राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सम्मान में आयोजित डिनर में राज्यसभा और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को आमंत्रित न करना, हमारे राज्य और संविधान की गरिमा और महत्ता को कम करता है। राष्ट्रपति, भारतीय राज्य की प्रमुख होती हैं और जब वे किसी अतिथि के सम्मान में भोज आयोजित करती हैं तो उसमें भारतीय राज्य की व्यापक और स्थायी अवधारणा झलकनी चाहिए, जहाँ दोनों देशों की मित्रता को मजबूत करने के लिए जाम उठाए जाते हैं।

राज्य और संविधान की गरिमा कम हुई

राज्य की परिभाषा में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या अन्य संवैधानिक पदाधिकारी ही शामिल नहीं होते, बल्कि संसद के दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्ष भी शामिल होते हैं, जो संविधान द्वारा स्थापित पद हैं। इसलिए, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को जानबूझकर बाहर रखना भारतीय राज्य की अवधारणा को कमजोर करने का प्रयास है।
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थरूर को आमंत्रण क्यों?

यह मामला और भी गंभीर हो गया क्योंकि कांग्रेस से आने वाले शशि थरूर को आमंत्रित किया गया, जबकि वह उसी मुख्य विपक्षी पार्टी के सदस्य हैं। उन्हें मोदी सरकार ने कांग्रेस नेतृत्व से बिना सलाह-मशविरा किए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में कुछ देशों को जानकारी देने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल किया था। ऐसी एकतरफा निर्णय-प्रक्रिया और उसके साथ राष्ट्रपति के भोज से दोनों एलओपी को बाहर रखना साफ़ दिखाता है कि विपक्ष को किस तरह राज्य के कार्यक्रमों से दूर रखा जा रहा है।

संविधान के अनुच्छेद 79 में साफ़ लिखा है कि संसद- राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा- से मिलकर बनती है। नेता प्रतिपक्ष संसद की संरचना के अभिन्न अंग हैं। इसलिए राष्ट्रपति मुर्मू को जो संविधान के अनुसार संसद का हिस्सा हैं, दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्ष को राज्य भोज में शामिल करना चाहिए था। इसके अलावा, उन्होंने संविधान की रक्षा और संरक्षण की जो शपथ ली है, वह उनके हर कदम में झलकनी चाहिए। एलओपी इस संवैधानिक ढाँचे के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं- उन्हें किसी भी राज्य कार्यक्रम से बाहर रखना उस शपथ का उल्लंघन है।

पूर्व राष्ट्रपतियों द्वारा स्थापित मिसाल

उनसे पहले के कई सम्मानित राष्ट्रपति- जैसे आर. वेंकटरमन और के. आर. नारायणन- जब विदेश मंत्रालय से अतिथियों की सूची प्राप्त करते थे तो वे स्वयं तय करते थे किसे शामिल करना है और किसे नहीं। मेजबान होने के नाते इस निर्णय का पूरा अधिकार राष्ट्रपति के पास रहा है।

कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि नेता प्रतिपक्ष को राज्य भोज से बाहर रखा गया हो। इसलिए दोनों एलओपी- खड़गे और राहुल गांधी- को आमंत्रित न किए जाने पर स्वाभाविक रूप से दुख और चिंता व्यक्त की जा रही है। यह भारतीय राज्य और संविधान का अपमान है।

राष्ट्रपति के पद का अवमूल्यन

यदि राष्ट्रपति मुर्मू ने यह निर्णय प्रधानमंत्री मोदी या प्रधानमंत्री कार्यालय की सलाह पर लिया है तो इससे राष्ट्रपति के पद की गरिमा कम होती है। राष्ट्रपति का पद कार्यपालिका का उपकरण बनकर संविधान और राज्य की मूल भावना को क्षति पहुँचाने का माध्यम नहीं बन सकता- विशेषकर तब, जब यह नेता प्रतिपक्ष को भोज से दूर रखने के लिए किया गया हो।

विदेशी अतिथियों से मिलने के अवसर नहीं

नेता प्रतिपक्ष को न सिर्फ राजकीय भोज से दूर रखा जा रहा है, बल्कि उन्हें भारत आने वाले विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से मिलने का अवसर भी नहीं दिया जा रहा। पुतिन की भारत यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि परंपरा के अनुसार उन्हें अतिथि से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।

ऐसा भी सामने आया कि जब कुछ महीने पहले अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे. डी. वांस भारत आए थे, तब उस समय के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को भी उनसे मिलने का अवसर नहीं दिया गया।
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संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन

उच्च संवैधानिक पदों के साथ ऐसा व्यवहार स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभूतपूर्व है। बी. आर. आंबेडकर ने संविधान सभा में ‘संवैधानिक नैतिकता’ की व्याख्या करते हुए कहा था कि इसका एक महत्वपूर्ण पहलू है- संविधान में स्थापित संस्थाओं का सम्मान करना और उनके अधिकारों के दुरुपयोग पर सवाल उठाना। राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा आयोजित राज्य भोज में नेता प्रतिपक्ष को न बुलाना संवैधानिक नैतिकता का स्पष्ट उल्लंघन है- और यह तब हुआ जब कुछ ही दिन पहले 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया गया था।

संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ है, जिसे सत्ता में बैठे लोगों को ईमानदारी से मानना और लागू करना अनिवार्य है। लेकिन नेता प्रतिपक्ष- मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी- को राष्ट्रपति के भोज से दूर रखकर ठीक उसके विपरीत किया गया है। इससे भारतीय राज्य और संविधान दोनों को नुकसान पहुँचाया गया है- और वह भी उन्हीं लोगों द्वारा, जिन्हें इसकी रक्षा का दायित्व सौंपा गया है।

(एस. एन. साहू, भारत के पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के विशेष कर्तव्य अधिकारी रहे हैं।)