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नफरत के पिंडदान का यही सही समय है 

गणाधिपति का विसर्जन हो रहा है। उनके एक पखवाड़े के प्रवास के बाद विसर्जन मन को दुखी करता है लेकिन गणेश जी को जाना भी है। बहुत से काम हैं उनके पास । बहुत से विघ्नों का हरण करना है उन्हें। मैंने भी आज श्रीजी को भावपूर्ण विदाई दी। दरअसल श्रीजी हमारे जनमानस को भविष्य में बहुत सी विदाइयों के लिए संकेत देकर गए है। उनके जाते ही एक और मौक़ा है नफरतों का पिंडदान करने का और अपने उन पूर्वजों के प्रति शृद्धा व्यक्त करने का जो जाने-अनजाने मार्गदर्शक मंडल में डालकर हमेशा के लिए भुला दिए गए। 

गणेश जी ने हमें रास्ता दिखाया कि यदि घर में गलती से कोई गोबर गणेश आ गया हो तो उसकी पूजा भी कीजिये और सही मुहूर्त में उसे विदाई देकर विसर्जित भी कीजिये। सृजन और विसर्जन का ये कर्म अनंत है, अवाध है।। हमें अपनी पसंद की प्रतिमाओं के सृजन और विसर्जन का अधिकार है । ये प्रतिमाएं चाहे मन के मंदिर की हों या लोकतंत्र के मंदिर की। हम ही प्रतिमाएं गढ़ते हैं, स्थापित करते है। उनकी आरती करते हैं, उन्हें पूजते हैं, उन्हें अपने सिर पर बिठाते हैं और हमें ही ये हक मिला है कि हम ही उनका विसर्जन भी करें। सृजन और विसर्जन का प्रकृति और संविधान प्रदत्त ये अधिकार जनता से कोई छीन नहीं सकता। 

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गणपति के जाते ही श्राद्ध पक्ष आरम्भ हो जाता है। ये सनातन है या नहीं मुझे ज्ञात नहीं। इसे द्रविड़ मानते हैं या नहीं, ये भी मै नहीं जानता लेकिन मुझे पता है कि हर धर्म में इसी से मिलते-जुलते अवसर उपलब्ध हैं। जहाँ आप अपने पूर्वजों के प्रति अर्पण, तर्पण का कर्मकांड कर सकते हैं। जहाँ कब्रें हैं, मजारें हैं लोग वहां जाते हैं। जहाँ ये सब नहीं है वहां पूर्वजों का स्मरण करने उनके प्रति शृद्धा व्यक्त करने के दूसरे तरीके है। हम जलस्रोतों में खड़े होकर तर्पण करते हैं। यानि समाज का हर वर्ग तर्पण की विधि जानता है। तर्पण, अर्पण और श्राद्ध कोरा कर्मकांड है या इसका कोई महत्व भी है ये सियासत वाले नहीं जानते इसीलिए वे इस शांत पक्ष में भी अपना काम जारी रखते हैं। उन्हें मतलब नहीं कि जनता का कोई तीज-त्यौहार है या नहीं ? उन्हें तो अपनी सियासत से मतलब। 

देश में पहली बार गणेश चतुर्थी के दिन बेचारे सांसदों को गणेश जी की अगवानी छोड़कर संसद के विशेष सत्र में शामिल होने के लिए दिल्ली जाना पड़ा था । यानि विघ्नकर्ता के स्वागत में भी विघ्न डालने का दुस्साहस लोग कर ही लेते हैं। बहरहाल बात पूर्वजों के प्रति शृद्धा प्रकट करने और दुष्टों का तर्पण यानि पिंडदान करने की है। तर्पण करना एक ऐसी क्रिया है जो सबके लिए उपयोगी है । अतृप्त आत्माओं के लिए भी और संतृप्त आत्माओं के लिये भी। इस समय सबसे ज्यादा असंतोष और सत्ता की भूख राजनितिक दलों में हैं। सबके सब जनता के प्रति शृद्धा से भरे नजर आ रहे है। राजनीतिक दल भी जनता का तर्पण, अर्पण करते रहते है। कभी-कभी वे पिंडदान भी कर देते है। भले ही इसके लिए उन्हें उधर का सिन्दूर लाना पड़े।

