बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के खिलाफ "आरक्षण की आंधी कहां से आई, कर्पूरिया की मां----।" जैसा घृणित नारा लगाकर राज्य भर में हिंसा, तोड़फोड़ और अराजकता का माहौल किसने बनाया था?
बिहार में मंडल आयोग की रिपोर्ट को पढ़े बगैर उसका सबसे उग्र विरोध किसने किया? वीरचंद पटेल पथ पर पहला उग्र जुलूस किन लोगों ने और कहाँ से निकाला था? पूरे देश, खासतौर पर बिहार और यूपी जैसे हिंदी क्षेत्र में सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ अपशब्दों का अनवरत प्रयोग किसने किया और कराया? राहुल गांधी जैसे देश-विदेश के बेहतरीन संस्थानों में पढ़े-लिखे नेता को पूरे देश में 'पप्पू' कहकर किसने 'बुद्धू' या 'बेवकूफ' के रूप में प्रचारित करना चाहा?
मीडिया की भूमिका
वे कौन लोग हैं जो आज़ादी के बाद से ही हर प्रतिष्ठान पर काबिज हैं? और आज उनका सर्वाधिकार-सा है! वे कौन लोग हैं जो उत्तर और मध्य भारत के मेनस्ट्रीम मीडिया के हर निर्णयकारी पद पर काबिज हैं? और इसी मीडिया के ज़रिये बिहार के चुनाव में हर बार 'जंगलराज' का जुमला उछाला जाता है!
वे कौन लोग हैं, जिनके लिए (तीन-चार बरस छोड़कर) सन् 1947 से फरवरी, 1990 तक बिहार में हमेशा 'स्वर्ण युग' रहा है?
यही लोग; बिल्कुल यही लोग सन् 1990 से 2005 तक के दौर को "जंगलराज" और बिहार के मौजूदा दौर को "मंगलराज" बताते हैं! सच ये है कि बिहार को कभी वैसा राज नहीं मिला जैसा आजादी के बाद तमिलनाडु, केरल या कर्नाटक जैसे दक्षिण के राज्यों को मिला! अगर ऐसा हुआ होता तो बिहार आज प्रति व्यक्ति आय, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स, कानून व्यवस्था (अपराध के इंडेक्स में देश का दूसरा सबसे खराब राज्य) और गवर्नेंस के मामले में इतना फिसड्डी नहीं होता!
हम यह नहीं कहते कि सन् 1990 से 2005 में सबकुछ शानदार और दिव्य था। लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि इससे पहले दलित-उत्पीड़ित और पिछड़े वर्ग के लोग समाज और राजकाज में जिस तरह उपेक्षित थे, वह सिलसिला कुछ थमा और सबाल्टर्न समूहों को भी समाज और राजकाज में कुछ भागीदारी मिलने लगी। सम्मान के साथ चलने, रहने और काम करने का अपेक्षाकृत अनुकूल माहौल बना!
अगर भूमि-सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर काम किया गया होता तो बिहार को गुणात्मक रूप से बदला जा सकता था। पर विभिन्न कारणों से ऐसा नहीं हो सका। इस बारे में मैने अपनी किताब: "बिहार का सच" में विस्तार से लिखा है। लेकिन आज की टिप्पणी का संदर्भ "जंगलराज" का बहुप्रचारित और बोगस राजनीतिक जुमला है।
NCRB का आँकड़ा क्या कहता है?
कोई चाहे तो भारत सरकार के गृह मंत्रालय से सम्बद्ध NCRB के बिहार में अपराध व कानून व्यवस्था की स्थिति के अद्यतन और तब के आंकड़ों का ब्योरा पढ़कर भी असलियत समझ सकता है। अपराध तब भी ज़्यादा होते थे और आज तो और भी ज़्यादा हो रहे हैं! आज के दौर में अपहरण के आँकड़े तब के आँकड़ों से ज़्यादा भयावह हैं। हां, हत्या के आंकड़ों में कुछ कमी ज़रूर दर्ज हुई है।
दरअसल, जंगलराज के जुमले का सम्बन्ध किसी तथ्य या आँकड़े से नहीं है। यह शुद्ध रूप से राजनीतिक जुमला है!
भारतीय समाज में गैर-सवर्ण सामाजिक श्रेणी से जब कभी कोई व्यक्ति, संगठन या सत्ता सदियों से चले आ रहे जाति-वर्ण आधारित डिस्क्रिमिनेशन के सिलसिले को चुनौती देने की कोशिश करता है; उसके प्रयासों को तरह-तरह से विकृत कर पेश किया जाता है। ऐसे लोगों या संगठनों को कुचलने या प्रताड़ित करने की कोशिश होती है। और इस सिलसिले का लंबा इतिहास है!
(उर्मिलेश के फ़ेसबुक पेज से साभार)