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राजस्थान सीएम की दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों? सबकुछ ठीक तो है न!

अशोक गहलोत ने गुरुवार को पत्रकारों से कहा कि 'दिल की पीड़ा बता रहा हूँ'। वैसे तो यह बात गहलोत ने कुछ और संदर्भ में कही, लेकिन उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर यही कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या उन्होंने अपनी पीड़ा बताने के लिए प्रेस कॉन्फ़्रेंस की? और यदि ऐसा नहीं है तो फिर उन्होंने क़रीब पौने एक घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों की?

उनकी यह प्रेस कॉन्फ्रेंस तब हुई है जब राजस्थान कांग्रेस की पहली सूची आने वाली थी, लेकिन आ नहीं पाई। एक दिन पहले ही पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति यानी सीईसी की बैठक हुई और फिर रिपोर्टें आईं कि कुछ नामों पर मतभेद हैं। रिपोर्टें आईं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिन लोगों को टिकट दिलाना चाह रहे थे उनमें से कुछ नामों पर आपत्ति हुई। इन नामों में शांतिलाल धारीवाल जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं जो सरकार पर आए संकट के समय अशोक गहलोत के समर्थन में खुलकर सामने आए थे और इस्तीफ़ा तक दे दिया था। हालाँकि बाद में सरकार बच गई थी और उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हो पाया था।

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पार्टी की सीईसी की बैठक के बाद सूत्रों के हवाले से ख़बर आई थी कि पहली सूची में देरी का कारण मंत्रियों समेत कुछ विधायकों को पार्टी से बाहर करने को लेकर पार्टी में गंभीर मतभेद हैं। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया कि गहलोत अपने सभी मंत्रियों को फिर से टिकट दिलाने के इच्छुक थे। वह यह भी चाहते हैं कि पार्टी 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए सभी छह पूर्व बसपा विधायकों के साथ-साथ निर्दलीय विधायकों को भी मैदान में उतारे। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी कि नेतृत्व उन लोगों को टिकट देने से इनकार करना चाहता है, जिनकी इस बार सीटें बरकरार रखने की संभावना कम या बहुत कम है। रिपोर्ट है कि सर्वे की टीम द्वारा तय संभावित उम्मीदवारों की सूची से गहलोत पूरी तरह सहमत नहीं हैं। 

कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि गहलोत खेमा उनकी सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले विधायकों को टिकट देने के भी खिलाफ है। पायलट खेमे का तर्क है कि सीएलपी बैठक में भाग लेने के लिए पार्टी आलाकमान के निर्देश की अवहेलना करने वालों पर भी यही मानदंड लागू किया जाना चाहिए।

गुरुवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में गहलोत से जब पूछा गया कि टिकट में देरी की वजह क्या है तो उन्होंने उन खबरों का खंडन किया, जिनमें सचिन पायलट के साथ उनके मतभेद के लिए टिकट वितरण में देरी को जिम्मेदार ठहराया गया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की राजस्थान इकाई के भीतर कोई मतभेद नहीं है। 
गहलोत ने दावा किया कि उन्होंने एक भी उम्मीदवार की उम्मीदवारी का विरोध नहीं किया है और सचिन पायलट के समर्थकों के पक्ष में वह फ़ैसले ले रहे हैं।
गहलोत ने एक सवाल के जवाब में कहा, 'चयन प्रक्रिया को लेकर विपक्ष का दर्द यह है कि कांग्रेस पार्टी में मतभेद क्यों नहीं हैं। मुझे यकीन है कि आप सचिन पायलट के बारे में बात कर रहे हैं। सभी फैसले सबकी राय से हो रहे हैं। मैं सचिन के फैसलों में हिस्सा ले रहा हूं।' पायलट के साथ चल रहे सत्ता संघर्ष के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'हम सभी एकजुट हैं। मैंने किसी भी एक उम्मीदवार का विरोध नहीं किया है।'

उनकी यह टिप्पणी इसलिए अहम है कि राजस्थान कांग्रेस के भीतर गहलोत और सचिन पायलट के नेतृत्व वाले खेमों के बीच खींचतान की ख़बरें लंबे समय तक आती रही थीं। यह खींचतान तब परवान पर थी जब पायलट के नेतृत्व में एक विद्रोह से 2020 में कांग्रेस सरकार गिरते-गिरते बची थी। पार्टी आलाकमान स्थिति को काबू करने में कामयाब रहा। कहा जाता है कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री का पद चाहते हैं। 

मुख्यमंत्री पद ही 2018 में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच विवाद की मुख्य जड़ था। पद को लेकर खींचतान होती रही और इसी वजह से 2020 में विद्रोह हुआ। तब पायलट को उपमुख्यमंत्री पद और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष का खोना पड़ गया था। तो सवाल है कि क्या गहलोत मुख्यमंत्री का पद छोड़ेंगे?

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आज की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इससे जुड़े सवाल का भी गहलोत ने जवाब दिया। सचिन पायलट का ज़िक्र आते ही मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी की ओर इशारा करते हुए गहलोत ने कहा, 'एक बार एक महिला ने मुझसे कहा था कि भगवान की इच्छा है कि आप चौथी बार सीएम बनें। तो मैंने उनसे कहा कि मैं सीएम पद छोड़ना चाहता हूं लेकिन यह पद है जो मुझे नहीं छोड़ रहा है।' वैसे, गहलोत के इस बयान में दो बातें अहम हैं। एक तो चौथी बार सीएम बनने वाली बात और दूसरी यह है कि सीएम पद उनको नहीं छोड़ रहा है। शायद गहलोत की इस टिप्पणी को पायलट ज़्यादा अच्छी तरह समझ रहे होंगे!

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क़मर वहीद नक़वी
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