loader

पार्वती के प्रदेश उत्तराखंड में प्रेम पर पहरा

पुष्कर सिंह धामी संविधान की शपथ लेकर ही उत्तराखंड की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं, लेकिन वे इस संविधान में दर्ज नागरिक अधिकारों की रक्षा में बुरी तरह विफल नज़र आ रहे हैं। उनकी पार्टी के ही एक नेता को अगर अपनी बेटी की शादी भीड़ के उत्पात की वजह से रद्द या स्थगित करनी पड़े तो ये कहने में हिचक नहीं होनी चाहिए कि उत्तराखंड में भीड़तंत्र है, लोकतंत्र नहीं। मुख्यमंत्री को शायद यह बात भी ध्यान नहीं रही कि पुराणों के अनुसार उत्तराखंड उन सती पार्वती का मायका है जिन्होंने अपनी पसंद यानी शिव से शादी के लिए हर बाधा को तोड़ा, जबकि शिव और उनके वंश और संस्कृति में काफ़ी अंतर था।

पूर्व विधायक और पौड़ी गढ़वाल नगर पालिका के अध्यक्ष यशपाल बेनाम अपनी बेटी की पसंद को देखते हुए उसकी शादी अमेठी के एक मुस्लिम लड़के से करने को राज़ी हो गये थे तो यह एक पिता के प्यार के साथ-साथ संविधान में वर्णित बालिगों के जीवन साथी चुनने के अधिकार का भी सम्मान था। लेकिन जिस तरह से हिंदुत्ववादी संगठनों ने इस शादी के ख़िलाफ़ वबाल किया, उसे देखते हुए उन्हें 28 मई को प्रस्तावित यह विवाह कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।

ताजा ख़बरें
यशपाल बेनाम मीडिया को दिये गये कई इंटरव्यू में जिस तरह अपनी बेटी की पसंद को सही ठहरा चुके थे, उससे संघ और उससे जुड़े संगठनों के कथित ‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ जारी अभियान को तगड़ा झटका लगा था। एक साज़िश के तहत इस शादी का कार्ड सोशल मीडिया में वायरल किया गया और यशपाल बेनाम को बुरी तरह ट्रोल किया गया। एक पिता जो ख़ुशी-ख़ुशी इस शादी की तैयारी कर रहा था, आख़िरकार टूट गया। इस दौरान उत्तराखंड की सरकार पूरी तरह अनुपस्थित रही। प्रशासन की ओर से यशपाल बेनाम को परेशान करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। वे मीडिया को दिये गये अपने कई इंटरव्यू में इस बात को साफ़ कह रहे थे कि उन पर संघ और बीजेपी नेताओं की ओर से शादी रोकने के लिए काफ़ी दबाव डाला जा रहा है।

हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शादी कोई अनोखी बात नहीं है। बीजेपी और संघ के कई नेताओं के घर की लड़कियों ने भी मुस्लिम से शादी की है। ‘स्पेशल मैरेज एक्ट’ के तहत भारत का कानून नौजवानों को यह अधिकार देता है कि वे अपनी मर्जी से शादी करें। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ़ हिंदू लड़कियाँ ही मुस्लिम लड़के से शादी करती हैं। इसका उल्टा भी उतना ही सच है। पूरा भारत जिस फ़िल्मी दुनिया की गप-शप में डूबता उतराता रहता है, वहाँ तो ‘लव जिहादिनों’ की भरमार रही है। रुपहले पर्दे पर राज करने वाली नर्गिस, वहीदा रहमान, मधुबाला, मुमताज़ जैसी तमाम अभिनेत्रियों ने हिंदू से शादी की। रेहाना सुल्ताना, तबस्सुम, ज़रीना वहाब से लेकर नफ़ीसा अली और फ़राह ख़ान तक यह सिलसिला नज़र आता है। ज़ोहरा सहगल, नीलिमा अज़ीम या नादिरा बब्बर जैसी थिएटर बैकग्राउंड की अभिनेत्रियों ने भी हिंदू पति चुना था। ऋतिक रोशन हों, संजय दत्त या मनोज वाजपेयी, किसी ने भी मुस्लिम लड़की से शादी करने में न हिचक दिखाई और न इससे कोई वबाल हुआ।
दरअसल, विवाह व्यक्ति का अपना मसला है न कि समाज का। ‘मियाँ-बीवी राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी’ बहुत पुराना मुहावरा है और आज़ादी के बाद नागरिक अधिकारों को पूरा सम्मान देने वाले संविधान में इस बात का ख़ास ख़्याल रखा गया कि प्रेमियों को धर्म या जाति या किसी भी अन्य कारण से जीवनसाथी बनने वंचित न किया जाए। समता के सिद्धांत में यह भी शामिल है। लेकिन संघ परिवार और विश्व हिंदू परिषद और उनसे जुड़े संगठन की नज़र में अगर कोई हिंदू लड़की मुस्लिम लड़के से शादी करती है तो यह किसी षड़यंत्र का नतीजा है। हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ाने के लिए इस नैरेटिव को बल देने के लिए ही ‘द केरला स्टोरी’ जैसी फ़िल्म को इतना तूल दिया गया जबकि वह भी ‘सिर्फ़ एक लड़की’ के षड़यंत्र का शिकार होकर आईएसआईएस के चंगुल में फँसन  की ‘काल्पनिक कथा’ कहती है।

