हाथरस केस में जिस ‘जस्टिस फ़ॉर हाथरस विक्टिम.कॉर्र्ड.को’ के ज़रिए ‘दंगा फैलाने की साज़िश का पर्दाफाश’ हुआ वह 30 सितंबर को बनी थी। अगर वह ज़ीरो आवर में बनी हुई मान ली जाए, तब भी उसके बनने के ढाई घंटे बाद ही पीड़िता का हाथरस में अंतिम संस्कार कर दिया गया। महज ढाई घंटे में इस वेबसाइट ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि यूपी सरकार को कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों से दंगे का ख़तरा पैदा हो गया और उसने बगैर परिवार को लाश सौंपे उसका अंतिम संस्कार कर दिया। कम से कम सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार के दिए बयान के मतलब यही हैं।