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फ़ोटो साभार: ट्विटर/@shishirar

बीजेपी सरकारों के बीच विज्ञापनों के ज़रिए छवि चमकाने की होड़ 

आम तौर पर सभी सरकारें अपनी योजनाओं और उपलब्धियों का बढ़-चढ़ कर ही प्रचार करती हैं। इसके लिए वे अख़बारों और टेलीविजन का सहारा भी लेती हैं और पोस्टर तथा होर्डिंग्स के माध्यम से भी प्रचार करती हैं। कोई भी सरकार इस मामले में अपवाद नहीं होती।

मौजूदा केंद्र सरकार ने तो इस मामले में अपनी सभी पूर्ववर्ती सरकारों को पीछे छोड़ ही रखा है, जबकि राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें तो केंद्र से भी कई क़दम आगे निकल गई हैं। वे अपनी योजनाओं और कथित उपलब्धियों का प्रचार सिर्फ़ अपने सूबे में ही नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भी कर रही हैं।

यह स्थिति तब है जब ये सभी सरकारें गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही हैं, भारी-भरकम कर्ज के बोझ से दबी हुई हैं और अपने खजाने को भरने के लिए जनता पर आए दिन पुराने करों की दरें बढ़ा रही हैं और नए-नए करों का बोझ लाद रही हैं।

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इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने तो सबको पीछे छोड़ते हुए अपनी छवि चमकाने के लिए विदेशी पत्र-पत्रिकाओं तक में विज्ञापन दिए हैं। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार की योजनाओं और कथित उपलब्धियों का प्रचार ऐसे कर रहे हैं, मानो उन्हें अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा का नहीं बल्कि देश का चुनाव लड़ना है। वे सिर्फ़ उत्तर प्रदेश और पड़ोसी राज्यों में ही नहीं बल्कि दक्षिण और पश्चिमी भारत के राज्यों में भी विज्ञापनों के ज़रिए अपना प्रचार कर रहे हैं।

पिछले मार्च महीने में जब उनकी सरकार ने अपने कार्यकाल के चार साल पूरे किए थे तब तो उन्होंने विदेशी मीडिया तक में विज्ञापनों के ज़रिए प्रचार किया था। राज्य सरकार की उपलब्धियों का तीन पेज का विज्ञापन तो अमेरिका की जानी-मानी पत्रिका 'टाइम’ में ही छपा था। 'काम दमदार, योगी सरकार’ का वह विज्ञापन देश भर में विभिन्न भाषाओं के अख़बारों और टेलीविजन चैनलों को भी दिया गया था। देश की राजधानी दिल्ली को भी इसी स्लोगन वाले होर्डिंग्स, बैनर और पोस्टर से पाट दिया गया था।

अब अगले साल फरवरी-मार्च में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार ने अपना प्रचार अभियान शुरू किया है। इसके तहत उत्तर प्रदेश को देश में नंबर एक बताते हुए एक विज्ञापन जारी किया गया है, जिसके होर्डिंग्स दिल्ली के कोने-कोने में लगे हैं। इसके अलावा 'मुफ्त राशन, मुफ्त वैक्सीन और मुफ्त इलाज’ तथा 'चार लाख युवाओं को सरकारी नौकरी’ के दावे वाले होर्डिंग्स भी दिल्ली और समूचे एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लगे हैं। 

नोएडा, गाज़ियाबाद और उनसे सटे दिल्ली के इलाक़ों में तो इन होर्डिंग्स को लगाने का औचित्य समझ में आता है लेकिन दिल्ली के अंदर की कॉलोनियों, मोहल्लों और गली-कूचों तक में और पूरे रिंग रोड पर भी ये होर्डिंग्स लगे हैं।

यही नहीं, उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार और इनसे सटे झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों की सीमा तक हज़ारों की संख्या में होर्डिंग्स लगाए गए हैं। यह सब तो हिंदी भाषी राज्य हैं लेकिन दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तक वहाँ की क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी में उत्तर प्रदेश सरकार की उपलब्धियों का प्रचार इन होर्डिंग्स के माध्यम से हो रहा है। 

