बजरंग दल की रैली का फाइल फोटो।
दरअसल, समाजवादी राजनीति में पिछड़ों की भूमिका लगातार बढ़ रही थी। अगर पिछड़ी जातियां सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त होती तो जाहिर है, द्विज जातियों के सांस्कृतिक वर्चस्व को चुनौती मिलती। इसलिए आरएसएस ने धर्म और आस्था के आधार पर शूद्रों-पिछड़ों को जोड़ने और इनकी ताकत को मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना बनाई। बजरंग दल जैसे संगठन की नींव इसी विचार पर आधारित थी।
जैसे-जैसे राम मंदिर आंदोलन आगे बढ़ रहा था, बजरंग दल का विस्तार हो रहा था। विश्व हिंदू परिषद की कारसेवा मुहिम में बजरंग दल अग्रिम मोर्चे पर था। अधिकांशतया पिछड़ी जातियों से आने वाले नौजवानों ने अयोध्या कूच किया। बाबरी मस्जिद विध्वंस में जाहिर तौर पर इनकी बड़ी भूमिका थी। कारसेवा के लिए भूख, प्यास और पुलिस की लाठियों के शिकार ज्यादा यही बजरंगी हुए। इसका राजनीतिक फायदा भाजपा को मिला। कई राज्यों सहित केंद्र में भी उसने सत्ता का उपभोग किया। यह भी गौरतलब है कि जैसे-जैसे भाजपा सत्ता में पहुंचती गई, बजरंग दल का नेतृत्व भी द्विज जातियों के हाथों में पहुंचता गया। पिछड़ी जाति से आने वाले नौजवान हुड़दंग मचाने और हिंसा करने में अभी भी इस्तेमाल होते हैं लेकिन सत्ता की मलाई कोई और खाता है।
बजरंग दल पर आरोप है कि इसका कानून में कोई भरोसा नहीं है। धर्म और संस्कृति का स्वयंभू रक्षक इस संगठन पर कई बार आपराधिक और हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के गंभीर आरोप लगते रहे है। बजरंगी सरेआम हाथों में डंडा और कई बार तलवारें लहराते हुए तथा नागरिकों को पीटते हुए नजर आते हैं। 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे पर पार्कों और कॉलेज परिसरों में प्रेम करने वाले लड़के लड़कियों को ये सरेआम पीटते हैं और डंके की चोट पर इसका प्रदर्शन करते हैं। जबरन लड़कियों से लड़कों को राखी बंधवाते हैं। दुर्भाग्य तो यह है कि इन के आगे पुलिस भी लाचार नजर आती है। कई बार पुलिस इन का सहयोग करते हुए दिखती है। भाजपा और आरएसएस का मजबूत राजनीतिक नारा 'जय श्रीराम' बजरंगियों ने ही ज्यादा बुलंद किया है।