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फिर बोले गडकरी, एक नहीं, दो नहीं, मोदी पर लगाए कई निशाने

नितिन गडकरी लगातार इशारों पर इशारे कर रहे हैं, अब जो न समझे, वह अनाड़ी है। एक, नहीं, दो नहीं चार बार वह बोल चुके हैं। नाम वह किसी का नहीं लेते, लेकिन इशारा बिलकुल साफ़ होता है कि उनके निशाने पर और कोई नहीं, बस नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ही हैं।

गडकरी के एक ताज़ा भाषण के हिस्से इंडियन एक्सप्रेस ने छापे हैं। गडकरी के इस नये भाषण में इशारे उनके पहले के बयानों से भी कहीं ज़्यादा तीखे, कहीं ज़्यादा गहरे अर्थों वाले हैं। अपने इस बयान में तो उन्होंने एक-एक कर उन सारी बातों का ज़िक्र किया है, जो पिछले कुछ सालों में 'ब्रांड मोदी' की ख़ास पहचान बन चुकी हैं। नेहरू से लेकर शीर्ष नेतृत्व के 'घमंड और अहंकार' तक हर विषय पर गडकरी ने मोदी-शाह पर ताज़ा वार किया है। और दिलचस्प बात यह है कि यह नया बयान तब आया है, जब अभी दो दिन पहले ही गडकरी ने अपने ऐसे ही एक बयान पर सफ़ाई दे चुके हैं कि मीडिया उनकी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है। 

आइए, देखते हैं कि नितिन गडकरी ने अपने सबसे ताज़ा भाषण में क्या-क्या कहा और कैसे इशारों-इशारों में नरेन्द्र मोदी पर तीखे वार किए। वह देश की प्रमुख ख़ुफ़िया एजेन्सी आईबी यानी इंटेलीजेन्स ब्यूरो के वार्षिक व्याख्यान में बोल रहे थे। ज़ाहिर है कि भाषण पूरी गम्भीरता से ही दिया गया होगा।

सबसे पहली बात यही कि गडकरी ने अपने भाषण में न सिर्फ़ नेहरू का नाम लिया, बल्कि उनकी तारीफ़ भी की। कहा कि उन्हें नेहरू के भाषण पसन्द हैं। उन्होंने कहा, 'नेहरू कहते थे कि भारत एक राष्ट्र नहीं, बल्कि एक आबादी है।'

गडकरी ने कहा, 'नेहरू यह भी कहते थे कि हर व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि वह देश के लिए समस्या नहीं है। मैं भी यही मानता हूँ।'

अब बताइए कि इशारा किस तरफ़ है? मोदी सरकार बनने के बाद से जवाहरलाल नेहरू को लगातार कोसा जा रहा है। मोदी-शाह अपने भाषणों में लगातार नेहरू पर हमले करते रहते हैं। बीजेपी की पूरी 'ट्रॉल' सेना नेहरू को हर प्रकार से बदनाम करने में, उन्हें चरित्रहीन, धर्महीन साबित करने में लगी हुई है। ऐसे में अगर गडकरी खुल कर नेहरू की तारीफ़ कर रहे हैं, तो इशारा क्या है?

  • अब गडकरी की अगली बात। उन्होंने कहा कि अगर आप विनम्रतापूर्वक बोलते हैं, सबको उचित सम्मान देते हैं, तो यह बड़ी बात है। आप समझ ही गए होंगे कि इशारा किधर है? मोदी-शाह जोड़ी के अहंकारपूर्ण रवैये की चर्चा अकसर ही होती रहती है।
  • फिर गडकरी ने अगली बात कही, 'आप केवल इसीलिए चुनाव नहीं जीत सकते कि आप बहुत बढ़िया भाषण देते हैं। आप बहुत विद्वान होंगे तो हों, लेकिन ज़रूरी नहीं कि लोग इसीलिए आपको वोट दे दें। जो आदमी यह समझता है कि वही सब कुछ जानता है, वह ग़लती पर है। लोगों को आर्टिफ़िशल मार्केटिंग से बचना चाहिए।'

अब बताइए इशारा कहाँ है? अपने भाषणों के लिए कौन नेता देश भर में सबसे ज़्यादा मशहूर है। किसके बारे में यह कहा जाता है कि वह अपने मंत्रियों को नहीं पूछता, किसी की नहीं सुनता। और अपनी मार्केटिंग करने के लिए देश में किस नेता का सबसे बड़ा नाम है? समझ ही गए होंगे आप!

गडकरी यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा, 'आत्मविश्वास और अहंकार में फ़र्क़ है। आपमें आत्मविश्वास होना चाहिए, लेकिन अहंकार को दूर रखिए।' अब भी कोई शक है आपको कि गडकरी का इशारा किधर है?

चुनावों के बारे में गडकरी क्या बोले? 

आगे देखिए कि चुनावों के बारे में गडकरी क्या बोले? उन्होंने कहा, 'चुनाव जीतना तो अच्छा है, लेकिन अगर लोगों के जीवन में आप सामाजिक-आर्थिक बदलाव नहीं ला सकते तो फिर इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप सत्ता में आते हैं या सत्ता से बाहर हो जाते हैं। यह देश किसी एक पार्टी या व्यक्ति का नहीं है, बल्कि 120 करोड़ भारतीयों का है।'  

यही नहीं, गडकरी ने यह भी कहा कि सांसद और विधायकों के ख़राब प्रदर्शन के लिए पार्टी चीफ़ ज़िम्मेदार होता है। अब इसका क्या अर्थ है? क्या उनका साफ़ इशारा नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तरफ़ नहीं है? 

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पिछले हफ़्ते भी नेतृत्व पर दिया था बयान  

पिछले हफ़्ते भी गडकरी ने कहा था कि नेतृत्व को हार की भी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। तब इसे पाँच राज्यों में बीजेपी की हार से जोड़ कर देखा गया। तब उन्होंने सफ़ाई दी कि मीडिया ने उनकी बात के बिलकुल ग़लत अर्थ निकाले हैं और सन्दर्भ से अलग हट कर उसे तोड़ा-मरोड़ा है और यह उनके व पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच दरार डालने की कोशिश है। उन्होंने कहा था कि उनका बयान बैंकिंग सेक्टर पर था, उसका राजनीति या हाल के चुनावों  से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन साज़िश के कारण उसे दूसरे अर्थों में प्रचारित किया गया। 
लेकिन सोमवार को आईबी व्याख्यान में फिर उन्होंने बहुत-सी बातें कहीं, जिनकी चर्चा हमने ऊपर की है। उन्होंने कहा, 'अगर मैं पार्टी का अध्यक्ष हूं और मेरे सांसदों और विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं है तो कौन ज़िम्मेदार है? मैं ही तो हूँ।'

‘सहनशीलता देश की सबसे बड़ी जमापूँजी’

गडकरी ने नसीरुद्दीन प्रकरण के बाद उठे सहिष्णुता-असहिष्णुता के मुद्दे की भी चर्चा की और कहा,‘सहिष्णुता हमारी व्यवस्था की सबसे बड़ी जमापूँजी है। ऐसे में यह रवैया ठीक नहीं कि मैं यह कहूँ कि मैंने यह इसलिए किया क्योंकि दूसरे ने अमुक चीज़ की थी। यह सही बात नहीं है।'

‘सफलता के कई पिता, असफलता अनाथ’

दो दिन पहले उन्होंने कहा था कि सफलता के कई पिता होते हैं लेकिन असफलता अनाथ होती है। उन्होंने आगे कहा था कि नेतृत्व को हार की भी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। गडकरी के इस बयान के बाद कहा गया था कि गडकरी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज़ हैं। बाद में उनका खंडन आ गया। लेकिन इसके पहले भी गडकरी के बयानों से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व परेशानी में पड़ चुका है। आरक्षण के मुद्दे पर एक बार गडकरी बोल चुके हैं कि जब नौकरियाँ ही नहीं हैं, तो आरक्षण का क्या मतलब? इसी तरह, उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम में कह दिया था कि हमें 2014 में उम्मीद ही नहीं थी कि हम जीत जाएँगे, इसलिए हमने बढ़-चढ़ कर वादे कर दिए थे।

  • दो दिन पहले क्या कहा था गडकरी ने, पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
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क़मर वहीद नक़वी
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