loader

क्या है निजी क्षेत्र को वैक्सीनेशन में शामिल करने की मजबूरी?

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की जो वैक्सीन उत्पादन क्षमता है उसके मुकाबले उसकी वैक्सीनेशन की यानी लोगों को टीका लगाने की क्षमता काफी कम है। इसलिए भारत में वैक्सीन का सरप्लस स्टॉक काफी ज्यादा है और यह ऐसी चीज है जिसका बहुत ज्यादा भंडारण भी नहीं किया जा सकता। इसलिए यह सरप्सल वैक्सीन कई देशों को भेजकर राजनयिक हित भी साधे जा रहे हैं और परमार्थ के दावे भी हो रहे हैं। बेशक, इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है।
हरजिंदर

वैसे इसे कोरोना संक्रमण के खिलाफ दुनिया का दूसरा सबसे तेज वैक्सीनेशन अभियान कहा जा रहा है। जनवरी के तीसरे हफ्ते में शुरू हुए इस अभियान के पहले सवा महीने में तकरीबन सवा करोड़ लोगों को यह टीका लगाया जा चुका है। सवा करोड़ का यह आँकड़ा काफी बड़ा लगता है, ख़ासकर जब इसकी तुलना हम दुनिया के दूसरे देशों से करते हैं। लेकिन अगर हम इसे प्रतिशत में बदल दें तो तसवीर कुछ दूसरी हो जाती है।

 

भारत में अभी तक सिर्फ एक प्रतिशत लोगों का पूरा या आंशिक ही वैक्सीनेशन हो चुका है, जबकि अमेरिका में यह प्रतिशत 25 है। अगर हम इज़रायल के आँकड़ें देखें तो वहां 85 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण हो चुका है। इसका अर्थ यह हुआ कि टीकाकरण की जितनी बड़ी चुनौती हमारे देश में है, उसके मुक़ाबले टीकाकरण की रफ़्तार बहुत कम है। बावजूद इसके कि कुल संख्या के मामले में हम बहुत आगे हैं।

ख़ास ख़बरें

वैक्सीन डिप्लोमेसी

इस बीच आई एक और ख़बर इस धीमी रफ्तार वाली पहेली को उलझा देती है। विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक ख़बर में बताया गया है भारत ने वैक्सीन की कई बड़ी खेप नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे देशों में भेजी है।

कई खबरों और विश्लेषणों में इसे भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी भी कहा गया है। यह भी बताया गया कि इस मामले में भारत ने चीन को भी मात दे दी है। लेकिन अगर भारत में वैक्सीनेशन की रफ़्तार बहुत कम है तो इन देशों को वैक्सीन क्यों भेजी जा रही है?

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की जो वैक्सीन उत्पादन क्षमता है उसके मुकाबले उसकी वैक्सीनेशन की यानी लोगों को टीका लगाने की क्षमता काफी कम है। इसलिए भारत में वैक्सीन का सरप्लस स्टॉक काफी ज्यादा है।

यह ऐसी चीज है जिसका बहुत ज्यादा भंडारण भी नहीं किया जा सकता। इसलिए यह सरप्सल वैक्सीन कई देशों को भेजकर राजनयिक हित भी साधे जा रहे हैं और परमार्थ के दावे भी हो रहे हैं। बेशक, इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है।

वैक्सीन उत्पादन भारत के लिए कभी कोई समस्या नहीं रहा। भारत को इस क्षेत्र का मार्केट लीडर माना जाता है। कोरोना वायरस के आगमन से पहले भी दुनिया की 60 फ़ासदी वैक्सीन भारत में ही बनती थीं।

सरप्सल वैक्सीन

वैक्सीन सरप्लस की यह समस्या कुछ दिनों में बहुत ही तेजी से बढ़ने वाली है। ब्रिटिश अखबार 'द गार्जियन' में छपी एक रिपोर्ट को अगर सही माना जाए तो रूस अपनी वैक्सीन स्पुतनिक-5 की 10 करोड़ खुराक भारत भेज रहा है। भारतीय कंपनी डॉक्टर रेड्डी लेबोरेटरीज़ ने इस वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल भारत में पूरा कर लिया है और इसके लिए इज़ाज़त की अर्जी भी लगा दी है। यह भी उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में उसे इज़ाज़त मिल भी सकती है।

जब इतनी बड़ी संख्या में वैक्सीन उपलब्ध हो रही हो और सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र की क्षमता बहुत सीमित हो तो अब इसके सिवाय कोई और चारा भी नहीं है कि इस काम में निजी क्षेत्र की मदद ली जाए।

स्वास्थ्य की उपेक्षा

पिछले कई दशक में स्वाथ्य के मद में जरूरत के मुकाबले कम खर्च किया गया है और पूरे तंत्र की लगातार उपेक्षा हुई है उसके चलते लोगों के स्वास्थ्य को संभालने की ज़िम्मेदारी काफी कुछ निजी क्षेत्र ने संभाल ली है। एक तरफ महानगरों में बड़े अस्पतालों की कॉरपोरेट चेन खुल गई हैं तो दूसरी तरफ कस्बों और ग्रामीण क्षेत्र तक में छोटे-छोटे नर्सिंग होम अपना कारोबार चमकाने में लगे हैं।

सरकार ने जब लोगों की सेहत की चिंता करने का काम जब इन्हीं के हवाले छोड़ दिया तो अब वैक्सीनेशन को भी इन्हीं के हवाले कर देने के अलावा कोई और चारा नहीं है। इन्हीं में से कुछ में टीकाकरण का काम एक मार्च से शुरू हो जाएगा।

निजी क्षेत्र में टीकाकरण शुरू होने का अर्थ यह होगा कि अभी तक जो मुफ्त टीकाकरण की बात की जा रही थी, सरकार अब उससे पूरी तरह पलट गई है। बेशक आधिकारिक स्तर पर सभी को मुफ्त टीका लगाने का कोई वादा नहीं किया गया था लेकिन ऐसे बयान जरूर दिए गए थे।

बिहार चुनाव में तो बीजेपी ने यह वादा भी किया था कि अगर वह सत्ता में वापस आई तो सभी को मुफ़्त टीका लगाया जाएगा। अब देखना यह है कि पार्टी वहाँ अपने इस वादे पर टिकती है, या वहाँ भी निजी क्षेत्र में टीकाकरण शुरू होने वाला है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
हरजिंदर
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें