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प्रतीकात्मक फोटो फोटो साभार संसद टीवी

57 साल पहले हुई कार्रवाई के लिए इंदिरा गांधी को क्यों निशाना बना रहे हैं पीएम ?

अगर कोई उग्रवादी संगठन भारत के किसी भूभाग पर सैन्य नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करे तो सरकार को क्या करना चाहिए?

ऐसा संगठन अगर अपने प्रभाव वाले इलाके की आज़ादी का ऐलान कर दे तो सरकार को क्या कार्रवाई करना चाहिए? 

ज़ाहिर है, कोई भी संप्रभु सरकार इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसे देश के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा मानते हुए वह कड़ी से कड़ी सैन्य कार्रवाई करेगी। राष्ट्रीय अखंडता पर उठे किसी भी सवाल का यही जवाब हो सकता है। इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि सरकार किस रंग की या किस पार्टी की है। यह मसला राजनीति से ऊपर है।

 

यह देखना दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस, खासतौर पर गांधी परिवार पर हमला करने की झोंक में इस मर्यादा को भूल गये। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब देते हुए उन्हें तीन महीने से मणिपुर को अग्निकुंड बनाने वालों की शिनाख़्त करने का ख़्याल नहीं आया।

इसके बजाय वे 57 साल पहले यानी 1966 में मिजो उग्रवादियों के ख़िलाफ़ हुई सैन्य कार्रवाई पर सवाल उठाते नज़र आये। 

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मिजोरम की आज़ादी की घोषणा करने वालों के ख़िलाफ़ तब कड़ी सैन्य कार्रवाई की इजाजत दी थी जिसे मौजूदा प्रधानमंत्री ‘गुनाह’ की तरह पेश कर रहे हैं। 

क्या ये सवाल पूछा जा सकता है कि तब मोदी जी प्रधानमंत्री होते तो मिजोरम की आज़ादी की घोषणा करने वालों के साथ कैसा बर्ताव करते?

प्रधानमंत्री जिस अंदाज़ में इतिहास को लोकसभा में तोड़ते-मरोड़ते हुए दिखे हैं, उसे देखते हुए यह जानना ज़रूरी है कि किन परिस्थिति में वायुसेना के विमानों को आइजोल पर बमबारी करनी पड़ी थी

राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था

बीती सदी के छठें दशक में मिजो हिल्स असम का हिस्सा था और वहां सरकारी नौकरी के लिए असमी भाषा की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ आंदोलन हो रहा था। 1961 में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) बनाकर लालडेंगा इसकी अगुवाई कर रहे थे। शुरू में इस आंदोलन का स्वरूप शांतिपूर्ण था। लेकिन इस आंदोलन के ज़रिए लालडेंगा एक बड़ा सपना पाल रहे थे। ये सपना था अलग मिजो देश का। उन्होंने एमएनएफ को सैनिक रूप दे दिया। उन्हें पाकिस्तान और चीन से मदद मिल रही थी। 1963 में लालडेंगा को राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया लेकिन वे कोर्ट से छूट गये।

1965 में भारत पर हुए पाकिस्तानी हमले को लालडेंगा ने अपने लिए एक अवसर की तरह देखा।  दबाव बनाने के लिए लालडेंगा ने ‘मिजो देश’ की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को चेतावनी भरा पत्र लिखा कि यह भारत पर है कि वह मिजो देश के साथ शांति का रिश्ता रखना चाहता है या नहीं। दुर्योग से शास्त्री जी का 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में निधन हो गया।

शास्त्री जी के निधन के केवल 11 दिन बाद लालडेंगा ने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो को पत्र लिखा और ‘मिजो देश की आज़ादी’ के लिए मदद मांगी। लालडेंगा का कहना था कि मिजो अंग्रेजों के भी अधीन नहीं थे, और अब वे भारत के भी अधीन नहीं रहेंगे।

