पश्चिम बंगाल में छठे चरण की आठ लोकसभा सीटों पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने पूरी ताकत लगा दी है। इसकी वजह है 2019 का आम चुनाव, जब इन 8 सीटों में से टीएमसी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं, भाजपा ने 5 सीटें जीतकर खासी बढ़त बना ली थी। इन आठ सीटों पर आदिवासी मतदाता किसी पार्टी की हार-जीत में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इन आठ सीटों का कुछ हिस्सा झारखंड तो कुछ ओडिशा से लगता है।
तमलुक की स्थिति
2019 में समीकरणों के चलते यह सीट टीएमसी के पास थी। उस समय तक शुवेंदु अधिकारी और दिब्येंदु अधिकारी भाजपा की वाशिंग मशीन में नहीं धुले थे। ईस्ट मेदिनीपुर जिले की इस सीट पर तब टीएमसी के दिब्येंदु अधिकारी ने भाजपा के सिद्धार्थ नस्कर को 1.9 लाख वोटों से हराया था। इससे पहले दिब्येंदु ने 2016 के उपचुनाव में सीपीएम की मंदिरा पांडा को करीब पांच लाख वोटों से हराया था। शुवेंदु अधिकारी अब भाजपा के साथ हैं, राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष हैं। शुवेंदु अधिकारी ने ही नंदीग्राम में किसानों की जमीन का मामला उठाकर सीपीएम के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था। लेकिन उनका नाम शारदा चिटफंड घोटाले में आया। इसके बाद राजनीतिक समीकरण बदल गए। शुवेंदु अधिकारी भाजपा में चले गए। अब भाजपा शारदा चिटफंड घोटाले की चर्चा ही नहीं करती है।
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इतना दबदबा होने के बावजूद भाजपा ने यहां से अधिकारी परिवार के किसी भी शख्स को टिकट नहीं दिया। यहां से भाजपा ने कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज अभिजीत गंगोपाध्याय को उतारा है। अभिजीत ने सेवाकाल के दौरान ही इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा था। पूर्व जज अपने विवादास्पद फैसलों के लिए जाने जाते हैं। उनके फैसले टीएमसी की आलोचना के रूप में भी जाने जाते हैं। ममता बनर्जी ने कई बार उन्हें भाजपा का एजेंट कहा था। ममता बनर्जी ने पार्टी की युवा शाखा के "खेला होबे" गाने से मशहूर हुए देबांग्शु भट्टाचार्य को उतारा है। देबांग्शु पिछले विधानसभा चुनाव से ही मशहूर हो चुके हैं। हाल ही में भाजपा प्रत्याशी अभिजीत गंगोपाध्याय ने ममता बनर्जी पर विवादित महिला विरोधी टिप्पणी की। चुनाव आय़ोग ने 24 घंटे के लिए उनके प्रचार पर रोक लगा दी है।
टीएमसी अपने प्रभाव और कार्यकर्ताओं के दम पर ही तमलुक से चुनाव जीतती रही है। हालांकि श्रेय अधिकारी परिवार लेता रहा है। लेकिन इस चुनाव में फैसला हो जाएगा कि तमलुक में अधिकारी परिवार लोकप्रिय है या फिर ममता बनर्जी के नाम पर वोट मिलेगा। 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने यहां चार सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा सिर्फ 3 विधानसभा सीटें जीत पाई थी।
कांथी लोकसभा की स्थिति
अगर किसी को भाजपा का परिवारवाद देखना है तो बंगाल आइए। ऊपर तमलुक लोकसभा क्षेत्र की चर्चा में शुवेंदु अधिकारी के भाई दिब्येंदु अधिकारी का जिक्र आया था। वो 2019 में टीएमसी से लड़े और जीते थे। उस समय सारा अधिकारी परिवार टीएमसी में था। आज वही अधिकारी परिवार भाजपा में है और इस परिवार के हर सक्रिय सदस्य के पास भाजपा में कोई न कोई पद है। अब कांथी लोकसभा सीट को ही लीजिए। भाजपा ने इस सीट से शुवेंदु के सबसे छोटे भाई सौमेंदु अधिकारी को टिकट दिया है। सौमेंदु को टीएमसी के उत्तम बारिक चुनौती दे रहे हैं। 2019 में इसी सीट से टीएमसी के शिसिर अधिकारी ने भाजपा के देबाशीष सामंत एक लाश से ज्यादा सीटों से हराया था। लेकिन जरा ठहरिए, ये शिसिर राय कौन हैं। शिसिर राय दरअसल शुवेंदु अधिकारी के पिता है। शिसिर अधिकारी ने 2014 में टीएमसी टिकट पर सीपीएम के तापस सिन्हा को दो लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। शिसिर राय ने 2009 का चुनाव भी जीता था। कुल मिलाकर अधिकारी परिवार ने किसी समय टीएमसी पर कब्जा कर रखा था और ममता के करीबी लोगों में थे। अब इसी परिवार ने भाजपा पर कब्जा कर रखा है।
