इन दिनों को नवरात्रि कहा जाता है। इन दिनों लोग व्रत रख कर देवी की मूर्ति के सामने मन्दिर में या पंडाल में हाथ जोड़कर खड़े दिखाई देते हैं। ये सब देवी के भक्तों में शुमार हैं, उसी देवी के जो स्त्री के रूप में मूर्तिमान है। स्त्री रूप की आराधना करने वालों तुम ही तो हो जो अपने घर की स्त्री सताने में कोर कसर नहीं छोड़ते। तुम ही हो जो स्त्री के यौनांगों से जोड़कर साथी पुरुष को गालियाँ देते हो। तुम्हारी मान्यता के अनुसार मनुष्य जीवन में स्त्री दोयम दर्जे पर है। परिवार और समाज की मान्यताएँ तुमने बनाई हैं जिन पर स्त्री को आँखें बन्द कर के चलने का नियम जारी है। ग़ौर से देखा जाये तो चारों ओर से स्त्री की गतिशीलता पर कसावट है। आश्चर्य नहीं कि स्त्री से बलात्कार तुम्हारी मर्दानगी की खुराक है।