कहा जाता है कि समुद्र में जब ज्वार आता है तब ही मछलियाँ पकड़ी जाती हैं यानी संकट ही अवसर का बेहतर वक़्त होता है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब लॉकडाउन के दौरान देश को पाँचवीं बार संबोधित किया तो उन्होंने माना कि यह संकट का समय है, आपदा का वक़्त है, लेकिन इसमें मरना, टूटना, बिखरना नहीं है, जीतना है। कोरोना की महामारी से, लड़ाई से हारना नहीं है, हमें ना केवल जीत कर निकलना है, बल्कि बेहतर और मज़बूत होना है।
क्या कोरोना संकट को अवसर में बदल रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी?
- विचार
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- 13 May, 2020


प्रधानमंत्री लगातार राज्य सरकारों, मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचिवों से भी संपर्क में रहे और उनकी ज़रूरतों और माँगों पर भी काम किया गया। कुछ शिकायतें तब भी रहीं, लेकिन ज़्यादातर सरकारें लॉकडाउन बढ़ाने की माँग करती रहीं। ऐसा लगता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद सरकारें और हमारे जन प्रतिनिधि सबसे निचले तबक़े, ग़रीब श्रमिक की तकलीफ़ को वक़्त रहते समझ नहीं पाए।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार आत्मनिर्भर भारत की बात की है। देश में हर कोई उनसे आर्थिक पैकेज की माँग कर रहा था ताकि अर्थव्यवस्था और देश को पटरी पर लाने का काम फिर से शुरू हो सके। मोदी ने 12 मई की रात आठ बजे जब दूरदर्शन पर अपना संबोधन दिया तो लोगों में अब नवम्बर 2016 वाला डर महसूस नहीं हो रहा था बल्कि लोग एक उम्मीद से देख रहे थे कि प्रधानमंत्री क्या एलान करने वाले हैं। सबको लग रहा था कि लॉकडाउन- 4 तो होगा ही क्योंकि दो दिन पहले मुख्यमंत्रियों के साथ उनकी बैठक में इसके संकेत मिल गए थे। पाँच राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने तो लॉकडाउन बढ़ाने की माँग रखी थी, लेकिन सबको प्रधानमंत्री से राहत और आर्थिक पैकेज की उम्मीद थी।


























