बीजेपी में नितिन नबीन की अहम नियुक्ति के बाद पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र और कथित वंशवाद को लेकर बहस तेज हो गई है। क्या यह संगठनात्मक मजबूती है या केंद्रीयकरण और पसंदीदा नेतृत्व की राजनीति?
बीजेपी अध्यक्ष पद पर चुनाव का कई साल से इंतज़ार था, लेकिन रविवार को अचानक 'पर्ची' पर नितिन नबीन को कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया गया। नितिन नबीन सात बार के विधायक नवीन किशोर सिन्हा के बेटे हैं। इन्हीं वजहों से बीजेपी में आंतरिक लोकतंत्र और पार्टी में वंशवाद पर सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा यह सवाल भी उठ रहा है कि आख़िर बीजेपी जैसी पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए एकदम से नया चेहरा क्यों? ऐसा चेहरा क्यों जिसको पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी का अनुभव तक नहीं है?
विपक्षी दल, सोशल मीडिया यूजर और पत्रकार नितिन नबीन की नियुक्ति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का 'रबर स्टैंप' बताते हुए आंतरिक लोकतंत्र की कमी, वंशवाद की मौजूदगी और शिक्षा योग्यता पर सवाल उठा रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि यह नियुक्ति बीजेपी की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कमी को सामने लाती है, जबकि पार्टी खुद को वंशवाद-मुक्त और कार्यकर्ता-केंद्रित बताती रही है।
विवाद की जड़
नितिन नबीन बिहार सरकार में मंत्री हैं और बीजेपी के एक प्रमुख चेहरे के रूप में उभरे हैं। उनको रविवार को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। यह पद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सहयोगी के रूप में अहम है और संगठनात्मक निर्णयों में अहम भूमिका निभाता है। हालाँकि, इस नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसे बिना किसी आंतरिक चुनाव या व्यापक परामर्श के लिया गया निर्णय बताया जा रहा है। विपक्षी नेता और विश्लेषक इसे मोदी-शाह की जोड़ी द्वारा थोपी गई नियुक्ति मानते हैं, जो पार्टी में केंद्रीकृत नेतृत्व को दिखाता है।
आलोचकों का मुख्य आरोप है कि अक्सर कांग्रेस और अन्य दलों पर वंशवाद का आरोप लगाने वाली बीजेपी खुद उसी राह पर चल रही है। नितिन नबीन के पिता नवीन किशोर सिन्हा सात बार विधायक रह चुके हैं। साथ ही, उनकी शिक्षा की योग्यता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसे 'मोदी-शाह का रबर स्टैंप' कहा जा रहा है, मतलब एक ऐसा नेता जो बिना सवाल किए उनके फैसलों को लागू करे, न कि पार्टी कार्यकर्ताओं की आवाज बने।आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल?
विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति को बीजेपी में लोकतंत्र की कमी का प्रमाण बताते हुए तीखी आलोचना की है। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने एएनआई से कहा, "यह कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने अध्यक्ष का चयन करने की प्रक्रिया के बिल्कुल विपरीत है। हमने हमेशा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया है, चाहे वह पार्टी कार्यकर्ताओं की इच्छा समझने के लिए संवाद हो या औपचारिक चुनाव प्रक्रिया। बीजेपी गोपनीयता पसंद करती है क्योंकि वह संवाद करने को तैयार नहीं है। वे अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से भी संवाद में विश्वास नहीं रखते। और जिस तरह वे अपनी पार्टी को गोपनीयता से चलाते हैं, बिना किसी औपचारिक प्रक्रिया के, बिना किसी सार्थक संवाद के, उसी तरह वे देश को कुछ निर्णयकर्ताओं की सनक पर चलाना चाहते हैं, लेकिन बिना किसी सार्थक जुड़ाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के।'समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने शिक्षा के मुद्दे पर हमला बोलते हुए कहा, 'बीजेपी के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन नबीन श्रीवास्तव 12वीं पास हैं। बीजेपी में शिक्षा और शिक्षित लोगों की ज़रूरत नहीं। उसकी सबसे बड़ी मिसाल खुद पीएम हैं जिन्होंने 9वीं फेल स्मृति जुबिन ईरानी को देश का शिक्षा मंत्री बना दिया था। कहावत है- तांत बोले राग मालूम हुई।' सिंह का इशारा भाजपा की शिक्षा नीति और नेतृत्व चयन में योग्यता की अनदेखी पर है।
वंशवाद और लोकतंत्र की 'मिसाल'!
