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फ़ाइल फ़ोटो।

देश में जानें जा रही हैं; नेता कोरोना-दंगल बंद करें

जहाँ तक ऑक्सीजन की कमी का सवाल है, देश में पैदा होनेवाली कुल ऑक्सीजन का सिर्फ़ 10 प्रतिशत ही अस्पतालों में इस्तेमाल होता है। सरकार और निजी कंपनियाँ चाहें तो कुछ ही घंटों में सारे अस्पतालों को पर्याप्त ऑक्सीजन मुहैया हो सकती है। इसी तरह कोरोना के टीके यदि मुफ्त या सस्ते और सुलभ हों तो इस महामारी को काबू करना कठिन नहीं है।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

ऑक्सीजन की कमी के कारण नाशिक के अस्पताल में हुई 24 लोगों की मौत दिल दहलानेवाली ख़बर है। ऑक्सीजन की कमी की ख़बरें देश के कई शहरों से आ रही हैं। कई अस्पतालों में मरीज़ सिर्फ़ इसी की वजह से दम तोड़ रहे हैं। कोरोना से रोज़ हताहत होनेवालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि कई देशों के नेताओं ने अपनी भारत-यात्रा स्थगित कर दी है। कुछ देशों ने भारतीय यात्रियों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया है। लाखों लोग डर के मारे अपने गाँवों की तरफ़ दुबारा भाग रहे हैं। नेता लोग भी डर गए हैं। वे तालाबंदी और रात्रि-कर्फ्यू की घोषणाएँ कर रहे हैं लेकिन बंगाल में उनका चुनाव अभियान पूरी बेशर्मी से जारी है। ममता बनर्जी ने बयान दिया है कि ‘कोविड तो मोदी ने पैदा किया है।’ इससे बढ़कर ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान क्या हो सकता है? 

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यदि मोदी चुनावी लापरवाही के लिए जिम्मेदार हैं तो उससे ज़्यादा ख़ुद ममता ज़िम्मेदार हैं। ममता यदि हिम्मत करतीं तो मुख्यमंत्री के नाते चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगा सकती थीं। उन्हें कौन रोक सकता था? यह ठीक है कि बंगाल में कोरोना का प्रकोप वैसा प्रचंड नहीं है, जैसा कि वह मुंबई और दिल्ली में है लेकिन उसकी चुनाव-रैलियों ने सारे देश को यही संदेश दिया है कि भारत ने कोरोना पर विजय पा ली है। डरने की कोई बात नहीं है। 

जब हजारों-लाखों की भीड़ बिना मुखपट्टी और बिना शारीरिक दूरी के धमाचौकड़ी कर सकती है तो लोग बाजारों में क्यों नहीं घूम सकते हैं, कारखानों में काम क्यों नहीं कर सकते हैं, अपनी दुकानें क्यों नहीं चला सकते हैं और यात्राएं क्यों नहीं कर सकते हैं? उन्हें भी बंगाली भीड़ की तरह बेपरवाह रहने का हक क्यों नहीं है? 

लोगों की यह लापरवाही ही अब वीभत्स रूप धारण करती जा रही है। इस जनता के जले पर वे लोग नमक छिड़क रहे हैं, जो रेमडेसिविर का इंजेक्शन 40 हजार रुपये और ऑक्सीजन का सिलेंडर 30 हजार रुपये में बेच रहे हैं।

ऐसे कालाबाज़ारियों को सरकार ने पकड़ा ज़रूर है लेकिन वह इन्हें तत्काल फांसी पर क्यों नहीं लटकाती और टीवी चैनलों पर उसका जीवंत प्रसारण क्यों नहीं करवाती ताकि वह भावी नरपशुओं के लिए तुरंत सबक़ बने। 

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जहाँ तक ऑक्सीजन की कमी का सवाल है, देश में पैदा होनेवाली कुल ऑक्सीजन का सिर्फ़ 10 प्रतिशत ही अस्पतालों में इस्तेमाल होता है। सरकार और निजी कंपनियाँ चाहें तो कुछ ही घंटों में सारे अस्पतालों को पर्याप्त ऑक्सीजन मुहैया हो सकती है। इसी तरह कोरोना के टीके यदि मुफ्त या सस्ते और सुलभ हों तो इस महामारी को काबू करना कठिन नहीं है। महामारी के अप्रत्याशित प्रकोप के कारण सरकार ने अपनी पीठ खुद ठोकनी बंद कर दी है लेकिन यह सही समय है, जब जनता आत्मानुशासन, अभय और आत्मविश्वास का परिचय दे। यह भी ज़रूरी है कि नेतागण कोरोना को लेकर दंगल करना बंद करें।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार।)
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डॉ. वेद प्रताप वैदिक
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