मीडिया में सेल्फ रेग्युलेशन एक मिथ बन चुका है।तीन दिन पहले सुप्रीम कोर्ट की टीवी मीडिया को लेकर टिप्पणी और सख्त रवैया इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि न्यायालय अब बिना देरी के ‘पेस्टिसाइड्स’ इस्तेमाल करने का मन बना रहा है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ सुप्रीम कोर्ट में 11 सामूहिक रिट याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं द्वारा हेट स्पीच को नियंत्रित करने के लिए न्यायालय से दिशा निर्देश देने की मांग की गई थी।
एंकर की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ऑब्ज़र्वैशन कितना सटीक है उसे नूपुर शर्मा मामले से समझा जा सकता है। भाजपा नेता नूपुर शर्मा के मामले में देखा गया कि जिस कार्यक्रम में उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के बारे में टिप्पणी की थी, यदि उस कार्यक्रम की एंकर चाहतीं तो उन्हे रोक या म्यूट कर सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इससे परिणाम यह हुआ कि महीनों तक देश का एक बड़ा क्षेत्र संवेदनशील बना रहा; अरब देशों से भारत के लिए जो टिप्पणी आई वह तो अपमानजनक थी ही। विदेशी संबंधों और देश की आंतरिक कानून व्यवस्था को तबाह करने वाली इस टिप्पणी को रोका जा सकता था लेकिन नहीं रोका गया। इसके बावजूद सरकार ने टीवी चैनल पर कोई कार्यवाही नहीं की।
यूपीएससी में कुछ खामियाँ हो सकती हैं, उन पर चर्चा की जा सकती है और अपनी आपत्ति भी दर्ज कराई जा सकती है लेकिन एक परीक्षा जिससे देश के लिए, देश को चलाने वाले अधिकारी चयनित किए जाते हैं, वह धर्म के आधार पर षड्यंत्र का कोई अड्डा है, ऐसा मानना उचित नहीं है। यूपीएससी देश के संघीय ढांचे का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है, इसलिए कोर्ट से पहले भारत सरकार को ‘ऐक्शन’ लेना चाहिए था क्योंकि सुदर्शन न्यूज का यह कार्यक्रम देश की अखंडता के साथ खिलवाड़ का एक तरीका था।
लेकिन देश को जलाने और नफरत फैलाने की कोशिश करने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही दिल्ली पुलिस द्वारा नहीं की गई। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस ने हद तो तब कर दी जब उसने सर्वोच्च न्यायालय में हलफ़नामा देकर भरोसे के साथ कहा कि हिन्दू युवा वाहिनी के दिल्ली कार्यक्रम में “कुछ नहीं कहा गया”। हेट स्पीच को जायज ठहराते हुए दिल्ली पुलिस ने कहा “हमें दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुरहना चाहिए”। हेट स्पीच को लेकर पुलिस और प्रशासन का एकतरफा नजरिया इस अपराध को लगातार गति प्रदान कर रहा है।
हेट स्पीच का मुद्दा सिर्फ टीवी न्यूज एंकरों का ही एकतरफा मुद्दा नहीं है। लेकिन टीवी न्यूज बिना यह जाने कि किसी हेडलाइन या बहस का समाज की एकता पर क्या असर पड़ेगा, उसे लगातार प्रसारित करते रहते हैं। टीवी मीडिया की किसी खबर या अफवाह को प्रसारित करने की गति व प्रभाव आज अप्रत्याशित हो चुका है। लेकिन अपने इस प्रभाव को लेकर जिम्मेदारी का अभाव बेलगाम टीवी मीडिया को खतरनाक बना रहा है। TRP की अफ़ीम का असर न्यूज चैनलों के प्राइमटाइम कार्यक्रमों में देखा जा सकता है। 2014 के बाद से हर दिनइस नशे का असर बढ़ता जा रहा है जिसकी परिणति 2014 के बाद से समाज में बढ़ते हेट स्पीच सम्बधी अपराधों में हो रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो(NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार जहां वर्ष 2014 में हेट स्पीच को लेकर 323 मामले दर्ज हुए थे वहीं यह आंकड़ा 2020 में लगभग 600% बढ़कर 1804 मामलों तक जा पहुँचा। यह आंकड़ा ‘नए भारत’ की ‘नई दिशा’ की ओर संकेत कर रहा है, जिसे किसी भी हालत में रोका जाना चाहिए।
भारत के विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट ने नस्ल, जातीयता, लिंग, लैंगिक पहचान और धार्मिक विश्वास के रूप में परिभाषित व्यक्तियों के समूह के खिलाफ घृणा फैलाने और उकसाने को हेट स्पीच माना है। घृणा और उकसावा राजनीतिक हितों के लिए और सांप्रदायिक तनावों को उभारने के उद्देश्य से किया जाता है।चमकदार और साफ-सुथरे दिखने वाले तमाम टीवी एंकर राजनीति के लिए घृणा के टूल बन चुके हैं। एक ऐसा टूल जिसे इन्फॉर्मैशन और मिसइन्फर्मैशन को सतर्कता के साथ फैलाने के लिए तैयार और संवारा गया है। आश्चर्य नहीं कि जो 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा था वह एक नकली वीडियो से शुरू हुआ था उसकी जड़ें इसी झूठी खबरों को परोसने वाली मीडिया के तंत्र में थीं। मीडिया में ऐसे लोगों का कब्जा हो गया है जो मुश्किल से मिली आजादी और इस देश की एकता व अखंडता को मात्र TRP से तौल देना चाहते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की चिंता जायज है कि"हेट स्पीच ताने-बाने में ही जहर घोल देती है...इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।” और यह भी सच है कि "राजनीतिक दल आयेंगे और जायेंगे लेकिन यह देश प्रेस सहित सभी संस्थाओं के साथ अस्तित्व में रहेगा, …पूरी तरह से स्वतंत्र प्रेस के बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता है,…लेकिन सरकार को चाहिए कि वह एक ऐसी मेकेनिज़्म बनाए जिसे सभी मानें..."
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने हाल के दिनों में देश में बढ़ी हेट स्पीच पर चिंता व्यक्त की है। एक वेबिनार में उन्होंने कहा कि "दुर्भाग्य से, सत्तारूढ़ दल में उच्च पदों पर आसीन लोग न केवल हेट स्पीच पर चुप हैं, बल्कि उन्हे समर्थन भी दे रहे हैं।" उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने "वास्तव में पूरी कम्यूनिटी के नरसंहार का आह्वान किया है" इसके बावजूद "इनके खिलाफ मुकदमा चलाने में अधिकारी भी तत्पर नही दिखते हैं।"
हेट स्पीच की परिभाषा क्या है? क्या पहले इसे परिभाषित किया जाना चाहिए? ये सभी विचार कुछ और दिन भारत की एकता से खेलने की अनुमति मांगने का एक सूडो-लीगल तरीका है। जिस तरह गाली-गलौज को परिभाषित करने की जरूरत नहीं उसी तरह हेट स्पीच की भी परिभाषा की जरूरत नहीं। समाज का हर वो व्यक्ति जो स्वयं हेट स्पीच से नहीं जुड़ा हुआ है वह अच्छे से जानता है कि हेटस्पीच क्या है!
विचारों और अभिव्यक्तियों का सरकार के सामने समर्पण का नाम मीडिया नहीं है।