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इस तस्वीर को गौर से देखिए, कभी अखिलेश ने यह फोटो सोशल मीडिया पर लगाई थी।

I.N.D.I.A की बर्बादी की इबारत लिख रहे अखिलेश, राहुल से क्यों चिढ़े हुए हैं?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कभी भी आजतक अखिलेश यादव या मायावती के खिलाफ ऐसी बयानबाजी नहीं की, जिसकी वजह से उन्हें बाद में खेद जताना पड़े या शर्मिन्दा होना पड़े। लेकिन समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव कांग्रेस और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लगातार निशाना बना रहे हैं। ये बात एकाध बार तो चलती है लेकिन अखिलेश रणनीतिक रूप से इस काम को अंजाम दे रहे हैं। मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ने पहुंची सपा वहां सत्तारूढ़ को निशाना बनाने की बजाय राहुल और कांग्रेस को निशाना बना रही है। अखिलेश ये सारे बयान राहुल के जाति जनगणना वाला मुद्दा उठाने के बाद दे रहे हैं। राहुल अपने बयान में पीएम मोदी पर इसके लिए निशाना साध रहे हैं लेकिन अखिलेश का निशाना राहुल पर है। राजनीति में कोई भी मुद्दा किसी की जागीर नहीं होता। कोई भी पार्टी या नेता अपनी सुविधा के अनुसार मुद्दा उठा सकता है लेकिन अखिलेश की नाराजगी इस बात पर है कि राहुल गांधी जाति जनगणना की मांग क्यों कर रहे हैं। लेकिन क्या अखिलेश की नाराजगी सिर्फ यही है?
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को मध्य प्रदेश की रैली में जाति जनगणना को एक्सरे की तरह बताया था, जो देश के विभिन्न समुदायों का विवरण देगी। कांग्रेस नेता ने कहा था- मोदी जी पहले अपने भाषणों में खुद को ओबीसी कहते थे। लेकिन जब से मैंने जाति जनगणना की बात शुरू की है, तब से मोदी जी कहते हैं कि देश में कोई जाति नहीं है, सिर्फ गरीब हैं। मतलब देश में सिर्फ एक ही ओबीसी नरेंद्र मोदी हैं।...मध्य प्रदेश की सरकार को शिवराज सिंह चौहान और 53 अफसर चलाते हैं। इन 53 अफसरों में से पिछड़े वर्ग का सिर्फ 1 अफसर है। फिर भी सीएम शिवराज और पीएम मोदी कहते हैं कि मध्य प्रदेश में पिछड़ों की सरकार है। 

   

अखिलेश ने एक्सरे शब्द को पकड़ा और बयान दे डाला। राहुल गांधी की टिप्पणी पर कटाक्ष करते हुए सपा प्रमुख ने व्यंग्यात्मक ढंग से पूछा, "जब एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी नई तकनीक की उपलब्धता है तो एक्स-रे क्यों?" यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने सवाल किया कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उसने जाति जनगणना क्यों नहीं कराई। उन्होंने दावा किया कि सबसे पुरानी पार्टी अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले समाज के निचले स्तर के मतदाताओं को लुभाने के लिए देशव्यापी जाति-आधारित सर्वेक्षण की वकालत कर रही है। अखिलेश ने कहा-

जो लोग एक्स-रे के बारे में बात कर रहे हैं, वे वही लोग हैं जिन्होंने आजादी के बाद जाति जनगणना को रोक दिया था... जब लोकसभा में सभी दल जाति जनगणना की मांग कर रहे थे, तो उन्होंने जाति जनगणना नहीं कराई। वे आज ऐसा क्यों करना चाहते हैं? क्योंकि वे जानते हैं कि उनका पारंपरिक वोट बैंक उनके साथ नहीं है। ...सभी पिछड़े वर्ग, दलित और आदिवासी जानते हैं कि उन्होंने (कांग्रेस) आजादी के बाद उन्हें धोखा दिया। इसलिए इस बार वे हार जाएंगे।


