loader

लखीमपुर : प्रधानमंत्री जी! आप भूल गए हों … इतिहास नहीं भूलता 

4 अगस्त 2020 को लेबनान की राजधानी बेरूत, जो एक बंदरगाह भी है, में एक विस्फोट हुआ। विस्फोट बड़ी मात्रा में रखे अमोनियम नाइट्रेट के कारण हुआ था, जिसे बंदरगाह प्रशासन ने एक लावारिस जहाज़ से ज़ब्त किया था। अपर्याप्त सुरक्षा प्रबंधों की वजह से यह विस्फोट हुआ, जिसमें कई लोग मारे गए। आज एक साल गुजर जाने के बाद भी विस्फोट के असली कारणों का पता नहीं चल पाया है, इसके बावजूद लेबनान के प्रधानमंत्री हसन डियब ने घटना के एक सप्ताह के अंदर 'ज़िम्मेदारी' लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। 

क्या कारण रहा होगा इस्तीफे के पीछे? डियब चाहते तो त्यागपत्र न देते, लेकिन उन्होंने अपने देश के नागरिकों और भावी नेताओं के सामने ज़िम्मेदारी भरी एथिकल पॉलिटिक्स का नमूना पेश किया। कुछ दिन और पद पर बने रहने से हसन डियब को फ़ायदा हो सकता था, लेकिन राष्ट्र के रूप में लेबनान में इससे ग़लत संदेश जा सकता था। प्रधानमंत्री सच्चे राष्ट्रभक्त साबित हुए।

लेकिन भारत जिसकी आधुनिक उत्पत्ति में महात्मा गांधी, नेहरू और आंबेडकर जैसे विचारकों की ईंटें लगी हुई हैं, यहाँ दशकों से एथिकल पॉलिटिक्स के दर्शन दुर्लभ हैं।

एथिकल पॉलिटिक्स!

हेनरी किसिंजर ने कहा था- "ख़तरों के अपरिहार्य बनने से पहले उनसे निपट लेना, यही सरकार चलाने की असली कला है।" लेकिन दुर्भाग्य से वर्तमान भारत में यह नहीं दिखता। 

लखीमपुर घटना में कार्रवाई के तीन स्तम्भ थे, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, लेकिन किसी ने घटना के पहले और बाद में कोई कार्रवाई नहीं की। किसिंजर के शब्दों में 'इनमें सरकार चलाने की कला नहीं है।'

लखीमपुर खीरी की घटना जिसकी ज़िम्मेदारी केंद्र से लेकर प्रदेश नेतृत्व तक किसी ने नहीं ली, प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला, केन्द्रीय गृह मंत्री मौन हैं, लखनऊ के सांसद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी चुप हैं, लगभग हर मामले में राष्ट्रीय एकता का ऐंगल खोजने वाले आरएसएस के गणमान्य कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं। 

ख़ास ख़बरें

रणनीतिक खामोशी?

जिस किस्म की 'रणनीतिक खामोशी' है, उससे मुझे पूरा उत्तर भारत एक रंगमंच सा प्रतीत हो रहा है, जिसमें अलग अलग राज्यों के विभिन्न किरदार शामिल हैं। इसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश व केंद्र के बड़े नेता किरदारों की मुख्य भूमिका में हैं।

अनवरत मंचन के बीच पहला डायलॉग उस किरदार का है, जिसे गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के नाम से जाना जाता है। उन्हें भारत में पुलिस और क़ानून व्यवस्था को देखने की ज़िम्मेदारी मिली है। देश भर के आईपीएस एवं आईबी, रॉ तथा तकनीकी रूप से सीबीआई जैसी संस्थाएं भी केन्द्रीय गृहमंत्रालय के अंतर्गत आती हैं। 

lakhimpur kheri farmers killing : narendra modi silence - Satya Hindi
अजय कुमार मिश्रा, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री

क्या कहा था मंत्री जी ने?

