाषणों पर ग़ौर करें तो पता चलता है कि उन्होंने कोरोना के सारे मामले को मुसलिम-विरोधी और इसलाम-विरोधी सिद्ध करने की कोशिश की थी। मौलाना साद ने अपनी करतूतों के लिए पश्चाताप नहीं किया और माफ़ी नहीं माँगी है। लेकिन इस सारी घटना का दुखद पहलू यह भी है कि कुछ नेता और टीवी वक्ता इस मामले का पूर्ण सांप्रदायिकरण कर रहे हैं।