हमारे मध्यप्रदेश में तो बहनों का सम्मान बढ़ाने के लिए लोग कर्ज के बोझ से इतने दब गए हैं कि उठने के लिए काफी वक्त चाहिए। बहनों का ख्याल रखने वालों के प्रति शृद्धा जताने के बजाय भाई लोगों ने उनका ही श्राद्ध कर दिया। हमारे बुंदेलखंड में एक कहावत है-' थर न थराई, हरामजादी कहाई’ । मतलब अच्छे काम के लिए अहसान तो माना नहीं उलटे दुत्कार दिया बेचारे मामा जी को। मामा के पीछे अब पांच-पांच प्रतिद्वंदी लगा दिए गए हैं। पांच राज्यों की जनता के लिए भी ये सही समय है कि वो अपने खिलाफ काम करने वालों का तर्पण कर दे । पिंडदान कर दे ताकि उनकी आत्माओं को शांति मिले और वे भटकती न रहें। 

जनता अपने लिए नई सरकार, नए विधायक, नए मंत्री और मुख्यमंत्री चुन सकती है। वैसे ये काम हर पांच साल में किया जाता है जबकि धर्म में हम इस तरह के काम हर साल करते है। राम मनोहर लोहिया कहते थे कि ज़िंदा कौमें पांच साल इन्तजार नहीं करती । हमने तो अपने सेवकरामों को पांच क्या अठारह साल दे दिये । यानि इंतजार बहुत लंबा हो चुका है। इसलिए ये सही मौक़ा है तब्दीली का।


मणिपुर वाले अपनी सरकार कि श्राद्ध में लगे हुए हैं क्योंकि सरकार ने उनकी परवाह नहीं की और अकेले मरने कि लिए छोड़ दिया। हमने न जाने कितनी बार अपनी प्रिय सरकार को चेताया लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है ?

अपने नेताओं का पिंडदान करने कि लिए आपको स्नान करना भी अनिवार्य नहीं है । ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि आपको जौ का आटा, दूध, काले तिल, कुशा दूध, खीर कुछ नहीं चाहिये । आप तो केवल सही समय पर मतदान केंद्र में जाकर बिजली से चलने वाली मतदान मशीन का सही बटन दबा कर आ जाइये पिंडदान हो जाएगा। आपका मताधिकार पिंडों का पिंड है । इसके जरिये आप धूतों-अवधूतों ,गुरुओं और गुरुघंटालों से अपना पिंड छुड़ा सकते हैं। जो लोग इस महत्पूर्ण अवसर को हाथ से जाने देते हैं वे पूरे पांच साल पछताते हैं। इसलिए हे जनता जनार्दन ! जागो और लोकतंत्र कि श्राद्ध पक्ष का लाभ उठाओ, उनका पिंडदान करो, उनसे अपना पिंड छुड़ाओ जो लगातार आपकी खाल उधेड़ रहे हैं। आपको ठग रहे हैं। आपको कभी सनातन पर खतरे का भय दिखा रहे हैं तो कभी आपसे किसी आभासी कामयाबी का जश्न मनवा रहे हैं। कभी नारियों की झूठी वंदना कर रहे हैं।

नारी वंदना की हकीकत जानना है तो किसी दिन हमारे सूबे में आइये और हमारी बहन उमा भारती से मिलिए। वे सारी हकीकत से आपको वाकिफ करा देंगीं । हमारे तमाम राजनीतिक पुरखों की आत्माएं अभी तक असंतृप्त है। ये अतृप्त आत्माएं सभी राजनतिक दलों कि बुजुर्गवारों की हैं। ये वे आत्माएं हैं जिन्हें जीते जी मार दिया गया। जीते जी उनका श्राद्ध कर दिया गय। ये वे आत्माएं हैं जिनके नाम के पिंड जबरन कौओं और कुत्तों को खिला दिए गए। 

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अब यही आत्माएं अपना हक मांग रहीं है। उन्हें उनका हक दिलाना जनता का परम और पुनीत कर्तव्य है। हम तो आपको केवल आपके कर्तव्य की याद दिला रहे है। आप सरकार की तरह अपने कर्तव्य से विमुख होने कि लिए भी आजाद है। हम आज तक गणेश जी के प्रति श्रद्धा भाव से भरे थे और आज से अगले पंद्रह दिनों तक अपने पूर्वजों के प्रति शृद्धा भाव से भरे रहेंगे। हम जन्मजात शृद्धालु हैं। कोई हमारे ऊपर फूल बरसाए या न बरसाए लेकिन हमारे शृद्धा भाव में कोई कमी नहीं आने वाली। 

(राकेश अचल फ़ेसबुक पेज से)
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क़मर वहीद नक़वी
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