केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में तीन विवादास्पद विधेयक पेश किया। इनमें प्रस्ताव है कि यदि किसी मौजूदा मंत्री, मुख्यमंत्री या यहां तक कि प्रधानमंत्री को पांच साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराध के लिए लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है, तो उन्हें एक महीने के भीतर अपना पद गंवाना पड़ सकता है।

बिल पेश किए जाने पर जबरदस्त हंगामा हुआ। विपक्षी सांसदों ने विधेयक की प्रतियां फाड़कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ उछाल दीं। विपक्षी सांसदों ने जबरदस्त नारेबाज़ी की। लोकसभा को 3 बजे तक स्थगित किया गया। सदन दोबारा लौटा तो फिर हंगामा हुआ। हंगामे के बीच तीनों विधेयक संसद की संयुक्त समिति को विचार के लिए भेज दिया गया। बिल पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के मनीष तिवारी ने जोरदार दलीलें पेश कीं। अमित शाह और कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल के बीच जोरदार बहस भी हुई।
तीनों विधेयकों के नाम - संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक और संघ राज्य क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक। इन तीनों का मकसद एक ही है। लेकिन तकनीकी कारणों से तीन बिल अलग-अलग पेश किए गए हैं। संविधान (130वां संशोधन) विधेयक मूल विधेयक है, जिसमें बाकी दोनों एक एक्ट के रूप में है। इसलिए मूल बिल में संशोधन करके बाकी दोनों एक्ट भी बदल जाएंगे। लेकिन इन तीनों की मूल आत्मा एक ही है। 
संशोधन विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 75 में एक नया 5(ए) खंड प्रस्तावित किया गया है। इसमें कहा गया है कि "कोई मंत्री, जो पद पर बने रहने के दौरान लगातार तीस दिनों की किसी भी अवधि के लिए, किसी भी कानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में लिया जाता है, जो कि पांच साल या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय है, उसे ऐसी हिरासत में लिए जाने के बाद, इकतीसवें दिन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा उसके पद से हटा दिया जाएगा।" यह विधेयक और एक्ट केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों, तथा केंद्र में केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री पर लागू होगा।
विधेयक पेश होते ही एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने विरोध किया, जिसके बाद विपक्ष ने नारेबाजी शुरू कर दी, जिससे लोकसभा अध्यक्ष को कार्यवाही अपराह्न तीन बजे तक के लिए स्थगित करनी पड़ी।

ओवैसी की आपत्तियां

ओवैसी ने विधेयकों का विरोध करते हुए कहा, "यह कार्यकारी एजेंसियों को जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका निभाने का अधिकार देता है। यह विधेयक अनिर्वाचित लोगों को जल्लाद की भूमिका निभाने का अधिकार देगा।" उन्होंने आगे कहा, "इस विधेयक की धाराओं का इस्तेमाल सरकारों को अस्थिर करने के लिए किया जा सकता है। यह विधेयक गेस्टापो बनाने के अलावा और कुछ नहीं है।"

मनीष तिवारी की आपत्तियां 

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इन विवादास्पद विधेयकों को "पूरी तरह से विनाशकारी" बताया। उन्होंने  "भारतीय संविधान कहता है कि कानून का शासन होना चाहिए, और इसका आधार यह है कि जब तक दोषी साबित न हो जाए, तब तक आप निर्दोष हैं। यह विधेयक इसमें बदलाव की उम्मीद करता है। यह एक कार्यकारी एजेंसी के अधिकारी को प्रधानमंत्री का बॉस बनाता है।" अमित शाह द्वारा विधेयक पेश किए जाने के बाद तिवारी ने लोकसभा में कहा। मनीष तिवारी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से अनुरोध किया कि वे विपक्षी नेताओं को विधेयकों के खिलाफ अपनी दलीलें रखने दें।
मनीष तिवारी ने कहा- यह विधेयक अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है। एफआईआर, गिरफ्तारी, आरोप पत्र, और यहाँ तक कि आरोप तय करना भी किसी भी तरह से दोष सिद्ध नहीं करता। वास्तव में, आप अपने खिलाफ आरोप तय होने के बाद ही निर्दोष होने की दलील देते हैं। यह विधेयक अनुच्छेद 21 के मूल न्यायशास्त्र को उलट देता है। कांग्रेस सांसद ने कहा कि यह विधेयक राज्य के उन संस्थानों द्वारा राजनीतिक दुरुपयोग का रास्ता खोलता है, जिनके मनमाने आचरण पर सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार आपत्ति जताई है। और अंत में, यह सभी मौजूदा संवैधानिक सुरक्षा उपायों को हवा में उड़ा देता है। यह संशोधन अनावश्यक और असंवैधानिक है। मैं इन तीनों विधेयकों की निंदा करता हूँ और इन्हें वापस लिया जाना चाहिए।

अमित शाह और केसी वेणुगोपाल के बीच तीखी बहस 

कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने अपनी बात रखते हुए कहा "यह विधेयक संविधान के मूल सिद्धांतों को तहस-नहस करने के लिए है। भाजपा सदस्य कह रहे हैं कि यह विधेयक राजनीति में नैतिकता लाने के लिए है। क्या मैं गृह मंत्री से एक सवाल पूछ सकता हूँ? जब वे गुजरात के गृह मंत्री थे, तब उन्हें गिरफ़्तार किया गया था। क्या उस समय उन्होंने नैतिकता का पालन किया था?"  केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस सवाल पर भड़क गए। शाह ने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप "झूठे" थे। लेकिन उन्होंने जेल जाने से पहले अपने पद से इस्तीफा देकर संवैधानिक सिद्धांतों का पालन किया। 

अमित शाह के शब्द थे- "अब मेरी बात सुनिए, मैं सारा रिकॉर्ड साफ़ करना चाहता हूँ। मुझ पर झूठे आरोप लगाए गए थे। मैंने नैतिक ज़िम्मेदारी के चलते गिरफ़्तारी से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था। और जब तक अदालत ने मुझे बरी नहीं कर दिया, तब तक मैंने कोई पद नहीं संभाला...।"
अमित शाह ने अध्यक्ष ओम बिड़ला से अनुरोध किया कि वे तीनों विधेयकों को सदन की संयुक्त समिति को भेजें, जिसमें लोकसभा के 21 सदस्य होंगे। जिन्हें अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाएगा और राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे। जिन्हें उपसभापति द्वारा नामित किया जाएगा।

टीएमसी की महिला सांसद पर हमले का आरोप

तृणमूल कांग्रेस की सांसद मिताली बाग ने आरोप लगाया कि जब विपक्ष प्रधानमंत्री और मंत्रियों को हटाने वाले विधेयक का विरोध कर रहा था, तब "केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू और किरण रिजिजू ने मुझ पर हमला किया, उन्होंने मुझे धक्का दिया... यह निंदनीय है...।" हालांकि किरण रिजिजू और रवनीत बिट्टू ने सांसद मिताली बाग के आरोपों का खंडन किया। टीएमसी पार्टी की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।