-अखिलेश यादव, सपा प्रमुख, सतना में 13 नवंबर 2023 को सोर्सः पीटीआई

अखिलेश ने पिछले हफ्ते दावा किया था कि कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती है और दलितों और पिछड़े वर्गों पर केंद्रित 'पीडीए' नामक तीसरे मोर्चा बनाने की वकालत की। ये वही अखिलेश यादव हैं जिन्होंने इंडिया गठबंधन की पटना, बेंगलुरु और मुंबई बैठकों में भाग लिया था। बीच में यूपी में गाजीपुर उपचुनाव हुआ, जिसमें इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की और सीट सपा के खाते में आई। अब तीन महीनों में ऐसा क्या हो गया कि अखिलेश इंडिया को छोड़कर पीडीए की वकालत करने लगे। इसकी कुछ वजहों पर रोशनी डाली जा सकती है। 
कांग्रेस ने जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) से राजस्थान विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया है। जयंत और उनकी पार्टी का कद राजस्थान में भले ही बड़ा नहीं हो लेकिन पश्चिमी यूपी में उन्हें कोई नजरन्दाज नहीं कर सकता। यहां तक की अखिलेश ने भी आरएलडी से समझौता करके ही पश्चिमी यूपी में चुनाव लड़ा। अखिलेश को राजस्थान में नए समीकरण की वजह से डर यह सता रहा है कि अगर कांग्रेस ने यही काम पश्चिमी यूपी में किया तो अखिलेश अकेले पड़ जाएंगे। ऐसे में पश्चिमी यूपी में कांग्रेस जयंत के साथ मिलकर जाट, मुस्लिम और ब्राह्मण समेत तमाम जातियों का नया समीकरण बना सकती है। अखिलेश के पास सिर्फ यादव वोट बैंक ही बचेगा, उसमें भी भाजपा की अपनी हिस्सेदारी है।
यही वजह है कि अखिलेश ने अभी हाल ही में सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में 65 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी और 15 सीटें सहयोगी दलों या निकट भविष्य में बनने वाले पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठबंधन के लिए छोड़ दीं। कल को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी यूपी में आकर लोकसभा चुनाव लड़ती है तो अखिलेश उसे सीटें दे सकते हैं। क्योंकि अखिलेश को इस समय अगर कोई डर सता रहा है तो वो मुस्लिम मतदाता है। कांग्रेस जिस तरह से मजबूत हो रही है, मुस्लिमों का झुकाव कांग्रेस की ओर हो रहा है। इस तथ्य ने अखिलेश को हिला दिया और वे किसी भी हालत में मुस्लिम वोट कांग्रेस में नहीं देना चाहते। दूसरी तरफ यूपी के मुस्लिम अखिलेश की राजनीति और तमाम मुद्दों पर उनके चुप रहने से दूर जा चुके हैं। कुल मिलाकर अखिलेश सारा दांवपेंच यूपी के आगामी चुनाव के मद्देनजर चल रहे हैं।
राहुल गांधी ने नेरेटिव बदलाः राहुल गांधी ने चार राज्यों के चुनाव में जाति जनगणना का मुद्दा लगातार उठाकर चुनाव का नेरेटिव बदल दिया है। यह बात अखिलेश को तो चुभ ही रही है, भाजपा भी परेशान है। जाति जनगणना एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गया है और अगले साल आम चुनाव से पहले कांग्रेस इस पर अधिक मुखर है। ये भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस और राहुल गांधी ने ओबीसी आधारित दलों खासकर सपा से यह मुद्दा छीन लिया है।
कांग्रेस के आक्रामक होने से देशव्यापी जाति जनगणना का विरोध करने वाली भाजपा ने भी अब अपना रुख नरम करने का संकेत दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा कि भाजपा ने कभी भी जाति जनगणना के विचार का विरोध नहीं किया, लेकिन व्यापक विचार-विमर्श के बाद निर्णय लेगी। बिहार में सबसे पहले नीतीश कुमार ने जाति जनगणना कराई और अब उसके आंकड़े भी जारी कर दिए। आंकड़ों ने भाजपा को हिला दिया। भाजपा अब बहुत चतुराई से वही भाषा बोल रही है जो अखिलेश बोल रहे हैं। अखिलेश ने जाति जनगणना नहीं कराने का जिम्मेदार कांग्रेस को बताया। भाजपा भी वही बात कह रही है। हालांकि राहुल गांधी ने बार-बार कहा है कि कांग्रेस ने इसे नहीं कराकर गलती की है। 
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अखिलेश की मुख्य चिढ़ यही है कि यूपी में वो ओबीसी का मुद्दा उसके हाथ से कांग्रेस ने छीन लिया है। अखिलेश ने ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे कर अपनी सक्रियता शुरू की लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बयानों से इतना विवाद में आए कि ओबीसी ऑपरेशन पीछे चला गया। अखिलेश के पास फिलहाल मौर्य जैसा कोई ओबीसी नेता भी नहीं है, जिसे आगे करके वो ओबीसी ऑपरेशन को फिर से धार दें।
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यूसुफ किरमानी
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