यूपी की राजनीति में इस ताजा घटनाक्रम से यह तो भाजपा ने साफ कर दिया कि उपचुनाव होने तक योगी आदित्यनाथ की कुर्सी सलामत है। केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक उपचुनाव के नतीजों का इंतजार करें। अगर दोनों खुद बेहतर नतीजे नहीं दे पाए तो चुप होने के अलावा और क्या रास्ता होगा। योगी आदित्यनाथ अगर अयोध्या (मिल्कीपुर) और कटेहरी की बाजी हारते हैं तो इस्तीफा देने के अलावा और क्या रास्ता होगा।
सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा और अंबेडकरनगर की कटेरी विधानसभा की जिम्मेदारी मिली है। 2022 में ये दोनों सीटें सपा ने जीती थीं। कठेरी से लालजी वर्मा विधायक चुने गए थे, जबकि मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद जीते थे, लेकिन अब दोनों सपा विधायक सांसद बन गए हैं। एसपी कोटे की इन दोनों सीटों पर कमल खिलाने की जिम्मेदारी सीएम योगी को सौंपी गई है। मिल्कीपुर सीट के राजनीतिक अस्तित्व में आने के बाद से भाजपा ने इस पर केवल दो बार जीत हासिल की है, एक बार 1991 में और फिर 2017 में। 1991 में भाजपा केवल एक बार कटेरी सीट जीतने में सफल रही।
योगी ने 10 सीटों में से सबसे मुश्किल चुनौती वाली सीटें ली हैं। मिल्कीपुर और कटेहरी में भाजपा का जीतना आसान नहीं है। ये दोनों सीटें सपा का गढ़ बनी हुई हैं। मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद पासी यह सीट जीतने के लिए पूरा दम लगाने जा रहे हैं। इसी तरह कटेहरी में लालजी वर्मा जो ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं, वे इस सीट को भाजपा के पास जाने नहीं देंगे। हाल ही में सोहावल क्षेत्र में एक किशोरी के साथ गैंगरेप होने और उसमें सपा नेता की गिरफ्तारी की वजह से अवधेश प्रसाद पर दबाव बन गया है। उस सपा नेता को अवधेश प्रसाद से जोड़ दिया गया है। पीड़ित परिवार का कहना है कि आरोप सपा नेता के नौकर पर है लेकिन एफआईआर सपा नेता पर दर्ज हुई है। यह घटना भी मिल्कीपुर में चुनावी मुद्दा बन सकती है।
केशव फूलपुर और मझवां में कुछ कर पाएंगेः उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को फूलपुर और मझवां विधानसभा सीट के उपचुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 2022 में फूलपुर सीट बीजेपी जीतने में कामयाब रही, जबकि मझवां सीट उसकी सहयोगी पार्टी निषाद पार्टी ने जीती। दोनों सीटों से विधायक अब सांसद बन गए हैं, जिसके चलते उपचुनाव होना है। बीजेपी 2017 और 2022 में फूलपुर सीट जीतने में कामयाब रही, जबकि बीजेपी ने 2017 में मझवां सीट जीती। 2022 में निषाद पार्टी का विधायक चुना गया। फूलपुर और मझवां विधानसभा सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए केशव प्रसाद मौर्य को जिम्मेदारी दी गई है। केशव प्रसाद मौर्य खुद फूलपुर से सांसद रह चुके हैं और इसी इलाके से आते हैं। फूलपुर में दलित और यादव मतदाता अहम हैं, लेकिन कुर्मी यहां तुरुप का इक्का साबित हो रहे हैं। यहां ब्राह्मण और मुस्लिमों की बड़ी संख्या है, जिसके चलते सपा जीत रही है। मझवां सीट के समीकरण पर नजर डालें तो यहां ब्राह्मण, मल्लाह, कुशवाहा, पाल, दलित और ठाकुर वोटर अहम हैं, जिनका फायदा उठाकर यहां जीत की पटकथा लिखी गई है। 2002 से 2017 तक बसपा का कब्जा था और उसके बाद 2017 में बीजेपी और 2022 में निषाद पार्टी ने जीत हासिल की। बीजेपी ने केशव मौर्य के जरिए ओबीसी वोटों को आकर्षित कर अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखने की रणनीति बनाई है।
सिसमऊ सीट के समीकरणों पर नजर डालें तो यहां सबसे ज्यादा वोटर मुस्लिम हैं, उसके बाद ब्राह्मण, फिर दलित, कायस्थ, वैश्य, यादव और सिंधी हैं। मुस्लिम वोटर करीब एक लाख हैं, जबकि 50 हजार ब्राह्मण हैं। इरफान सोलंकी ने मुस्लिम वोटों के साथ अन्य जातियों के वोट जोड़कर जीत की हैट्रिक बनाई थी। करहल सीट सपा की पारंपरिक सीट रही है, जहां यादव मतदाता एक लाख से अधिक हैं, इसके बाद पाल और शाक्य मतदाता हैं। इसके अलावा दलित और ठाकुर वोट भी अच्छे हैं। ऐसे में सबसे कठिन सीट देने से ब्रजेश पाठक की चुनौती बढ़ गई है। इन दोनों सीटों पर बीजेपी की जीत ब्रजेश पाठक के लिए लोहे के चने चबाने जैसी है।