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक ने अपनी टिप्पणी में व्यंग्यात्मक लहजे में इस नियुक्ति को 'वंशवाद के ताबूत में कील' और 'आंतरिक लोकतंत्र की मिसाल' बताया। उन्होंने लिखा, "'वंशवाद' के ताबूत में कील और 'आंतरिक लोकतंत्र' की मिसाल..! ब्रह्मांड के सबसे बड़े राजनीतिक दल में बिहार के मंत्री नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। इस निर्णय से पार्टी ने इतिहास रच दिया है... नितिन के पिता मात्र सात बार विधायक रहे थे इसलिए ये 'वंशवाद' नहीं कहलायेगा। (अगले साल लाल किले की प्राचीर से महामानव फिर एक बार वंशवाद को अपशब्द कहेंगे।)"
उन्होंने आगे तंज कसते हुए लिखा है, "नितिन नबीन की नियुक्ति से मो शा ने पार्टी में 'आंतरिक लोकतंत्र' की मिसाल कायम की है। नितिन की नियुक्ति से पहले हजारों, लाखों, करोड़ों कार्यकर्ताओं से राय शुमारी की गई। पार्टी के भीतर विधिवत चुनाव हुआ इसके लिए महीनों तक मतदान हुआ। अंत में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी 'ढिकाने जी' को करोड़ों वोटों से परास्त करने वाले नितिन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष 'निर्वाचित' घोषित किया गया। बताइए ऐसा आंतरिक लोकतंत्र है किसी पार्टी में? ...आइए अब अस्सी साल पहले कांग्रेस पार्टी में हुए अध्यक्ष के चुनाव पर वंशवादी पार्टी से सवाल करें। जवाहरलाल नेहरू जवाब दीजिए।"
पाठक की यह टिप्पणी भाजपा की दोहरी नीति पर कटाक्ष करती है, जहां पार्टी दूसरों पर वंशवाद का आरोप लगाती है लेकिन खुद उसी में लिप्त है।
'रबर स्टैंप' से 'मास्टरस्ट्रोक' तक
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने जोर पकड़ा है, जहां यूजर बीजेपी की आलोचना कर रहे हैं। कांग्रेस नेता गौरव पांधी ने लिखा, "श्री मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बने क्योंकि उन्होंने एआईसीसी और पीसीसी सदस्यों के 7,800 वोट हासिल किए। नितिन नबीन को भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनने के लिए कितने वोट मिले? शून्य। मोदी और शाह रबर स्टैंप स्थापित करते हैं; बीजेपी कार्यकर्ताओं को अपने अध्यक्ष चुनने में कुछ कहना नहीं है। मीडिया कब बीजेपी से पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की पूर्ण अनुपस्थिति पर सवाल करेगा?"एक अन्य यूजर अंशुमन सेल नेहरू ने कहा, "श्री नितिन नबीन एक वंशवादी हैं। उनके पिता कई बार विधायक रह चुके हैं। श्री नबीन एक गैर-प्रभावी ऊपरी जाति से आते हैं। श्री नबीन एक अच्छे वक्ता नहीं हैं। फिर भी, आप भारतीय मीडिया में हर किसी को इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक बताते पाएंगे। क्योंकि, मास्टर से हर स्ट्रोक मास्टरस्ट्रोक होता है।"
सोशल मीडिया यूजर प्रतीक पटेल ने बिहार की राजनीति में वंशवाद की सूची बनाते हुए व्यंग्य किया, "मैं पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी का पुत्र सम्राट चौधरी। मैं पूर्व मंत्री महावीर चौधरी का पुत्र अशोक चौधरी। मैं पूर्व विधायक नवीन किशोर सिन्हा का पुत्र नितिन नबीन। मैं पूर्व केंद्रीय मंत्री, राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा का पुत्र दीपक प्रकाश। मैं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का पुत्र संतोष सुमन मांझी। मैं पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण निषाद की पुत्रवधु और पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद। मैं पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी की पुत्री श्रेयसी सिंह। मैं दलसिंहसराय विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक जगदीश प्रसाद चौधरी का पुत्र विजय चौधरी। ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं बिहार की राजनीति से परिवारवाद को समाप्त करके एक नए बिहार का निर्माण करूंगा।"
बीजेपी के लिए चुनौती
नितिन नबीन की नियुक्ति ने बीजेपी को आंतरिक लोकतंत्र, वंशवाद और योग्यता के मुद्दों पर घेर लिया है। जहां पार्टी इसे युवा नेतृत्व और संगठनात्मक मजबूती का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष और मीडिया इसे मोदी-शाह की मनमानी का प्रमाण मानते हैं। आने वाले दिनों में यह बहस और तेज हो सकती है।