जब मैंने अखबारों में पढ़ा कि गोरखपुर के चौरी-चौरा कांड का शताब्दी समारोह मनाया जाएगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसका उदघाटन करेंगे तो मेरा मन कौतूहल से भर गया। मैंने सोचा कि 4 फरवरी 1922 यानी ठीक सौ साल पहले चौरी-चौरा नामक गांव की भयंकर दुर्घटना का मोदी हवाला देंगे और किसानों से कहेंगे कि जैसे गांधीजी ने उस घटना के कारण अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था, वैसे ही किसान भी अपना आंदोलन खत्म करें, क्योंकि लाल किले पर सांप्रदायिक झंडा फहराने की घटना से सारा देश मर्माहत हुआ है। लेकिन हुआ कुछ उल्टा ही।