हाल ही में ख़बर आई थी कि बेंगलुरू में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री की तस्वीरों वाला यह होर्डिंग हवाई अड्डे से शहर की ओर जाने वाले रास्ते पर लगाया गया था। सोशल मीडिया में इसका फोटो और वीडियो वायरल हो जाने के बाद बताया जा रहा है कि उस होर्डिंग को हटा दिया गया। 

modi and yogi govt hoardings ahead of up assembly election  - Satya Hindi

उधर, केंद्र की मोदी सरकार भी अपनी उपलब्धियों का प्रचार अख़बारों तथा टीवी चैनलों में विज्ञापनों और देश भर में होर्डिंग्स के ज़रिए कर रही है। 'सबको वैक्सीन, मुफ्त वैक्सीन’ और 'मुफ्त अनाज’ के नारे और मुफ्त वैक्सीन के लिए मोदी को धन्यवाद देने वाले होर्डिंग्स दिल्ली सहित पूरे देश में लगे हैं। 

राजधानी दिल्ली में योगी और मोदी के होर्डिंग्स लगने के बाद जो थोड़ी सी जगह बच गई तो वहाँ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने होर्डिंग्स लगवा दिए हैं। इन होर्डिंग्स में वे लोगों से पूछ रहे हैं, 'वैक्सीन लगवाई क्या?’ मज़ेदार बात ये है कि उनके इस प्रचार पर बीजेपी के नेता आपत्ति जता रहे हैं कि केजरीवाल वैक्सीन को अपनी उपलब्धि क्यों बता रहे हैं! 

उधर बीजेपी के ही शासन वाले मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड की सरकारें भी अपना प्रचार विज्ञापन के ज़रिए करने में पीछे नहीं हैं। कर्नाटक सरकार ने मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों के साथ 'सबको वैक्सीन, मुफ्त वैक्सीन, धन्यवाद मोदी जी’ के नारे वाले पूरे-पूरे पेज के विज्ञापन दक्षिण भारत से निकलने वाले कन्नड़, तमिल, तेलुगू, मलयालम और अंग्रेजी के अख़बारों को ही नहीं, बल्कि दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी, हिंदी और मराठी के अख़बारों को भी दिए हैं। 

इसी तरह मध्य प्रदेश सरकार ने भी ऐसे ही विज्ञापन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों वाले विज्ञापन दिल्ली के हिंदी और अंग्रेजी अख़बारों के अलावा विभिन्न राज्यों की स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित अख़बारों में दिए।

जहाँ तक उत्तराखंड सरकार की बात है, उसका प्रचार अभियान उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक की सरकारों की तरह ज़्यादा व्यापक तो नहीं है लेकिन वह भी दिल्ली से प्रकाशित होने वाले हिंदी और अंग्रेजी के अख़बारों को विज्ञापन देने में पीछे नहीं रही है।

हक़ीक़त यह है कि ज़मीनी हक़ीक़त बिल्कुल अलग है। मसलन मुफ्त वैक्सीन का प्रचार तो हो रहा है और इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद भी दिया जा रहा है, लेकिन असलियत यह है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में वैक्सीन का अभाव बना हुआ है और लोग वैक्सीन लेने के लिए भटक रहे हैं। कोरोना टेस्टिंग की स्थिति भी इन राज्यों में दूसरे राज्यों के मुक़ाबले बदतर ही है। इन राज्यों की स्वास्थ्य सेवाएँ कितनी बीमार हैं, यह तो कोरोना की पहली और दूसरी लहर के चरम पर होने के दौरान पूरे देश ने देखा है। 

विचार से ख़ास

विज्ञापन के ज़रिए इस प्रचार अभियान में सबसे दिलचस्प क़िस्सा गुजरात स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के विज्ञापन का है। इस बैंक ने 14 जुलाई को कोट्टायम (केरल) से प्रकाशित अख़बार 'मलयाला मनोरमा’ में आधे पेज का एक विज्ञापन दिया है। इस विज्ञापन में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरें हैं और सहकार मंत्रालय बनाए जाने तथा उसका प्रभार अमित शाह को दिए जाने के लिए मोदी को धन्यवाद दिया गया है। जबकि इस बैंक की केरल में कोई शाखा नहीं है। 

गौरतलब है कि खुद अमित शाह गुजरात में सहकारी संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक के अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के दिग्गज नेता नरहरि अमीन के भाई को हराया था। नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के समय अमित शाह इस बैंक के निदेशक थे और नोटबंदी के तीन दिन बाद ही इसी बैंक में 750 करोड़ मूल्य के प्रतिबंधित नोट जमा जमा किए गए थे। इस बात का खुलासा सूचना का अधिकार क़ानून के तहत हुआ था।

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अनिल जैन
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