एक दृश्य में मंत्री जी 25 सितम्बर को लखीमपुर खीरी में अपनी एक सभा में कहते हैं  "हम आप को सुधार देंगे 2 मिनट के अंदर.. मैं केवल मंत्री नहीं हूं… सांसद बनने से पहले जो मेरे विषय में जानते होंगे, उनको यह भी मालूम होगा कि मैं किसी चुनौती से भागता नहीं हूं और जिस दिन मैंने उस चुनौती को स्वीकार करके काम करना शुरू कर दिया उस दिन पलिया नहीं लखीमपुर तक छोड़ना पड़ जाएगा यह याद रखना..।"

गृह राज्य मंत्री ने सही ही कहा होगा, क्योंकि जिस तरह वे अपनी चमचमाती कार का शीशा गिरा कर किसानों (जनता)को अंगूठा(अपनी कामयाबी और किसानों की हार) दिखाते और चिढ़ाते हुए दिख रहे हैं, उस संकेत का आधार यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वे मंत्रीय उत्तरदायित्वों का बड़ा मज़ाक उड़ा रहे हैं। 

वे (गृह राज्यमंत्री) 'जनप्रतिनिधि बनने से पूर्व की अवस्था' को भूल नहीं पा रहे हैं या ये कहा जाए कि शायद अपनी 'उसी' योग्यता की वजह से उन्हें मंत्री का पद दिया गया था।

दूसरा दृश्य है जिसमें किसानों के एक नेता तेजिंदर सिंह विर्क इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि वे नेताजी की धमकी का सामना करने के लिए लखीमपुर आएंगे।  

'शठे शाठ्यं समाचरेत'

तीसरा दृश्य है जो उत्तर प्रदेश से अलग है लेकिन संभवतया इसी 'प्रोग्राम' का हिस्सा है। इसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर बीजेपी किसान मोर्चा की बैठक में कहते हैं "पाँच सौ, सात सौ, एक हज़ार लोगों का समूह बनाओ, उन्हें स्वयंसेवक बनाओ और उसके बाद हर जगह 'शठे शाठ्यं समाचरेत'….चिंता मत करो…जब आप वहां (जेल में) एक महीने, तीन महीना या छह महीना रहोगे तो बड़े नेता बन जाओगे। इतिहास में नाम दर्ज होगा।" 

एक प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदर्शनकारी किसानों के ख़िलाफ़ बीजेपी की अपनी सेना बनाने का आह्वान कर रहे हैं।

lakhimpur kheri farmers killing : narendra modi silence - Satya Hindi
मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा

निजी सेना

एक प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदर्शनकारी किसानों के ख़िलाफ़ बीजेपी की अपनी सेना बनाने का आह्वान कर रहे हैं। ‘सबक सिखाने’ की भाषा गुंडों और अपराधियों की हो सकती है लेकिन एक मुख्यमंत्री जब ऐसी भाषा का इस्तेमाल करने लगे तो इसका मतलब है कि लोकतंत्र चलते चलते ऐसे रास्ते में मुड़ गया है जहां वो जल्द ही हिटलर और मुसोलिनी को पकड़ लेगा।  

एक अन्य दृश्य में जिसमें कोई संवाद नहीं था, किरदार खामोश थे लेकिन साजिश की रेसिपी तैयार कर रहे थे। 

भीड़ को रौंदती कार

अगले दृश्य का मंचन शुरू हुआ महात्मा गांधी की जन्मतिथि 2 अक्टूबर के 2 ही दिन बाद 4 अक्टूबर को। इस दृश्य में लखीमपुर खीरी में किसान आंदोलनकारियों के एक जत्थे को एक कार रौंदते हुए चली जाती है। उसके पीछे 2 और कारें भी यही कारनामा करती हुई आगे बढ़ती हैं।

