loader

आडवाणीजी, काश आपने तब राजेन्द्र माथुर साहब की बात सुनी होती…

 ‘भावनाओं के सवाल’ को बवाल बनाने की कोशिश तो आडवाणीजी की पीढ़ी ने ही शुरू की थी। संविधान की भावना और क़ानूनी प्रक्रियाओं की धज्जियाँ  उड़ाने का आरंभ तो आडवाणीजी और उनके समकालीनों ने ही किया था। हाँ, वे लोग इतना “साहस (या दुस्साहस)” नहीं जुटा पाए थे कि मर्यादा, प्रक्रिया को ही नहीं सामान्य शिष्टाचार को भी ठेंगा दिखा दें। 
पुरुषोत्तम अग्रवाल
लालकृष्ण आडवाणी ब्लॉग लिख कर बीजेपी और मोदी जनता पार्टी (मोजपा) का फर्क बता रहे हैं। मोजपा में महानेता की तनिक सी भी आलोचना ऐंटी नेशनल होने का पर्याय है, तो आडवाणी जी अपनी भारतीय जनता पार्टी याद कर रहे हैं जिसके विरोधी, विरोधी ही माने जाते थे, ऐंटी नेशनल नहीं। राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी माने जाते थे, दुश्मन नहीं। हालाँकि यह बात सौ फ़ीसदी सच नहीं है।
आडवाणीजी की सक्रियता के दिनों में ही स्वयं मैंने अपने घर के दरवाजे पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का आक्रामक जुलूस झेला है, जिसका मुख्य नारा यही था - “ऐंटी नेशनल पुरुषोत्तम अग्रवाल मुर्दाबाद…।” 
आडवाणीजी बीजेपी और उसके पूर्वावतार भारतीय जनसंघ के समूचे इतिहास में ऐसे काल की कल्पना करने के लिए स्वतंत्र हैं जब यह राजनैतिक दल ख़ुद को राष्ट्रवाद का अकेला ठेकेदार मानने की बीमारी से मुक्त रहा हो। दूसरों के लिए यह काम मुश्किल होगा।
लेकिन, फिर भी, फर्क तो है। उस फर्क की मार में स्वयं आडवाणीजी भी हैं, इसी का तो दर्द है। आडवाणीजी के जमाने में बीजेपी की राजनीति जो भी हो, लेकिन संगठन में व्यक्तिवाद सचमुच नहीं था। यह विडंबना भी याद रखने योग्य है कि भारत में अमेरिका जैसा प्रेसिडेंशियल सिस्टम हो, यह शिगूफ़ा भी आडवाणीजी ने ही छेड़ा था। इरादा यह था कि पार्टी के जनाधार में जो कमी है, उसे अटलजी का कल्ट (मत) बना कर भर लिया जाए। कोशिश की भी गयी लेकिन एक तो उन दिनों मीडिया का इतना भयानक विस्तार नहीं हुआ था, सो मीडियापा इतना ज़्यादा फैलाया नहीं जा सकता था; दूसरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में इतनी रीढ़ बाक़ी थी कि वह बीजेपी को पूरी तरह व्यक्ति-निर्भर पार्टी न बनने दे। 
ताज़ा ख़बरें
अब की बात और है। तब बीजेपी हुआ करती थी, अब मोजपा है। तब बीजेपी या संघ का विरोधी ऐंटी नेशनल कहलाता था, अब तो मोदीजी की रैली में जो न पहुँच पाए, उस ऐंटी नेशनल को गिरिराज सिंह पाकिस्तान भेजने पर आमादा हैं और भारतीय सेना को मोदीजी की निजी ब्रिगेड बताने पर अजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्यनाथ।
आडवाणीजी के बारे में मोदी प्रेमी कार्यकर्ता जिस मुहावरे में बात करते सुने जाते हैं उसे जानना नब्बे साल से ऊपर के व्यक्ति के लिए काफ़ी घातक हो सकता है। लेकिन, इस स्थिति के निर्माण में कुछ भूमिका आपकी भी है या नहीं, आडवाणीजी?

