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बलात्कार जैसी जघन्य घटनाओं को जातीय नज़रिये से क्यों देखा जा रहा है?

हाल के वर्षों में बलात्कार को लेकर नई धारणा बनकर उभरी है कि तमाम मामलों को जातीय व धार्मिक नज़रिए से देखा जाने लगा है। पुलिस की कार्रवाई भी तमाम मामलों में ऐसी होती है कि जनता इस नज़रिए से देखने को मजबूर हो रही है। उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में सामूहिक बलात्कार की शिकार लड़की की सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई। लड़की के परिजनों के मुताबिक़ उसकी की जीभ काट दी गई, उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई। वहीं पुलिस ने मृतका के साथ हुई हैवानियत और बलात्कार को नकार दिया है। इसे लेकर चर्चा है।

बलात्कार और हत्या जैसी वीभत्स घटनाओं में हाल के वर्षों में चर्चा के केंद्र में जाति और धर्म प्रमुखता से आ रहे हैं। हाथरस मामले में भी यही हुआ। सूचना के मुताबिक़ पहले इस मामले में प्राथमिकी तक दर्ज नहीं हुई। जब बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने ट्वीट किया और भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर पीड़िता से मिलने पहुँचे तो मामला दलित बनाम सवर्ण बन गया। इतना ही नहीं, इस मामले में आरोपियों के बचाव में राष्ट्रीय सवर्ण परिषद भी सामने आ गई।

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सवर्ण परिषद के राष्ट्रीय प्रचारक के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने ज़िले के एसपी से मुलाक़ात कर ज्ञापन सौंपा और कहा कि पीड़िता के साथ मारपीट के मामले में राजनीतिक दबाव के बाद हत्या के प्रयास और सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ। हालाँकि यह ज्ञापन दिए जाने के 24 घंटे के भीतर पीड़िता की मौत हो गई, जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि हमला जानलेवा था, न कि सिर्फ़ मारपीट का मसला था। वहीं राजनीतिक दबाव के पहले पुलिस ने किसी गंभीर धारा में मामला भी दर्ज नहीं किया था और अभी भी पुलिस का कहना है कि बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है। ऐसे में पुलिस प्रशासन और सवर्ण परिषद का रुख एक ही है।

पीड़िता वाल्मीकि समाज से और हमलावर क्षत्रिय समाज के बताए जा रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्षत्रिय हैं और सोशल मीडिया पर एक बयार चल पड़ी है कि सरकार और प्रशासन आरोपियों का बचाव कर रहा है।

जिस तरह से शुरुआत में मुक़दमा नहीं दर्ज किया गया, पीड़िता के इलाज के उचित इंतज़ाम नहीं हुए और राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल लाए जाने के बाद पीड़िता की मौत हो गई, उससे यह लगता है कि प्रशासन ने इस मामले को दबाने की पूरी कवायद की है।

कठुआ मामला

यह इकलौता मामला नहीं है, जब बलात्कार के आरोपियों के पक्ष में आंदोलनकारी उतरे हैं। जम्मू के कठुआ में बकरवाल मुसलिम समुदाय की एक 8 साल की बच्ची के साथ जनवरी 2018 में बलात्कार हुआ। इसके ख़िलाफ़ देश भर में आक्रोश था। आक्रोश की एक वजह यह हो सकती है कि मामले में मुख्य अपराधी सरकारी अधिकारी था और दो पुलिसकर्मी भी इसमें शामिल थे। पुलिस के मुताबिक़ बच्ची को कई दिनों तक ड्रग्स देकर बेहोश रखा गया। इस मामले में महबूबा मुफ्ती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे और भाजपा नेता लाल सिंह ने बलात्कारियों के पक्ष में रैली निकाली थी। इस मामले में पूर्व सरकारी अधिकारी सांझी राम सहित 3 लोगों को अदालत ने उम्र कैद की सज़ा सुनाई है।

हैदराबाद रेप केस

28 नवंबर 2019 को हैदराबाद में एक टोल प्लाजा के पास 26 साल की एक महिला पशु डॉक्टर का जला हुआ शव मिला। जाँच में पता चला कि महिला के साथ रेप हुआ था और बाद में हत्या के बाद जला दिया गया। इस मामले में हैदराबाद पुलिस ने 4 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया। मामले में गिरफ्तार लोगों में खेतिहर मज़दूरों के बच्चे थे और उनमें से एक के परिजन ने बयान दिया कि अगर उसने ऐसा जघन्य अपराध किया है तो उसे फाँसी की सज़ा मिलनी चाहिए। इसमें गिरफ्तार चार अभियुक्तों में मोहम्मद आरिफ, जोलू शुवा, जोलू नवीन कुमार और चिंताकुंता चेन्ना केशवुलु शामिल थे।

हालाँकि गिरफ्तार लोगों में 3 हिंदू थे, इसके बावजूद सोशल मीडिया में मामले को हिंदू बनाम मुसलिम बनाने की कोशिश की गई। इस मामले में बलात्कार के आरोपियों के पक्ष में कोई रैली नहीं निकाली गई। पुलिस ने 10 दिन हिरासत में रखने के बाद कथित रूप से इन चारों अभियुक्तों को एक मुठभेड़ में मार गिराया, जिसे लेकर कई सवाल भी उठे।

कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानंद मामले

उत्तर प्रदेश में ही बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे चिन्मयानंद के बलात्कार के मामले आए। सेंगर तो तब गिरफ्तार हुआ, जब वह पीड़िता के परिवार को भारी नुक़सान पहुँचा चुका था। उन्नाव पीड़िता के पिता को बुरी तरह पीट पीटकर मार डाला गया और जब वह अस्पताल में इलाज कराने गया तो डॉक्टर ने भी उसके साथ दुर्व्यवहार किया, जिसका वीडियो सार्वजनिक हुआ था। चिन्मयानंद और सेंगर दोनों ही क्षत्रिय जाति के हैं और दोनों मामलों में पीड़िताएँ भी क्षत्रिय जाति की हैं। वहीं दिल्ली का निर्भया बलात्कार मामला तो पूरी दुनिया में चर्चा में आ गया था।

विचार से ख़ास

आइए देखते हैं कि देश में साल में बलात्कार के कितने मामले दर्ज हुए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2019 में बलात्कार के कुल 32,033 मामले सामने आए, जिनमें पीड़िता से पहले से परिचित आरोपियों की संख्या 30,165 है, जो कुल मामलों का 94.2 प्रतिशत है। बलात्कार करने वाले परिचित लोगों में परिवार के सदस्यों की संख्या 2,916, पारिवारिक मित्र, पड़ोसी, नियोक्ता या अन्य परिचित लोगों की संख्या 10,938 रही है। बलात्कारियों में 16,311 मित्र, ऑनलाइन मित्र या शादी के बगैर साथ रहने वाले लिव-इन पार्टनर और अलग हो चुके पति शामिल हैं। वहीं 1,868 मामलों में अपराध करने वाले के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी।

इन 32 हज़ार से ज़्यादा मामलों में से तमाम मामले बलात्कार के बाद हत्या के भी हैं और ज़्यादातर मामलों में पीड़िताएँ कोर्ट-कचहरी और पुलिस के चक्कर काट रही हैं। लेकिन कुछ मामलों में ही चर्चा हो पाती है। बलात्कार के मामलों में चर्चा होने की कुछ प्रमुख वजहें बलात्कारी का हाई प्रोफ़ाइल होना, हिंदू बनाम मुसलिम मामला होना, दलित बनाम सवर्ण मामला होना आदि शामिल हैं। 

इसमें यह भी आरोप लगते हैं कि अगर पीड़िता दलित हो और आरोपी सवर्ण हो तो मामले दबा दिए जाते हैं। केवल सवर्ण पीड़िताओं के मामले उठाए जाते हैं।

वहीं बलात्कारी न तो जाति देख रहे हैं, न उम्र देख रहे हैं, न परिवार के सदस्य देख रहे हैं। आँकड़े बताते हैं कि सबसे ज़्यादा बलात्कार पीड़िताओं के परिजनों व जानने वालों ने ही किए हैं। अगर हम उम्र के हिसाब से देखें तो किसी भी उम्र की महिला बलात्कारियों से बच नहीं पाई है। 6 साल से कम उम्र से लेकर 60 साल से ऊपर की महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले सामने आए हैं। 18 साल से कम उम्र की नाबालिग 4,977 महिलाएँ बलात्कार की शिकार हुई हैं। इनमें 6 साल से कम उम्र की 144, 6 साल से 12 साल की उम्र की 428, 12 साल से 16 साल उम्र की 1,648, 16 साल से 18 साल उम्र की 2,757 महिलाएँ शामिल हैं। वहीं 18 साल से ज़्यादा उम्र की 27,283 महिलाएँ बलात्कार की शिकार बनी हैं। इनमें 18 साल से 30 साल उम्र की सबसे ज़्यादा 19,653 महिलाएँ बलात्कार का शिकार हुई हैं। 30 से 45 साल के उम्र की 6,716, 45 से 60 साल उम्र की 851, और 60 साल से ज़्यादा उम्र की 63 महिलाएँ बलात्कार का शिकार बनी हैं।

बलात्कार और उसके बाद की वीभत्स हत्या की घटनाओं को जातीय और धार्मिक नज़रिए से देखे जाने से मामले और जटिल बन रहे हैं। वहीं जिस तरह से सवर्ण तबक़ा बलात्कारियों के पक्ष में आता है, या सवर्ण लड़की के साथ बलात्कार के मामले में उग्र होता है, यह आश्चर्यजनक है। साथ ही अगर बलात्कारी हिंदू और पीड़िता मुस्लिम है तो बलात्कारी के धर्म को लेकर पूरे मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बन चुकी है। आँकड़े कहते हैं कि बलात्कार की घटनाओं को जघन्यतम अपराध के रूप में देखे जाने की ज़रूरत है और प्रशासन को भी इस तरह से कार्रवाई करने की ज़रूरत है, जिससे आम जनता का भरोसा न्याय व्यवस्था पर बरकरार रह सके।
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प्रीति सिंह
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