उनके से एक कार भारत के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की थी। चश्मदीद कहते हैं कि कार में मंत्री जी का लड़का आशीष उर्फ मोनू मिश्रा बैठा हुआ था। 60 साल के एक बुजुर्ग समेत 4 किसानों की जान चली गई। तेजिंदर सिंह विर्क भी गंभीर रूप से घायल हैं। 

lakhimpur kheri farmers killing : narendra modi silence - Satya Hindi
आशीष मिश्रा, अभियुक्त

राकेश टिकैत

अगले दृश्य में संयुक्त किसान मोर्चा की माँगे सामने आती हैं। माँगों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश से जाँच व मंत्री जी के इस्तीफ़े तक की माँग की जाती है, बहुत से विपक्षी दलों के नेता घटनास्थल पर पहुँचने की कोशिश करते हैं। 

एक दृश्य अचानक सामने आ जाता है जिसमें किसान मोर्चा के एक नेता राकेश सिंह टिकैत प्रदेश के एडीजी, क़ानून एवं व्यवस्था, के साथ बैठकर पूर्व की माँगों से काफ़ी पीछे हटकर, मंत्री जी के बेटे पर एफ़आईआर और उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायायधीश से जांच आदि तक सीमित हो जाते हैं।

यह नहीं पता चल पाया कि कैसे कुछ लोग लखीमपुर खीरी पहुँच गए पर कुछ नेता दो दिनों तक हाउस अरेस्ट रहे, कुछ नेता अभी भी वहाँ पहुँचना चाहते हैं पर नहीं पहुँच पा रहे हैं। यह भी नहीं समझ आया कि क्यों और कैसे इतने अमानवीय और नृशंस हत्याकांड के बावजूद संयुक्त किसान मोर्चा अपनी माँगों पर अडिग नहीं रह पाया। 

lakhimpur kheri farmers killing : narendra modi silence - Satya Hindi
राकेश टिकैत, किसान नेता

मदारी का खेल?

मंचन के सारे दृश्य आपस में गूँथे हुए हैं उन्हे आम आदमी के द्वारा एक दूसरे से अलग कर पाना असंभव है। हो सकता है यह मंचन किसी के लिए मदारी का खेल रहा हो, पर यह सबकुछ जो घट रहा था, एक ऐसी आग थी; जिससे उत्पन्न राख ने संविधान को ढंक लिया। संविधान के लगभग हर पन्ने में कालिख लगा दी। किसानों को कार के नीचे कुचला गया। 

जिनको सबक़ सिखाने के लिए गृह राज्यमंत्री जी ने अंगूठा नीचे दिखाया था, वो अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनके ऊपर चढ़ी गाड़ी ने भारत के संविधान के कई पन्नों को कुचल दिया। संविधान का वो पन्ना जिसमें एक मंत्री की अपने पद को लेकर शपथ दर्ज है, वो पन्ना जिसमें एक मुख्यमंत्री के दायित्व और शपथ दर्ज हैं, वो पन्ने जिसमें भारत के प्रधानमंत्री के दायित्व और अधिकार दर्ज हैं जिनके तहत वो अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को चुनता है, वो पन्ने जिसमें राष्ट्रपति को सरकार के कामकाज पर रिपोर्ट मांगने का अधिकार है, वो पन्ने जिसमें भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार दर्ज हैं, वो पन्ने जो सरकार चलाने के तरीकों को संबोधित करते हैं

मीडिया की भूमिका

‘अलायंस फॉर प्रोग्रेस’की पहली वर्षगांठ, 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने कहा था “जो अहिंसक प्रदर्शनों को असंभव बनाते हैं, वही हिंसक प्रदर्शनों को अवश्यंभावी बना देते हैं”।
वर्तमान घटना व सम्पूर्ण किसान आंदोलन को लगातार खालिस्तानी, हिंसक व किसान 'उपद्रवी' कहने वाला/वाली इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व हिन्दी पट्टी के अखबार इसी अवस्था की तैयारी में हैं।