घाटल की स्थिति
घाटल सीट टीएमसी के पास है। 2019 में बंगाली एक्टर दीपक अधिकारी (देव) ने भाजपा की भारती घोष को एक लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। दीपक अधिकारी 2024 का चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, लेकिन ममता बनर्जी ने उनसे चुनाव लड़ने का जब अनुरोध किया तो वो तैयार हो गए। दीपक अधिकारी ने 2014 के चुनाव में सीपीआई के संतोष राणा को ढाई लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। भाजपा ने 2024 में उनके मुकाबले हिरण्मय चट्टोपाध्याय को उतारा है। कुल मिलाकर टीएमसी का पलड़ा यहां भारी है। इंडिया गठबंधन के तहत यह सीट सीपीआई को मिली है, जिसने तपन गांगुली को उतारा है। लेकिन मुकाबला टीएमसी और भाजपा के बीच है। 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी यहां की 6 विधानसभा सीटों पर जीती थी। भाजपा को सिर्फ एक सीट मिली थी।झाड़ग्राम की स्थिति झाड़ग्राम लोकसभा क्षेत्र पूरी तरह से आदिवासी सीट है। यह वैसे भी अनुसूचित जनजाति प्रत्याशी के लिए ही आरक्षित है। लेकिन यह सीट भाजपा के लिए कई तरह की मुसीबत पैदा कर रही है। 2019 में भाजपा के कुंअर हेम्ब्रम यहां से जीते थे। लेकिन मार्च 2024 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और कहा कि वो भाजपा से चुनाव नहीं लड़ेंगे। भाजपा उनके फैसले पर हैरान रह गई क्योंकि भाजपा के पास पहले से इस सीट पर प्रत्याशी बदलने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं था। भाजपा उनकी जगह बिल्कुल नए प्रणत टुडू को मैदान में उतारना पड़ा। उनके सामने टीएमसी के कालीपद सोरेन और सीपीएम के सोनामणि मुर्मू (टुडू) हैं। टीएमसी ने 2014 में यह सीट सीपीएम से छीनी थी लेकिन बाद में हार गई। 2021 के विधानसभा चुनाव में सभी सातों विधानसभा सीटें टीएमसी जीती थी। इस तरह टीएमसी यहां अभी भी बहुत मजबूत स्थिति में है।
मेदिनीपुर की स्थिति
मेदिनीपुर में स्थिति बदली हुई है। वजह यह है कि यहां के सासंद दिलीप घोष को इस बार बर्धमान-दुर्गापुर से भाजपा टिकट मिला है और यहां से अग्निमित्रा पॉल को भाजपा ने उतारा है। अग्निमित्रा पहले फैशन डिजाइनर थीं लेकिन अब भाजपा की मुखर नेता बन चुकी हैं। 2019 में दिलीप घोष ने टीएमसी के मानस भुनिया को करीब 89000 वोटों से हराया था। 2014 में यहां से टीएमसी की संध्या रॉय ने सीपीआई से यह सीट छीनी थी। टीएमसी ने 2024 में एक्टर जून मालिया को उतारा है, जबकि सीपीआई ने बिप्लव भट्टाचार्य को टिकट दिया है। कभी यह सीट सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता से जुड़ी रही है जो एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की कैबिनेट में देश के गृहमंत्री रहे थे। इसके छह विधानसभा क्षेत्र पश्चिम मेदिनीपुर में और एक पूर्व मेदिनीपुर जिले आते हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव में एक पर भाजपा और 6 पर टीएमसी का कब्जा रहा था। इस तरह इस सीट पर टीएमसी का पलड़ा भारी कहा जा सकता है।
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