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कांग्रेस ने बनाई कमेटी, राष्ट्रीय मुद्दों पर करेगी आंदोलन

कई राज्यों में सियासी घमासान से जूझ रही कांग्रेस ने अब राष्ट्रीय मुद्दों पर आंदोलन के लिए मैदान में उतरने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस की सदर सोनिया गांधी ने गुरूवार को 9 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी की कमान मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सौंपी गई है। कमेटी को जिम्मेदारी दी गई है कि वह राष्ट्रीय मुद्दों पर लगातार आंदोलन करे। कमेटी में कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को जगह दी गई है। 

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के अलावा वरिष्ठ नेताओं उत्तम कुमार रेड्डी, रिपुन बोरा, बीके हरिप्रसाद, उदित राज, मनीष चतरथ, रागिनी नायक और ज़ुबैर ख़ान को भी कमेटी में जगह मिली है। 

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विपक्षी नेताओं संग बैठक 

याद दिलाना होगा कि कुछ दिन पहले ही सोनिया गांधी ने 19 विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक की थी। बैठक में यह फ़ैसला लिया गया था कि आम जनता से जुड़े 11 मुद्दों को लेकर 20 से 30 सितंबर तक लगातार प्रदर्शन किया जाएगा और इसमें ये सभी विपक्षी दल भाग लेंगे। 

बैठक में सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं से अपील की थी कि वे बीजेपी के ख़िलाफ़ एकजुट हो जाएं। 

Congress panel for agitations on national issues - Satya Hindi

सोनिया गांधी ने संघ परिवार के एजेंडे से लड़ने का भी आह्वान बैठक में शामिल दलों के नेताओं से किया था। इसका मक़सद साफ था कि कांग्रेस की कोशिश 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एकजुट कर एक फ्रंट खड़ा करने की है, जो बीजेपी की क़यादत वाले एनडीए से दो-दो हाथ कर सके। 

मानसून सत्र में दिखी एकता 

संसद के मानसून सत्र में भी विपक्ष के हमलों से मोदी सरकार बुरी तरह घिर गई थी। किसान आंदोलन और पेगासस जासूसी मामले को लेकर विपक्ष ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी थी। मानसून सत्र के दौरान तमाम विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखाई दिए थे। 

तब कांग्रेस ने उन आलोचकों का मुंह बंद करने की कोशिश की थी जो उस पर सियासी निष्क्रियता का आरोप लगाते हैं। बीते दिनों में राहुल गांधी ने पेट्रोल, डीजल और एलपीजी सिलेंडर की बढ़ी क़ीमतों से लेकर केंद्र सरकार की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना का भी पुरजोर विरोध किया है। 

कांग्रेस की कोशिश विपक्षी दलों से ज़्यादा सक्रिय होकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलनों के मामले में ख़ुद को फ्रंट फुट पर रखने की है।

2022 है बड़ी चुनौती 

2022 में सात राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं जिनमें 5 राज्यों के चुनाव तो फरवरी-मार्च में ही हैं। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश को छोड़कर बीजेपी का सीधा मुक़ाबला कांग्रेस से है। कांग्रेस को बीजेपी के ख़िलाफ़ बनने वाले फ्रंट में अगर बेहतर जगह चाहिए तो उसे इन राज्यों में धमक दिखानी होगी, वरना उसे ऐसे किसी फ्रंट की क़यादत का मौक़ा मिलना मुश्किल होगा। क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बंगाल के बाहर सियासी विस्तार की कोशिशों में जुटी हैं और 2022 के प्रदर्शन पर ही काफी हद तक कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य निर्भर करेगा। 

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इस सबके अलावा जिन तीन राज्यों में पार्टी की अपने दम पर सरकार है, वहां के सियासी दिग्गजों के बीच तलवारें खिंची हुई हैं। वे एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। हाईकमान पिछले कई महीनों की क़वायद के बाद भी राजस्थान और पंजाब का झगड़ा नहीं सुलझा पाया है और छत्तीसगढ़ में भी हालात अलहदा नहीं हैं। 

कांग्रेस में नेतृत्व का संकट कब हल होगा, ये ऐसा सवाल है जिसे पार्टी आलाकमान अब तक हल नहीं कर सका है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मुखर होकर यह सवाल उठा चुके हैं। इसके अलावा पार्टी में आंतरिक चुनाव की मांग और निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था सीडब्ल्यूसी में भी पारदर्शी ढंग से चुनाव की मांग बाग़ी गुट G-23 के नेता उठाते रहे हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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