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2024 के लिए अपनी भूमिका तलाशते अखिलेश

2024 के आम चुनाव में महज एक साल का समय बचा हुआ है। इसकी तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। इन तैयारियों में सबसे अहम सवाल है कि नौ साल से सत्ता में काबिज बीजेपी को अगला चुनाव जीतने से कैसे रोका जाए, हर राजनीतिक दल इसी कवायद में लगा हुआ है। इसके लिए क्षेत्रीय दल सबसे ज्यादा सक्रिय हैं, इसका कारण कि बीजेपी के रिकॉर्ड को देखते हुए कई दलों का आस्तित्व दांव पर लगा हुआ है।
आने वाले 17 मार्च को अखिलेश यादव पंश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी से कोलकाता में उनसे मुलाकात करेंगे। अखिलेश केवल ममता से मुलाकात ही नहीं करेंगे, उन्होंने समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी कोलकाता में ही आयोजित की है।
लखनऊ से एक हजार किलोमीटर दूर पार्टी की बैठक आयोजित करने के कई माएने निकाले जा रहे हैं। इसका कारण है कि समाजवादी पार्टी एक क्षेत्रीय दल के तौर पर राजनीति करती है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है, क्योंकि पार्टी जिस राज्य में बैठक आयोजित करने जा रही है वहां उसका कोई जनाधार नहीं है। और अलग-अलग राज्यों में इस तरह की बैठकों का आयोजन राष्ट्रीय पार्टियां पहले से ही करती रही हैं।
जिस दिन खबर आई कि अखिलेश कोलकाता में बैठक करेंगे उसके एक दिन पहले खबर आई कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और जेडीयू उत्तर प्रदेश में मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
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जेड़ीयू और समाजवादी पार्टी के इस गठबंधन की सबसे अहम बात यह है कि अखिलेश यादव जिस जेडीयू के साथ गठबंधन कर रहे हैं वह बिहार में नीतिश कुमार के नेतृत्व में सरकार चला रही है, और राजद उस गठबंधन का हिस्सा है, जबकि अखिलेश ने अभी तक राजद के साथ गठबंधन का कोई संदेश नहीं दिया है।
इसके उलट तेजस्वी यादव कांग्रेस के साथ ही गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं इस गठबंधन के लिए उन्होंने डीएमके के एमके स्टालिन, फारुख अबदुल्ला, हेमंत सोरेन से पहले ही मुलाकात कर चुके हैं।
अखिलेश इस सबसे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के साथ भी मुलाकात कर चुके हैं। दोनों नेताओं की यह मुलाकात केसीआर द्वारा पार्टी का नाम बदलने के मौके पर की रैली के आयोजन में हुई थी जब उन्होंने देश भर के नेताओं को आमंत्रित किया था।
बीते दिनों दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी और राजद नेता तेजस्वी यादव के यहां पड़े छापों के बाद नौ पार्टियों के प्रमुखों ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की थी, और प्रधानमंत्री से इसपर संज्ञान लेने को कहा था।
इस पत्र में शरद पवार, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल केसीआर, उद्धव ठाकरे के नाम प्रमुख रुप से शामिल थे।  ऐसे में अखिलेश की यह सक्रियता किसी अलग धड़े की बनने की शुरुआत हो सकती है। इसका कारण कि केसीआर इस साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में व्यस्त रहेंगे और शरद पवार उम्र के कारण उतने सक्रिय न रह पाएं, इस सबके बीच ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि वे किसी मोर्चे में शामिल नहीं होंगी।
ऐसे में यह देखना जरूरी हो जाता है कि अखिलेश विपक्षी एकता इन प्रयासों में कितना सफल हो पाते हैं। क्योंकि कांग्रेस इसके लिए अलग से प्रयास कर रही है। बीते तीन दिनों के संसद सत्र में ज्यादातर विपक्षी दलों ने कांग्रेस की रणनीति के मुताबिक ही सरकार को घेरने का प्रयास किया है। हालांकि आम आदमी पार्टी, बीआरएस, और टीएमसी ने इससे दूरी बनाकर रखी।
केसीआर का किसी एकता में शामिल होना बहुत हद तक इस बात पर भी निर्भर करेगा कि उनकी बेटी के कविता के खिलाफ दिल्ली एक्साइज पॉलिसी में चल रही जांच पर, जांच एजेंसियों का क्या रुख रहता है।
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि विपक्ष अगर एकजुट होकर चुनाव में नहीं उतरता है तो वह बीजेपी को एक सेफ पैसेज देगा जो उसके तीसरी बार सत्ता में वापस लौटने की राह आसान करेगा। ऐसे में देखना आवश्यक है कि विपक्ष बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए चुनाव में उतरेगै या फिर केवल चुनाव लड़कर अपनी प्रतिष्ठा बचाने और उपस्थिति दर्ज कराने।
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विपक्षी एकता के बनाने के प्रयास में कांग्रेस भी लगी हुई है लेकिन उससे पहले वह कर्नाटक विधानसभा के चुनाव का इंतजार कर रही है। कांग्रेस के तले बनने वाले किसी मोर्चे का भविष्य कर्नाटक चुनाव से ही तय होगा। उसके बाद ही वह गठबंधन के मोर्चे पर अपने पत्ते खोलेगी।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उसने इस मुद्दे पर बिलिकुल भी चुप्पी साध रखी हो। उसने संसद में सरकार को घेरने के लिए जिस तरह से कई पार्टियों का नेतृत्व किया वह उसके गठबंधन बनाने के प्रयासों का ही नतीजा है। इसके लिए उसने उन मुद्दों को ही सामने रखा जिसमें विपक्षी दलों को परेशानी न हो। इसमें सबसे प्रमुख अडानी मामला है जिसको संसद में उठाने के लिए कांग्रेस लगातार प्रयास कर रही है।
अखिलेश यादव जिन लोगों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं वह एक जमाने में कांग्रेस के ही लोग थे और उनका वोट बैंक भी कांग्रेस से छिटका वोट बैंक है। जबकि बीजेपी इन पार्टियों के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में देखना होगा कि अखिलेश अपने इन प्रयासों में कितना सफल होते हैं और कौन उनके साथ आता है।  
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क़मर वहीद नक़वी
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