शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मनसे नेता राज ठाकरे के साथ हाथ मिलाने की इच्छा जताई है। उन्होंने शनिवार को कहा कि मैंने राज ठाकरे से सारी लड़ाई खत्म की। बीएमसी चुनावों से पहले इस बड़ा राजनीतिक कदम माना जा रहा है।
उद्धव और राज ठाकरे
शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के अध्यक्ष राज ठाकरे के साथ राजनीतिक गठबंधन की संभावना को हरी झंडी दिखाकर महाराष्ट्र की सियासत में शनिवार 19 अप्रैल को एक नया मोड़ ला दिया है। उद्धव ने कहा कि वह महाराष्ट्र के हित में सभी पुरानी लड़ाइयों को भुलाकर राज के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव नजदीक हैं और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन चुनौतियों का सामना कर रहा है।
उद्धव और राज ठाकरे, शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के बेटे और भतीजे हैं। दोनों की राजनीतिक यात्रा एक समय शिवसेना के साझा मंच पर शुरू हुई थी, लेकिन 2005 में मतभेदों के चलते राज ने शिवसेना छोड़कर एमएनएस की स्थापना की। राज की आक्रामक और मराठी अस्मिता पर केंद्रित राजनीति ने उन्हें एक अलग पहचान दी, लेकिन उनकी पार्टी शिवसेना की तरह व्यापक प्रभाव नहीं बना सकी। दोनों भाइयों के बीच वर्षों तक तल्खी रही, हालांकि समय-समय पर सुलह की बातें भी सामने आईं।
शनिवार को भारतीय कामगार सेना की 57वीं वार्षिक सभा को संबोधित करते हुए उद्धव ने कहा, "मैं राज ठाकरे के साथ मिलकर काम करने को तैयार हूं। महाराष्ट्र के हित में मैं छोटी-मोटी घटनाओं को भूलकर आगे बढ़ने को तैयार हूं। मैंने सारी लड़ाइयां खत्म कर दी हैं। महाराष्ट्र का हित मेरी प्राथमिकता है।"
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर महाराष्ट्र की जनता चाहती है कि ठाकरे भाई एक साथ आएं, तो वह इस दिशा में कदम उठाएंगे। उद्धव का यह बयान बीएमसी चुनाव से पहले एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है, क्योंकि शिवसेना (यूबीटी) और एमएनएस दोनों ही मराठी मतदाताओं के बीच प्रभाव रखते हैं।
राज ठाकरे ने भी उद्धव के बयान का स्वागत करते हुए समान भावना व्यक्त की। उन्होंने कहा, "हमारे बीच का विवाद छोटा है, लेकिन यह महाराष्ट्र और मराठी लोगों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। अगर महाराष्ट्र चाहता है कि हम एक साथ आएं, तो मैं अपने अहं को आड़े नहीं आने दूंगा।" राज ने यह भी स्पष्ट किया कि उनके लिए बाला साहेब ठाकरे ही एकमात्र नेता थे, और वह उद्धव के साथ काम करने में कोई आपत्ति नहीं देखते।
उद्धव का यह कदम ऐसे समय में आया है, जब एमवीए गठबंधन, जिसमें शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) शामिल हैं, पिछले साल विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद संकट से जूझ रहा है। उद्धव ने हाल ही में चुनाव परिणामों को "अविश्वसनीय" और "सुनामी जैसा" बताया था, जिससे गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठे हैं।
दो दिनों पहले पूर्व सीएम एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे के आवास पर जाकर भोजन किया था। उस समय शिंदे ने कहा था कि उनके विचार आपस में मिलते हैं। उसी मुलाकात के बाद उद्धव और राज ठाकरे के एक होने की सूचनाएं फैलने लगी थीं। लेकिन कहा जा रहा है कि दोनों के एक होने की सूचना पाकर ही शिंदे वहां गए थे।
राज ठाकरे ने हाल के वर्षों में भाजपा के साथ करीबी दिखाई थी, खासकर 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने महायुति गठबंधन का समर्थन किया था। हालांकि, एमएनएस को विधानसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली, जिसके बाद राज ने अपनी रणनीति पर पुनर्विचार शुरू किया।
बीएमसी चुनाव पर असर
बीएमसी चुनाव, जो भारत की सबसे बड़ी नगर निगम संस्था का चुनाव है, महाराष्ट्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिवसेना ने लंबे समय तक बीएमसी पर कब्जा जमाए रखा, लेकिन 2022 में पार्टी के विभाजन और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के उदय ने समीकरण बदल दिए। उद्धव और राज का संभावित गठजोड़ मराठी मतदाताओं को एकजुट करने और भाजपा-शिंदे गठबंधन को चुनौती देने की रणनीति हो सकता है।
राज की एमएनएस भले ही विधानसभा में सीटें न जीत सकी हो, लेकिन मुंबई और ठाणे जैसे शहरी क्षेत्रों में उनके पास एक समर्पित कार्यकर्ता आधार है। अगर दोनों ठाकरे भाई एक साथ आते हैं, तो यह मराठी अस्मिता के मुद्दे को फिर से मजबूती दे सकता है, जो शिवसेना और एमएनएस दोनों का मूल आधार रहा है।
उद्धव और राज के बीच यह सुलह कितनी गहरी होगी और क्या यह बीएमसी चुनाव में कोई ठोस गठबंधन बन पाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। दोनों नेताओं ने महाराष्ट्र के हित को प्राथमिकता देने की बात कही है, लेकिन अतीत में उनके बीच गहरे मतभेद रहे हैं। उद्धव ने जहां एमवीए के साथ रहकर समावेशी राजनीति की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, वहीं राज ने हाल के वर्षों में हिंदुत्व और मराठी अस्मिता पर आक्रामक रुख अपनाया है।
यह गठजोड़ अगर सफल होता है, तो यह न केवल बीएमसी चुनाव, बल्कि भविष्य के विधानसभा चुनावों में भी महाराष्ट्र की सियासत को नया रंग दे सकता है। फिलहाल, सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि ठाकरे भाई अपनी पुरानी रंजिशों को कितनी जल्दी और कितनी मजबूती से पीछे छोड़ पाते हैं।