दुर्भाग्य यही है कि अफ़ग़ानिस्तान के मामले में भारत फिसड्डी बना हुआ है। हमारा विदेश मंत्रालय ख़ुद पहल करने के काबिल नहीं है। इसीलिए दूसरों के मेलों में जाकर वह बीन बजाता रहता है, जैसा कि कल उसने ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में जाकर किया है।
अब अमेरिकी दबाव में दोनों देशों के बीच कुछ संवाद शुरू हो गया है, यह अच्छी बात है लेकिन यह दबाव तभी तक बना रहेगा, जब तक चीन से अमेरिका की अनबन चल रही है और उसका अफ़ग़ानिस्तान से पिंड नहीं छूट रहा है।