विपक्ष ने बसपा प्रमुख मायावती को बार-बार इंडिया गठबंधन में शामिल होने की दावत दी लेकिन मायावती ने हर ऑफर को ठुकरा दिया। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा ने यूपी में मिलकर 15 सीटें जीत ली थीं, जिसमें 10 सीटें बसपा को मिली थीं। लेकिन उसके बाद गठबंधन टूट गया और बसपा फिर कभी विपक्षी खेमे में नहीं लौटी। कांग्रेस ने कोशिश भी की लेकिन मायावती ने कोई जवाब नहीं दिया। विपक्षी दलों और खासकर सपा का यह आम आरोप है कि मायावती का रवैया भाजपा को लेकर लचीला है, वो सत्तारूढ़ पार्टी की ठीक से आलोचना तक नहीं कर पाती हैं। बसपा को भाजपा की बी टीम कहा जाने लगा।
लोकसभा चुनाव में बसपा ने यूपी में जो प्रत्याशी उतारे हैं, उससे इन आरोपों को और हवा मिली है। बसपा की चार सूचियों में कुल 80 में से 46 सीटों पर प्रत्याशियों को जिस तरह घोषित किया गया है, उससे संकेत मिलता है कि मायावती इंडिया के पारंपरिक वोटों में कटौती करना चाहती हैं। क्योंकि जिन पारंपरिक मतदाताओं की सोशल इंजीनियरिंग करना चाहती हैं, वे इंडिया के ही कोर वोटर हैं।
यहां यह बताना जरूरी है कि बसपा के ज्यादातर सांसद और विधायक जीतने के बाद भाजपा में चले गए। यानी वफादारी के मामले में मायावती को धोखा मिला या फिर उनकी सोशल इंजीनियरिंग की मिट्टी पलीत हो गई।
बसपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी रैलियों का जो प्लान बनाया है। वो सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में है। जाहिर है कि वहां मायावती की रैली होने पर मुस्लिम और दलित वोट बंट जाएगा। मुस्लिम हमेशा सपा का कोर वोटर रहा है। बसपा के राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने अपने दौरे की शुरुआत नगीना से की। नगीना मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां पर उन्होंने बाबरी मसजिद की बात की। उन्होंने कहा जहां भी नई बाबरी मसजिद बनेगी, बसपा उसमें सहयोग करेगी। नगीना से भाजपा, सपा, बसपा के अलावा भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद चुनाव लड़ रहे हैं। बसपा चाहती तो अपना प्रत्याशी हटाकर चंद्रशेखर आजाद का समर्थन कर सकती थी। लेकिन बसपा ने ऐसा नहीं किया। अब बसपा चाह रही है कि चंद्रशेखर चुनाव हार जाए। बसपा सिर्फ और सिर्फ चंद्रशेखर के खिलाफ प्रचार कर रही है।
इसी तरह एटा से बसपा ने पूर्व कांग्रेस नेता मोहम्मद इरफान को मैदान में उतारा है। इस सीट का प्रतिनिधित्व भाजपा के ओबीसी लोध दिग्गज और पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने किया था। उनके बेटे राजवीर सिंह दो बार लोकसभा इस सीट से जा चुके हैं। एसपी ने इस सीट से एक शाक्य नेता को मैदान में उतारा है, क्योंकि उसके पास इस समुदाय के मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है, और वह ओबीसी और मुस्लिम वोटों को भी अपने पक्ष में करने की उम्मीद कर रही थी। लेकिन बसपा के मोहम्मद इरफान ने अगर मुस्लिम वोट काटा तो भाजपा को सीधा फायदा होगा।
सहारनपुर में भी यही हाल है। यहां से इंडिया गठबंधन के इमरान मसूद काफी मजबूत उम्मीदवार माने जाते हैं। लेकिन बसपा ने यहां से हाजी फजलुर्रहमान का टिकट काट कर माजिद अली को उतारा है। यहां पर इंडिया और भाजपा की सीधी टक्कर है लेकिन बसपा प्रत्याशी के आने से भाजपा को फायदा हो सकता है।
मुजफ्फरनगर में बसपा प्रत्याशी दारा सिंह प्रजापति के खड़े होने से भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान को सीधा फायदा हो सकता है। वैसे तो मायावती 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के लिए तत्कालीन सपा सरकार को जिम्मेदार ठहराती रही हैं और मुस्लिमों से हमदर्दी जताती रही हैं। लेकिन मायावती का एक्शन भाजपा को फायदा पहुंचा रहा है। यहां पर इंडिया गठबंधन की ओर से हरेंद्र मलिक हैं जो सपा के टिकट पर लड़ रहे हैं।
इसी तरह बसपा सुप्रीमो ने कन्नौज, लखनऊ, घोसी, आजमगढ़, चंदौली, रॉबर्ट्सगंज में भी जातीय समीकरण के हिसाब से प्रत्याशी उतारे हैं लेकिन इन प्रत्याशियों से भाजपा प्रत्याशियों को सीधा फायदा हो रहा है। ऐसे में अगर विपक्ष मायावती औऱ उनकी पार्टी को भाजपा की बी टीम बता रहा है तो उसके पास अपने दमदार तर्क भी हैं।