मिजो उग्रवादियों ने शुरू किया था‘आपरेशन जिराको’

इस बीच 24 फरवरी 1966 को इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद संभाला। लालडेंगा को भी उनके ‘गूंगी गुड़िया’ होने की ग़लतफ़हमी थी। चार दिन बाद ही मिजो उग्रवादियों ने भारतीय सैन्य बलों से मिजो हिल्स को खाली कराने के लिए ‘आपरेशन जिराको’ शुरू कर दिया। सरकारी दफ्तरों पर हमले हुए, सरकारी खजाना लूटा जाने लगा। यहां तक कि चंफाई में असम राइफल्स के एक ठिकाने पर औचक धावा बोलकर बड़े पैमाने पर हथियार और गोला बारूद लूट लिया गया। साथ ही एक जूनियर अफसर समेत 85 जवान बंधक बना लिये गये। भारत के साथ संपर्क के सभी रास्ते बंद कर दिये गये। 29 फरवरी को स्वतंत्र मिजोरम की घोषणा कर दी गयी थी। 

फिर ससम्मान फहराया गया तिरंगा 

ऐसे में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वही किया जो कोई भी प्रधानमंत्री करता। इंदिरा जी ने सैन्य कार्रवाई का फ़ैसला किया। 5 मार्च से 13 मार्च 1966 तक चले इस अभियान के तहत भारतीय वायुसेना के चार विमानों ने आइजोल शहर को घेर कर उग्रवादियों के ठिकानों पर हमला बोल दिया। इस अभियान में हताहत नागरिकों की संख्या 13 थी। उग्रवादियों ने भागकर म्यामांर और पूर्वी पाकिस्तान के जंगलों में शरण ली। भारतीय सेना का उस इलाके पर फिर से नियंत्रण बन गया। जिस तिरंगे को उतार फेंका गया था उसको सरकारी इमारतों पर फिर ससम्मान फहराया गया।

30 जून 1986 को मिजो शांति समझौता हुआ 

इस घटना के दो दशक बाद तक मिजो उग्रवादी एक समस्या बने रहे। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में इस समस्या का स्थायी समाधान हो सका जब 30 जून 1986 को मिजो शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। 

समझौते के 11 दिन बाद राजीव गांधी मिजोरम के दौरे पर गये। उनके साथ सोनिया गांधी भी थीं। राजीव-सोनिया का मिजो लोगों ने जबर्दस्त स्वागत किया। इस समझौते को राजीव गांधी सरकार की बड़ी उपलब्धि माना जाता है। 1987 में मिजोरम को अलग राज्य का दर्जा मिला। इसके बाद चुनाव हुए और लालडेंगा ने भारतीय संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री का पद संभाला। 

मिजोरम के ज़ख्म हरे हो गये 

प्रधानमंत्री मोदी 57 साल पहले संप्रभुता की रक्षा के लिए की गयी इस सैन्य कार्रवाई के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस सरकार को निशाना बना रहे हैं। उनकी इस राजनीतिक शैली ने मिजोरम में शांति स्थापित करने के लिए दशकों चले अभियान को संदिग्ध बना दिया है। आशंका है कि उससे उत्तरपूर्व में अशांति पैदा करने की कामना करने वालों का हौसला बढ़ेगा। वैसे भी मणिपुर की आग धीरे-धीरे उत्तर पूर्व में फैल रही है। संसद में अपने नाम का जयकारा लगवाने वाले मोदी जी भूल जाते हैं कि उनकी एक-एक भंगिमा पर मणिपुर ही नहीं पूरा उत्तर पूर्व नज़र रख रहा है। उनके भाषण में मणिपुर की आग पर पानी डालने का कोई प्रयास नहीं था। उल्टे मिजोरम के ज़ख्म हरे हो गये। 

नोट - लेखक कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं, और ये उनके निजी विचार हैं। 

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पंकज श्रीवास्तव
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