भारत में तथाकथित मेन स्ट्रीम पत्रकारिता एक क्षत-विक्षत शव के समान बुरी अवस्था में है, जिसे देखना परेशान भी करता है और क्रोध भी पैदा करता है। 

मैं तो इस अवस्था में भी नहीं हूँ कि इस शव का पोस्टमार्टम कर सकूँ। इसका पोस्टमार्टम करने का काम 'लोकतंत्र के सर्जन' अर्थात भारतीय जनता को करना होगा और जल्द ही इसका अंतिम संस्कार कर नए 'ऑल्टर्नेटिव' पर ध्यान केंद्रित करना होगा। वर्ना इसकी सड़न और बदबू से अवांछित कीड़ों को भारत में स्थायी स्थान बनाने का मौका मिल जाएगा। साथ ही यह सड़न इस लोकतंत्र की अन्य संस्थाओं को भी अपनी चपेट में लेकर उन्हे शवदाह गृह तक पहुँचा सकती है।

जालियाँवाला बाग से तुलना?

जिन्हे लखीमपुर खीरी में घटी घटना में जालियाँवाला बाग हत्याकांड की झलक दिख रही है, उन्हे यह समझ लेना चाहिए कि जालियाँवाला कांड जिस व्यक्ति और सत्ता के द्वारा किया गया था हमने न उसे चुनकर भेजा था, और न ही ब्रिटिश सत्ता हमारे प्रति किसी भी रूप में लोकतान्त्रिक रूप से उत्तरदायी थी।

लेकिन सरकारी खजाने से अरबों रुपए खर्च करके जिन जनप्रतिनिधियों को हमने चुना व हर्षोल्लास से चुनावी त्योहार में भाग लिया और जिस सरकार की स्थापना की; वह सरकार जब अपने केन्द्रीय मंत्री की करतूत पर चुप हो जाती है, वो पुलिस वाले जिन्हे सरकारी खर्चे से तनख्वाह मिलती है, जो यूपीएससी जैसी संवैधानिक संस्था द्वारा चयन करके भेजे जाते हैं वो जनरल डायर जैसा व्यवहार करते हैं तब यह जलियाँवाला से कहीं अधिक नृशंस कहलाता है। यह स्वयं के कानून और संविधान द्वारा जनता की पीठ पर घोंपे हुए खंजर के समान है।  

lakhimpur kheri farmers killing : narendra modi silence - Satya Hindi

नए किस्म के जननेता!

5 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ में शामिल होने के लिए लखनऊ आए, उन्होंने अपने काम गिनाए, अपनी उपलब्धियां गिनाईं लेकिन लखनऊ से 130किमी दूर घटी लखीमपुर की अप्रत्याशित घटना के बावजूद वहाँ नहीं गए। मेरे लिए वे नए किस्म के जननेता हैं जो लोगों की तकलीफों में शामिल होने के बजाय उसे टालने पर भरोसा रखते हैं। 

हो सकता है कि प्रधानमंत्री जी आप भूल गए हों, लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि इतिहास कभी नहीं भूलता और वह स्वयं अपनी घटनाएं याद रखता है।

आज़ादी के जिस ‘महात्मा’ को लेकर इस महोत्सव की शुरुआत की गई है, वो अपनी हत्या के बाद से लगातार जीवित है और मुझे पूरा भरोसा है कि वो आपके ‘ध्यान’ और ट्वीट का इंतजार नहीं करेगा और जल्द ही किसी न किसी रूप में लखीमपुर पहुँचेगा। क्योंकि महात्मा गाँधी कोई उत्सव नहीं एक विचार हैं।

यह वही विचार है जिसने किसानों को 11 महीनों से प्रतिबद्धता के साथ, घोर विपरीत परिस्थितियों में भी रोक कर रखा है।  

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
वंदिता मिश्रा
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें