केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने का निर्णय लिया है। यह देश की आजादी के बाद पहली बार व्यापक स्तर पर जाति डेटा संग्रह का प्रयास होगा। यह कदम बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य हिंदू समुदाय के बीच जातिगत विभाजन को कम कर व्यापक हिंदू एकता को मजबूत करना है।

30 अप्रैल 2025 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने घोषणा की कि अगली राष्ट्रीय जनगणना में जाति गणना शामिल होगी। यह फैसला आजादी के बाद से केवल अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की गणना तक सीमित जनगणना प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस कदम को सामाजिक समावेशन और नीति निर्माण के लिए महत्वपूर्ण बताया। हालांकि, डेटा संग्रह, वर्गीकरण और उपयोग के तरीकों पर अभी स्पष्टता नहीं है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी का यह कदम हिंदू समुदाय के बीच जातिगत विभाजन को कम करने और विपक्ष द्वारा की जा रही जाति-आधारित राजनीति को निष्प्रभावी करने की कोशिश है। पार्टी का मानना है कि जाति जनगणना से प्राप्त डेटा का उपयोग सामाजिक कल्याण योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाने में किया जा सकता है, जिससे हिंदू समुदाय में एकता की भावना बढ़ेगी। यह कदम विपक्ष के उस दावे का जवाब भी है, जो जातिगत असमानता को उजागर कर भाजपा की हिंदुत्व नीति को चुनौती देता रहा है।

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भाजपा की हिंदुत्व नीति का लक्ष्य जातिगत सीमाओं को धुंधला कर एक व्यापक हिंदू पहचान बनाना रहा है। हालांकि, 2022 के उत्तर प्रदेश चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटों में कमी ने पार्टी को इस दिशा में और सतर्क किया। जाति जनगणना को समर्थन देकर भाजपा विपक्ष के दबाव को कम करने और अपनी समावेशी छवि को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

विपक्ष का दबाव काम कर गया

विपक्षी दलों ने इस निर्णय को अपनी जीत के रूप में पेश किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र से जाति जनगणना की समय-सीमा स्पष्ट करने की मांग की है। समाजवादी पार्टी (सपा) के अखिलेश यादव ने इसे पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) समुदायों की जीत बताया, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मायावती ने इसे देर से उठाया गया कदम करार दिया। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) जैसे दलों ने भी इस निर्णय को अपने दबाव का परिणाम बताया। यह हकीकत है कि तमाम विपक्षी दलों और खासकर नेता विपक्ष राहुल गांधी लंबे समय से सरकार को इस पर घेर रहे थे। राहुल गांधी ने संसद में ही खुला चैलेंज दिया था कि वो जाति जनगणना की अपनी मांग पूरी करवा कर ही रहेंगे।

विपक्ष का तर्क है कि जाति जनगणना सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को उजागर करेगी, जिससे आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा। 2023 में बिहार की जाति जनगणना ने यह दिखाया कि राज्य की 84% आबादी हाशिए पर मौजूद जातियों से है, जिसने विपक्ष को भाजपा की हिंदुत्व नीति के खिलाफ एक नया हथियार दिया।

जाति जनगणना के पक्ष और विपक्ष में कई तर्क हैं:  

सामाजिक समावेशन: विशेषज्ञों का कहना है कि जाति डेटा नीतियों को अधिक समावेशी बनाने में मदद करेगा। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा कि जाति, क्षेत्र, धर्म और आर्थिक स्थिति जैसे कारक आवश्यक सेवाओं तक पहुंच को प्रभावित करते हैं। जाति जनगणना इन असमानताओं को उजागर कर समाधान सुझा सकती है।

जातिगत विभाजन का खतरा: कुछ आलोचकों का मानना है कि यह कदम जातिगत पहचान को और मजबूत कर सकता है, जिससे सामाजिक एकता कमजोर हो सकती है। कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों ने पहले ही जाति जनगणना के खिलाफ एकजुटता दिखाई है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी आबादी का गलत आकलन हुआ है।  

राजनीतिक दुरुपयोग: भाजपा के कुछ नेताओं ने आरोप लगाया है कि विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस, जाति जनगणना का उपयोग मुस्लिम आरक्षण जैसे विवादास्पद मुद्दों को बढ़ावा देने के लिए कर रही है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर झूठे वादों का आरोप लगाया।  

तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियां: 1931 के बाद से व्यापक जाति जनगणना नहीं हुई है। डेटा संग्रह की जटिलता, उप-जातियों का वर्गीकरण और गोपनीयता के मुद्दे इस प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं।

क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य

कर्नाटक में हाल ही में लीक हुई जाति जनगणना रिपोर्ट ने सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर विवाद पैदा किया है। लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों ने इसकी वैज्ञानिकता पर सवाल उठाए, जबकि भाजपा और जनता दल (सेक्युलर) ने इसे अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का हिस्सा बताया। बिहार में 2023 की जाति जनगणना ने राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया, जिससे विपक्ष को नई ताकत मिली।