महाराष्ट्र में इन दिनों तीन साल पुराने राजनीतिक विवाद पर बयानबाजी हो रही है। राज्य के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बयान दिया कि चुनाव बाद जो पहली सरकार तीन दिन तक चली थी, उसके कर्ताधर्ता एनसीपी प्रमुख शरद पवार थे। शरद पवार ने इसके जवाब में फडणवीस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि मैं उन्हें बहुत सभ्य और सुसंस्कृत समझता था। इतने घटिया बयान की उम्मीद नहीं कर रहा था। 

फडणवीस ने सोमवार को कहा कि 2019 में बीजेपी ने एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तो उसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार की भी सहमति थी। फडणवीस के इस खुलासे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया है। इस खुलासे के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार की भी प्रतिक्रिया सामने आई है और उन्होंने इसे एक झूठ करार दिया है।
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राजनीति में जोड़ तोड़ की सरकारें बनना कोई नई बात नहीं है। 2019 में महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हुए थे और बीजेपी और शिवसेना ने एकसाथ चुनाव लड़ा था लेकिन जब सरकार बनाने की बारी आई तो शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने से मना कर दिया। शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के प्रयत्न शुरू कर दिए थे। उधर एनसीपी ने डबल गेम करते हुए बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी जिसमें देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी जबकि अजीत पवार उप मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन यह सरकार 80 घंटे में ही गिर गई थी। अब उसी को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने खुलासा किया है। 
देवेंद्र फडणवीस ने एक कार्यक्रम में कहा- 
2019 में महाराष्ट्र की जनता ने बीजेपी और शिवसेना को बहुमत दिया था लेकिन मुख्यमंत्री पद की चाहत में शिवसेना ने बीजेपी के साथ धोखा किया। जिसके बाद मजबूरन बीजेपी को एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। अजित पवार के साथ मिलकर बीजेपी ने जो सरकार बनाई थी उसकी पूरी जानकारी एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को थी और उनसे बातचीत के बाद ही सरकार का गठन किया गया था।
फडणवीस के इस खुलासे के बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी कि शरद पवार ने आखिरकार यह डबल गेम क्यों खेला। 
फडणवीस ने कहा कि जब शिवसेना ने बीजेपी के साथ सरकार बनाने से मना कर दिया था तो इसी बीच शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी में सरकार बनाने को लेकर बातचीत शुरू हो गई। लेकिन एनसीपी ने ही बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने की पहल की। क्योंकि बीजेपी कांग्रेस के साथ सरकार नहीं बना सकती थी और शिवसेना ने मना कर दिया था तो फिर उसके पास एनसीपी के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। फडणवीस ने कहा कि एनसीपी द्वारा मिले प्रस्ताव पर बीजेपी ने गंभीरता से विचार किया और इस बारे में शरद पवार को भी जानकारी दी। यही कारण था कि मैंने और अजीत पवार ने सुबह-सुबह राजभवन जाकर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

फडणवीस ने कहा कि उनके साथ दो बार विश्वासघात हुआ। पहला उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ सरकार बनाने से इनकार कर दिया उसके बाद एनसीपी ने उन्हें धोखा दे दिया। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा धोखा तो उद्धव ठाकरे ने दिया क्योंकि साल 2019 में जब विधानसभा का चुनाव लड़ा था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके मुख्यमंत्री होने के बारे में कई बार स्टेज से नाम घोषित किया था लेकिन जैसे ही बीजेपी की चुनाव में कम सीटें आई तो फिर शिवसेना ने चाल चल दी।

फडणवीस ने कहा- 
मैंने शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए कई बार पहल भी की और उद्धव ठाकरे को कई बार फोन भी किए लेकिन उन्होंने मेरा फोन नहीं उठाया। इसके बाद उद्धव ठाकरे को कुर्सी इतनी प्यारी हो गई कि उन्होंने कुर्सी के लिए अपने राजनीतिक विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली।
फडणवीस के खुलासे पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार की प्रतिक्रिया भी आई है। शरद पवार ने कहा- 
मैं देवेंद्र फडणवीस को समझदार और सुलझा हुआ नेता मानता था और मुझे लगता था कि फडणवीस कभी अपने राजनीतिक जीवन में झूठ का सहारा नहीं लेंगे। इस तरह की बातें करने से किसी भी राजनेता को बचना चाहिए।
बता दें कि जब साल 2019 में महाराष्ट्र में जब विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे तो बीजेपी ने 105 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि शिवसेना को 56 सीटों पर विजय मिली थी। क्योंकि बीजेपी और शिवसेना ने एक साथ चुनाव लड़ा था इसलिए दोनों पार्टियां बड़े आराम से सरकार बना सकती थी लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर पेंच फंस गया और दोनों पार्टियों के रास्ते अलग हो गए। इसके बाद में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली जो ढाई साल तक चली।
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इस सारे मामले में तत्कालीन गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी की बहुत विवादित भूमिका रही। बीजेपी से ज्यादा उन्हें महाराष्ट्र में फडणवीस को बतौर सीएम शपथ दिलाने की जल्दी थी। फडणवीस-अजीत पवार की सरकार गिरने के बाद जब महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार आई तो भी कोश्यारी शह-मात के खेल में लगे रहे। आखिरकार अपने विवादास्पद बयानों की वजह से उन्हें जाना पड़ा। बीजेपी लीडरशिप ने भी उनका साथ छोड़ दिया। एक तरह से वो इस्तेमाल करके फेंकने वाले राज्यपाल साबित हुए।