लव में ‘जिहाद’ ढूँढने वाले हिंदुत्व संगठनों की दृष्टि में किसी हिंदू लड़की में इतना विवेक होता ही नहीं कि वह अपनी मर्जी से जीवनसाथी का चयन कर सके। वे ‘मनु-स्मृति’ की इस बात पूरा यक़ीन करते हैं कि ‘स्त्री को बचपन में पिता, जवानी में पति और बुढ़ापे में पुत्र के अधीन रहना चाहिए।‘ इसलिए जब कोई हिंदू लड़की मुस्लिम लड़के को जीवन साथी बनाने का फ़ैसला करती है तो उसे मूर्ख मानकर एक बड़ा षड़यंत्र खोजने लगते हैं।


यशपाल बेनाम की बेटी अपने मुस्लिम सहपाठी से शादी करना चाहती थी। उन्होंने अपने फ़ैसले में परिवार को शामिल किया और दोनों पक्षों में इस पर मुहर लगा दी। देखा जाए तो इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका बनती ही नहीं लेकिन हिंदुत्ववादी संगठनों ने इस पर इतना बवाल किया कि शादी तय समय पर नहीं हो पा रही है। इसके लिए सीधे तौर पर उत्तराखंड प्रशासन ज़िम्मेदार है जो एक पिता को सुरक्षा नहीं दे पाया और न एक युवती के नागरिक अधिकार को सुरक्षा दे पाया।

वैसे ‘हिंदू लड़कियों’ के भविष्य को बचाने में जुटे इन हिंदुत्ववादी संगठनों से ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि जब दहेज के लिए कोई हिंदू बेटी ज़िंदा जला दी जाती है तो वे किस बिल में छिपे रहते हैं? इन संगठनों के नेताओं ने कभी दहेज जैसी कुरीत के ख़िलाफ़ एक शब्द नहीं बोला। इनके नेता ख़ुद दहेज वाली खर्चीली शादियों में नागिन डांस करते पाये जाते हैं। जबकि देश में हर दिन 20 युवतियाँ दहेज की वेदी में होम कर दी जाती हैं। दिसंबर 2022 में राज्यसभा में मोदी सरकार ने लिखित जवाब में बताया था कि 2017 से 2021 के बीच देश में 35,493 दहेज हत्याएँ हुईं। सबसे ज़्यादा दहेज हत्या यूपी में हुईं जहा इस दौरान 11,874 मामले सामने आये। अगर इन घटनाओं के आधार पर कोई ‘द इंडिया स्टोरी’ नाम की फ़िल्म बताए और पूरे हिंदू समाज को ‘बहुओं की हत्या करने वाले दहेज-लोभी’ के रूप में चित्रित करे, तो क्या यह उचित होगा? यह बताता है कि धर्म, जाति, गोत्र आदि का पूरा ध्यान रखते हुए की गयी ‘अरेंज मैरेज’ भी लड़की के सुखी भविष्य की गारंटी नहीं है। ऐसे में इक्का-दुक्का प्रेम विवाह भी अगर आगे चलकर असफल हो जाएँ या किसी धोखे का नतीजा हों, तो उनकी गिनती भी एक व्यक्ति की ओर से किये गये अपराध के रूप में होनी चाहिए, न कि किसी क़ौम द्वारा किये गये अपराध के रूप में।

वैसे, ये हिंदुत्ववादी संगठन जिस प्राचीन काल का गौरवगान करते थकते नहीं हैं, क्या उसमें विभिन्न संस्कृतियों के युवक-युवती विवाह नहीं करते थे? स्वयंवर जैसी प्रथाएँ चाहे किसी शर्त से बँधी रहती रही हों, मगर उसमें युवती की इच्छा की पूरी ध्वनि है।


साथ ही, परिवार से छिपकर प्रेमियों के बीच होने वाले ‘गंधर्व विवाह’ को भी पूरी मान्यता थी। यही नहीं, क्या ये संगठन पौड़ी गढ़वाल से 163 किलोमीटर दूर स्थित हरिद्वार के कनखल से जुड़ी पौराणिक-कथा भी भूल गये? इसे सती का मायका माना जाता है जिन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा अपने पति शिव का अपमान किये जाने पर अपनी जान दे दी थी। दूसरा जन्म पर्वतराज की पुत्री पार्वती के रूप में हुआ तो भी शादी सिर्फ़ शिव से करने की ज़िद के साथ तपस्या की। शिवपुराण में ज़िक्र है कि किस तरह से उनकी माँ ने ‘भूत-पिशाचों से घिरे, भभूत मलने वाले, अज्ञात कुल के शिव’ से विवाह करने से मना कर दिया तो  पार्वती ने स्पष्ट कह दिया कि “माँ! मैने मन, वाणी और क्रिया द्वारा स्वयं हर का वरण किया है, हर का ही वरण किया है। मैं किसी और का वरण नहीं करूँगी।“  (संक्षिप्त शिव पुराण, पृष्ठ 325, गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित)
विचार से और खबरें
इस कथा से एक बात तो यह साबित होती ही है कि पार्वती स्त्री के जीवनसाथी के चयन के अधिकार का संदेश दे रही हैं। ‘मन,वाणी और क्रिया’ से किसी का वरण करने वाली स्त्री को ही पति बनाना, किसी स्त्री का अधिकार है। आज संविधान भी यही बात कहता है। लेकिन हिंदुत्ववादी संगठनों को न धर्म का मर्म समझ आ रहा है और न संविधान का। वे भूल गये हैं कि नफ़रत की चाहे जितनी भी बारिश हो, प्यार के फूलों के खिलने से रोका नहीं जा सकता। यशपाल बेनाम की बेटी न पहली है और न आख़िरी जिसने प्रेम-पथ पर चलना चुना है। नफ़रत प्यार से हमेशा हारा है। इस बार भी हारेगा।

(लेखक कांग्रेस से जुड़े हैं) 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें