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दिल्ली के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम हिन्दुओं को बौद्ध बनाने की दीक्षा दिलाते हुए।

दिल्ली में हजारों हिन्दू क्या वाकई बौद्ध बने, बीजेपी आगबबूला

दिल्ली में हजारों हिन्दुओं के बौद्ध धर्म अपनाने पर बीजेपी बेहद नाराज है। हालांकि असली विवाद ये है कि हिंदुओं के देवताओं को न मानने की शपथ ली गई है । ये शपथ आंबेडकर ने भी बौद्ध धर्म अपनाते हुये ली थी । जो शपथ ली जाती है, उनमें से ये एक शपथ है। बहरहाल, बीजेपी के तमाम नेता इसे धर्म परिवर्तन बता रहे हैं। उसने इसके लिए आम आदमी पार्टी सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें बतौर मंत्री हटाने की मांग कर दी है। इस मामले में बीजेपी नेताओं ने दिल्ली पुलिस में शिकायत की है। 
दरअसल, बुधवार को दिल्ली के आम्बेडकर भवन में लगभग 10 हजार लोग एकत्र हुए और 5 अक्टूबर को दशहरा के अवसर पर कथित तौर पर बौद्ध धर्म अपनाने की दीक्षा में भाग लिया। कार्यक्रम का आयोजन आप नेता और दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम, भारतीय बौद्ध महासभा और बौद्ध सोसाइटी ऑफ इंडिया ने किया था। इसमें डॉ. बी.आर. के परपोते राजरत्न आम्बेडकर के साथ कई बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया। हालांकि विजयदशमी के दिन बौद्ध लोग बाबा साहब आम्बेडकर की शपथ को दोहराते हैं। लेकिन बीजेपी का आरोप है कि इस कार्यक्रम में हजारों हिन्दुओं को बौद्ध बना दिया गया। इसमें अधिकतर दलित समुदाय के लोग हैं। बीजेपी हिन्दुत्व के एजेंडे पर काम करती है तो इसे अपने लिए एक चुनौती मान रही है।
मिशन जय भीम के संस्थापक गौतम ने ट्विटर पर इवेंट की तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा, 'आइए मिशन जय भीम को बुद्ध की ओर बुलाएं। आज विजयादशमी पर "मिशन जय भीम" के तत्वावधान में, डॉ आम्बेडकर भवन रानी झांसी रोड पर तथागत गौतम बुद्ध के धम्म पर घर लौटकर 10,000 से अधिक बुद्धिजीवियों ने जाति मुक्त और अछूत भारत बनाने का संकल्प लिया। बुद्ध, जय भीम!"

घटना के वीडियो जब सोशल मीडिया पर फैले तो बीजेपी ने बखेड़ा कर दिया। खासकर एक एक क्लिप में, जहां लोगों को हिंदू देवी-देवताओं की पूजा नहीं करने और न ही हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने के लिए कहा गया, विवाद पैदा हो गया।
बीजेपी प्रवक्ता हरीश खुराना ने क्लिप साझा करते हुए आरोप लगाया कि यह आप पार्टी के दोहरेपन को दर्शाता है, क्योंकि वे चुनाव के दौरान उनसे प्रार्थना करते हैं। “यह @AamAadmiParty का दोहरापन है। जिस राज्य में चुनाव होते हैं।@ArvindKejriwal और उनके गुर्गे जय श्री राम और जय श्री कृष्ण कहते नहीं थकते। लेकिन जहां वे सत्ता में हैं, उनके मंत्री (स्वयं सुनें) हमारे इष्ट देवताओं का अपमान कैसे करते हैं। उन्होंने ट्वीट में कहा, वे इस बारे में पुलिस में शिकायत दर्ज करेंगे। 
दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने आप पार्टी को 'हिंदू विरोधी' करार दिया और अपने नेताओं से कहा कि वे हिंदू मंदिरों में जाकर दिखावा न करें। 
गुप्ता ने बीजेपी की मीडिया ब्रीफिंग में आप नेता राजेंद्र पाल गौतम को बर्खास्त करने की भी मांग की। आप की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, वह अरविंद केजरीवाल की पार्टी के मंत्री हैं और वह 10,000 लोगों की भीड़ में धार्मिक भाषण कर रहे हैं।
बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा, यह हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का अपमान है। आप के मंत्री दंगा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। मंत्री को तुरंत पार्टी से हटा देना चाहिए। हम उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कर रहे हैं।

आरोपों का जवाब देते हुए, गौतम ने सीएनएन-न्यूज 18 को बताया, यह कार्यक्रम भारतीय बौद्ध समाज द्वारा आयोजित किया गया था। इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। एक मंत्री के रूप में, मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं लेकिन बौद्ध धर्म का पालन करता हूं। हम वही 22 शपथ ले रहे हैं जो बाबा साहब ने ली थी।

दरअसल, गौतम डॉ. बी.आर. आम्बेडकर द्वारा ली गई शपथ का जिक्र कर रहे थे। गौतम ने बीजेपी को देश विरोधी बताते हुए कहा कि हमारा संविधान बताता है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है। 

क्या है विजयदशमी आम्बेडकर शपथ

आम्बेडकर ने 1956 में दीक्षा भूमि, नागपुर में छह लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। इस दिन को अनुयायियों के बीच अशोक विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। उस कार्यक्रम में आम्बेडकर ने 22 शपथ ली थी लेकिन उनमें से एक शपथ पर बीजेपी, आरएसएस और अन्य दक्षिणपंथी संगठन एतराज करते हैं। उस शपथ में हिन्दू देवी-देवताओं को नहीं मानने और न ही उनकी पूजा करने की शपथ ली जाती है। अगर कोई हिन्दू देवी-देवताओं को नहीं मानता है या उनकी पूजा से इनकार करता है तो दक्षिणपंथी संगठन उसे गैर हिन्दू करार देते हैं।
आम्बेडकर ने हिन्दुत्व को त्यागने से पहले करीब 20 वर्षों तक तमाम धर्मों और वर्ण व्यवस्था का गहन अध्ययन किया 14 अक्टूबर 1956 को जब उन्होंने नागपुर में अपने करीब 3,65,000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया तो उनके पास ठोस तर्क थे। उन्होंने कहा था कि दलितों के लिए जाति व्यवस्था की निंदा करने और समानता हासिल करने का यही एकमात्र तरीका था। इसने न केवल उनका रास्ता बदल दिया, बल्कि बड़ी संख्या में हाशिए के लोगों के जीवन को भी बदल दिया। उन्होंने कहा था कि हिंदू धर्म की नींव का आधार असमानता है। बुद्ध ने उस असमानता के खिलाफ लड़ने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। 22 शपथ में यह शपथ भी ली जाती है कि बौद्ध धर्म अपनाने वाला जीवन भर असमानता के लिए लड़ेगा। हिन्दुओं की विभिन्न जातियों में बांटने वाली मनु स्मृति की वर्ण व्यवस्था को आम्बेडकर ने खारिज कर दिया। उनके नेतृत्व में मनु स्मृति जलाई भी गई।

आम्बेडकर ने कई जगहों पर लिखा है कि  हिंदू धर्म जाति और लिंग के आधार पर असमानता सिखाता है। इसके विपरीत, बुद्ध 'चतुर्वर्ण' (जाति व्यवस्था के जनक) के सबसे बड़े विरोधी थे। उन्होंने न केवल इसका प्रचार किया और इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी, बल्कि इसे जड़ से उखाड़ने के लिए सब कुछ किया। बुद्ध ने कहा: आप जितने पवित्र शब्द पढ़ते हैं, आप जितने बोलते हैं, यदि आप उन पर कार्रवाई नहीं करते हैं तो वे आपका क्या भला करेंगे? बुद्ध के लिए धर्म नैतिकता के बारे में था, न कि कर्मकांडों के बारे में। अपने धर्म परिवर्तन के दिन, आम्बेडकर ने कहा: ... धर्म मनुष्य के लिए है, न कि मनुष्य धर्म के लिए। मानव उपचार प्राप्त करने के लिए, स्वयं को परिवर्तित करें। संगठित होने में परिवर्तित करें। शक्तिशाली बनने के लिए परिवर्तित करें। समानता हासिल करने के लिए कनवर्ट करें। स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए परिवर्तित करें। 

आम्बेडकर के बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने का प्राथमिक कारण इसके मूल्य थे जो हिंदू धर्म के विपरीत चलते हैं: तर्कसंगतता, नैतिकता और न्याय। बौद्ध धर्म ने आम्बेडकर को उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद की। आम्बेडकर ने अपने धर्मांतरण के इरादे की घोषणा करने के 20 साल बाद 1956 में सार्वजनिक रूप से बौद्ध धर्म अपनाया था। इस बीच, उन्होंने अन्य प्रमुख धर्मों का अध्ययन किया और उनकी अच्छी तरह से जांच की। उन्होंने बौद्ध धर्म को सर्वश्रेष्ठ मार्ग के रूप में चुना। नैतिकता, समानता, न्याय (भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित) और प्रत्येक मनुष्य और जीवित प्राणी के कल्याण के लिए उनकी कठिन खोज उन्हें बौद्ध धर्म में ले गई। बहरहाल, 6 दिसंबर, 1956 को धर्मांतरण के लगभग दो महीने बाद उनकी मृत्यु हो गई। फिर भी उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के माध्यम से जो रास्ता चुना, उसने दलित समुदाय को हमेशा के लिए बदल दिया।

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क़मर वहीद नक़वी
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