ऐंटी नेशनल कह दो, किस्सा ख़त्म 

इसमें आडवाणीजी केवल आपकी ही नहीं, आपके पूरे वैचारिक परिवार की भूमिका है। आज देश में जो तनाव का माहौल है, उसका आधार है रेशनल (तर्कसंगत) सोच का अभाव। किसी की बात का जबाव न देते बने तो उसे ऐंटी नेशनल कह कर किस्सा ख़त्म करो। यह बात रेशनल बातचीत की जगह आक्रामक भावनाओं को स्थापित करने की स्वाभाविक परिणति है। बबूल के पेड़ बोने के बाद आम खाने की उम्मीद तो  ज़्यादती ही है ना। 

इस लिहाज से भारतीय जनता पार्टी का मोदी जनता पार्टी में रूपांतरण स्वाभाविक है। ‘भावनाओं के सवाल’ को बवाल बनाने की कोशिश तो आडवाणीजी की पीढ़ी ने ही शुरू की थी। संविधान की भावना और क़ानूनी प्रक्रियाओं की धज्जियाँ  उड़ाने का आरंभ तो आडवाणीजी और उनके समकालीनों ने ही किया था। हाँ, वे लोग इतना “साहस (या दुस्साहस)” नहीं जुटा पाए थे कि मर्यादा, प्रक्रिया को ही नहीं सामान्य शिष्टाचार को भी ठेंगा दिखा दें। 

मोदी और शाह की विशेषता यही है कि इस जोड़ी को न तो पार्टी से मतलब है और न ही किसी विचार से…ये दोनों भयानक आत्ममोह से ग्रस्त हैं, और किसी भी तरह के मर्यादा-बोध से पूरी तरह मुक्त।
यह असल में आडवाणीजी की “सफलता” का ही प्रमाण है कि आज यह जुगलजोड़ी आडवाणीजी की पार्टी को जेब में रखे मनमानी करती घूम रही है। मजे की बात यह है कि आडवाणीजी के ब्लॉग पर सबसे पहले नरेंद्र् मोदी ने ही मुहर लगाई। वैसे भी मोदीजी तो चिढ़ाने की कला में माहिर हैं ही, कल्पना की जा सकती है कि आडवाणीजी के ब्लॉग पर टिप्पणी करते हुए वह हँस-हँस कर लोट-पोट हो रहे होंगे। 
आडवाणीजी इन दिनों शायद वह संपादकीय लेख याद करते हों, जो स्व. राजेन्द्र माथुर ने उनकी “ऐतिहासिक” रथयात्रा के बारे में लिखा था।

1990 में जब आडवाणीजी सोमनाथ से अपना टोयोटा रथ लेकर सारे देश में  सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और आक्रामकता का माहौल बनाने के लिए निकले थे, राजेन्द्र माथुर उन दिनों नवभारत टाइम्स के संपादक थे। माथुर ने आडवाणीजी की इस यात्रा पर एक फ़्रंटपेज, साइन्ड संपादकीय लिखा था, जिसका शीर्षक था, ‘ शेर की सवारी के ख़तरे’।

विचार से और ख़बरें
इस संपादकीय का आख़िरी वाक्य कुछ इस प्रकार था, (याद के आधार पर ही उद्धृत कर रहा हूँ) ‘श्री लालकृष्ण आडवाणी को समझना चाहिए कि जिन शक्तियों का वे उन्मोचन कर रहे हैं, वे जल्दी ही स्वयं उनके भी वश के बाहर हो जाएँगी।’
narendra modi bjp amit shah lal krishna advani - Satya Hindi
उन दिनों का एक फ़ोटो सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है। यात्रा-नायक अपने रथ के दरवाजे से जनता को संबोधित कर रहे हैं, और एक युवतर सहयोगी उनके लिए मेगाफ़ोन लिए खड़े हैं। रथयात्री आडवाणीजी के यह सहयोगी कौन हैं, और आज कहाँ विराजते हैं, यह अनुमान लगाने के लिए “बुद्धिजीवी” होना जरूरी नहीं है, बस अक्ल पर जरा जोर डालना ही पर्याप्त है। और, तब हो सकता है कि आपको भी लगे कि ऐसी “ शक्तियों का उन्मोचन” करने पर उतारू तब के आडवाणीजी ने काश राजेन्द्र माथुर की बात सुनी होती।     
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
पुरुषोत्तम अग्रवाल
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें