भारतीय समाज में अनेक असमानताएं व्याप्त हैं। कुछ ऐसी ताकतें हैं जो भारतीय संविधान का ही अंत कर देना चाहती हैं। वह इसलिए क्योंकि संविधान समानता की स्थापना के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण औज़ार है।
भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय की रक्षा की ज़रूरत क्यों?
- विचार
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- 28 Sep, 2025

लोकतांत्रिक मूल्यों और समानता को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय की रक्षा अनिवार्य है। पढ़िए, इतिहास के जानकार राम पुनियानी क्या लिखते हैं।
भारत में पितृसत्तात्मक मूल्यों का बोलबाला रहा है। इन मूल्यों का धर्मग्रंथों में महिमामंडन किया गया है। वर्ण-जाति व्यवस्था को भी समाज ने मान्यता दी है। यह भी पवित्र ग्रंथों द्वारा अनुमोदित है। वर्ण-जाति से जुड़ी असमानताएं अनादि काल से हमारी सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा रही हैं और आज भी हैं।
जातिगत असमानता के खिलाफ और समानता और सामाजिक न्याय के पक्ष में पहली महत्वपूर्ण आवाज़ गौतम बुद्ध की थी। समता का मूल्य उनकी शिक्षाओं के केंद्र में था। इसने सामाजिक व्यवस्था को कुछ हद तक प्रभावित किया था। मध्यकाल में, राजशाही के दौर में, भी असमानता बनी रही। कबीर, नामदेव, तुकाराम और नरसी मेहता जैसे संत-कवियों ने जातिगत असमानता की क्रूरता और उसकी अतार्किकता पर प्रकाश डाला। केरल में नारायण गुरु ने जाति प्रथा के खिलाफ एक बड़ा आन्दोलन शुरू किया।